ईरान-इजरायल युद्ध के हालात बनते दिख रहे हैं। दोनों देशों के बीच बढ़ते टकराव से वैश्विक व्यापार, खासकर तेल आपूर्ति पर असर पड़ सकता है, जिससे भारत की आर्थिक स्थिति और सुरक्षा नीति प्रभावित हो सकती है।
Israel-Iran War: ईरान और इजरायल के बीच तनाव एक बार फिर खतरनाक मोड़ पर है, लेकिन ईरान की रणनीति पारंपरिक युद्ध से हटकर है। ईरान सीधे युद्ध के बजाय प्रॉक्सी वॉर यानी परोक्ष रूप से लड़ने की रणनीति अपनाता है। उसके पास हाउती, हिजबुल्लाह और हमास जैसे सहयोगी संगठन हैं जो विभिन्न मोर्चों पर इजरायल को चुनौती देते हैं।
हालांकि, 7 अक्टूबर 2024 के हमले के बाद इजरायल ने सैन्य कार्रवाई करते हुए हमास और हिजबुल्लाह को काफी नुकसान पहुंचाया। लेकिन हाउती विद्रोही अब भी इजरायल पर बैलिस्टिक मिसाइलों से हमला करने में सक्षम हैं। इस बीच, इजरायल ने अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन करते हुए ईरान के परमाणु ठिकानों पर बेहद सटीक और तकनीकी रूप से उन्नत हमले किए हैं।
तकनीकी क्षेत्र में इजरायल की बढ़त
इजरायल सैन्य तकनीक के मामले में ईरान से कहीं आगे है। उसके पास फिफ्थ जेनरेशन के F-35 स्टेल्थ फाइटर जेट हैं, जो दुश्मन के रडार से बचकर अचूक हमले करने में सक्षम हैं। ईरान के पास मौजूद फाइटर जेट काफी पुराने हैं, जिन्हें अपग्रेड करने के लिए उसके पास संसाधनों की कमी है।
इसका परिणाम यह है कि ईरान मुख्य रूप से ड्रोन और मिसाइलों पर निर्भर है। हालांकि, ईरान ने मिसाइल और ड्रोन तकनीक के क्षेत्र में हाल के वर्षों में काफी प्रगति की है और उसके पास खुद की बनाई हुई लंबी दूरी की मिसाइलें और 'शाहेद' जैसे ड्रोन हैं।
रक्षा बजट और सैन्य तैयारी
इजरायल को चारों तरफ से शत्रुतापूर्ण देशों से घिरा होने के कारण अपनी रक्षा पर भारी खर्च करना पड़ता है। इजरायल के पास आयरन डोम और अन्य उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम हैं जो मिसाइलों और ड्रोन हमलों से कई स्तरों पर सुरक्षा प्रदान करते हैं।
वहीं, ईरान की ताकत उसकी मिसाइल प्रणाली और ड्रोन नेटवर्क में है। ईरान की बैलिस्टिक मिसाइलों की रेंज 2,000 किलोमीटर तक है, जो इजरायल सहित खाड़ी क्षेत्र के कई हिस्सों को निशाना बना सकती हैं। लेकिन इस सबके बावजूद, रक्षा प्रणाली और आधुनिक हथियारों के मामले में इजरायल आगे है।
किसे मिल रहा वैश्विक समर्थन
इस संघर्ष में इजरायल को अमेरिका का पूर्ण समर्थन प्राप्त है। अमेरिका न केवल उसे आधुनिक हथियार उपलब्ध कराता है बल्कि रणनीतिक और तकनीकी मदद भी देता है। ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देश भी लंबे समय से इजरायल के समर्थक रहे हैं।
इसके अलावा, खाड़ी देशों की भी स्थिति जटिल है। वे अमेरिका के करीबी सहयोगी हैं और नहीं चाहते कि ईरान परमाणु हथियार विकसित करे। ऐसे में इन देशों का झुकाव इजरायल के पक्ष में दिखता है।
वहीं, ईरान रूस और चीन के साथ अपने रिश्तों को मजबूत करके संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। रूस-यूक्रेन युद्ध में ईरान ने रूस को 'शाहेद' ड्रोन सप्लाई किए थे, जिनका उपयोग रूस ने यूक्रेन पर हमले में किया। अगर भविष्य में चीन और रूस ईरान को सैन्य सहायता देते हैं तो यह संघर्ष और भी लंबा और खतरनाक हो सकता है। हालांकि, फिलहाल वैश्विक समर्थन के लिहाज से इजरायल की स्थिति मजबूत है।
भारत के लिए क्यों चिंता की बात है ये संघर्ष
भारत की नजर में पश्चिम एशिया का स्थायित्व बेहद महत्वपूर्ण है। भारत के इजरायल और ईरान, दोनों से अच्छे रिश्ते हैं। इजरायल के साथ भारत का घनिष्ठ रक्षा और तकनीकी सहयोग है, वहीं ईरान भारत के लिए सामरिक दृष्टिकोण से बेहद अहम है।
भारत चाबहार पोर्ट के जरिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया के देशों तक आसान और स्वतंत्र पहुंच बनाना चाहता है। अगर इस क्षेत्र में युद्ध बढ़ता है तो भारत की रणनीतिक परियोजनाओं पर असर पड़ सकता है।
होर्मुज जलडमरूमध्य
होर्मुज स्ट्रेट (Hormuz Strait) दुनिया के सबसे अहम समुद्री व्यापार मार्गों में से एक है। यहां से दुनिया का करीब 20% कच्चा तेल गुजरता है। प्रतिदिन लगभग 2.1 करोड़ बैरल तेल इस मार्ग से होता हुआ निकलता है। यह जलमार्ग मात्र 33 किमी चौड़ा है और इसका उत्तरी हिस्सा ईरान के नियंत्रण में है, जबकि दक्षिणी हिस्सा ओमान और यूएई के अधीन है।
ईरान चाहे तो थोड़ी सी सैन्य शक्ति के साथ इस मार्ग को ब्लॉक कर सकता है, जिससे पूरी दुनिया में ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है। भारत का दो-तिहाई से ज्यादा तेल आयात और आधे से ज्यादा LNG (Liquified Natural Gas) का आयात इसी रूट से होकर आता है। यदि यह बाधित होता है, तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर सीधा असर पड़ेगा।