राजस्थान की धरती वीरों की भूमि मानी जाती है, जहां किले, दुर्ग और ऐतिहासिक स्मारकों के साथ-साथ अनेकों दिव्य मंदिरों की गरिमा भी इतिहास के पन्नों में दर्ज है। इन्हीं पावन स्थलों में से एक है – एकलिंग महादेव मंदिर, जो न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि मेवाड़ की राजपरंपरा, धर्म और संस्कृति का जीवंत प्रतीक भी है। उदयपुर से लगभग 18 किलोमीटर दूर कैलाशपुरी नामक स्थान पर स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है, जो ‘एकलिंग’ नाम से पूजे जाते हैं। इस मंदिर को मेवाड़ के शासकों का आराध्य स्थल माना गया है और यहां की परंपरा के अनुसार, मेवाड़ के राजा स्वयं को केवल एकलिंग महादेव का प्रतिनिधि मानते हैं, राजा नहीं।
प्राचीन गौरव: एक देव, एक सम्राट
एकलिंग महादेव को मेवाड़ के ‘ईश्वरराज’ कहा जाता है। यानी यहां के शासक सिर्फ भगवान के सेवक या प्रतिनिधि होते थे। यह मान्यता मेवाड़ की शासन व्यवस्था को अध्यात्म से जोड़ती है और बताती है कि धर्म और राजनीति को किस प्रकार संतुलन में रखा गया था। महाराणा अपने किसी भी बड़े निर्णय से पूर्व एकलिंग जी के दर्शन कर आशीर्वाद लेते थे। युद्ध हो या राज्याभिषेक, कोई भी कार्य बिना महादेव की पूजा के आरंभ नहीं किया जाता।
ऐतिहासिक संदर्भ: बप्पा रावल से रायमल तक
हालांकि मंदिर के मूल निर्माण के संबंध में कोई लिखित साक्ष्य नहीं मिलता, परंतु लोकमान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना 8वीं शताब्दी में बप्पा रावल ने की थी। उनके गुरु हरित ऋषि को इस मंदिर का महंत माना जाता था, और बप्पा रावल उनके आदेश पर ही इस भूमि पर राज्य करने लगे। कालांतर में यह मंदिर कई बार विध्वंस हुआ, किन्तु समय-समय पर इसका पुनर्निर्माण भी होता रहा। विशेषकर महाराणा रायमल के समय में इस मंदिर का विशाल और वर्तमान स्वरूप में जीर्णोद्धार हुआ।
स्थापत्य की अद्भुत कला
एकलिंग महादेव मंदिर राजस्थानी स्थापत्य का अद्भुत उदाहरण है। चारों ओर ऊँचे परकोटे से घिरे इस मंदिर परिसर में लगभग 108 मंदिर स्थित हैं। मुख्य मंदिर का निर्माण सफेद संगमरमर और काले पत्थर से किया गया है, जो इसकी भव्यता को और बढ़ाता है। मुख्य मंदिर में भगवान शिव की चतुर्मुखी मूर्ति स्थापित है, जो चार दिशाओं की ओर देखती है – उत्तर में विष्णु, पूर्व में सूर्य, दक्षिण में रुद्र और पश्चिम में ब्रह्मा का प्रतिनिधित्व करती हुई यह मूर्ति अद्वितीय है। इस शिवलिंग की ऊंचाई लगभग 50 फीट है और इसे चांदी के नाग से अलंकृत किया गया है।
मंदिर परिसर की अन्य विशिष्टताएं
मुख्य मंदिर के अलावा परिसर में अनेक लघु मंदिर हैं, जिनमें:
- अंबा माता मंदिर
- गणेशजी मंदिर
- कालिका मंदिर
- नाथों का मंदिर
- मीराबाई मंदिर (विष्णु मंदिर)
शामिल हैं। इसके अतिरिक्त मंदिर के बाहर स्थापित नंदी की पीतल निर्मित प्रतिमा भी अत्यंत आकर्षक है। मंदिर की दीवारों पर की गई कारीगरी में नृत्य करती नारियों की मूर्तियां, गणेश व कार्तिकेय की छवियाँ और विविध देवी-देवताओं की कलात्मक प्रस्तुति देखने को मिलती है।
धार्मिक परंपराएं और पूजा पद्धति
एकलिंगजी मंदिर की पूजा परंपराएं अत्यंत विशिष्ट हैं। यहां पूजा करने का अधिकार परंपरागत रूप से गुसाईं संप्रदाय के पुजारियों को है, जिन्हें पहले नाथ संप्रदाय के महंतों से यह कार्य सौंपा गया था। मंदिर में हर सोमवार और शिवरात्रि के दिन विशेष पूजा होती है, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल होते हैं। महाशिवरात्रि पर तो यहां विशाल मेले का आयोजन भी किया जाता है।
वर्तमान विवाद और परंपरा
हाल ही में महाराणा महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के पश्चात उनके पुत्र विश्वराज सिंह मेवाड़ का पारंपरिक राजतिलक हुआ। चित्तौड़गढ़ दुर्ग में संपन्न इस समारोह के बाद उन्हें ‘महाराणा’ की उपाधि दी गई, जिसके बाद एकलिंगजी मंदिर में उनके द्वारा की गई पूजा को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया। चूंकि मंदिर प्रशासन व परंपराएं काफी कठोर हैं, इस कारण यह चर्चा का विषय बन गया कि मंदिर में कौन पूजा कर सकता है और किसके अधिकार मान्य हैं। यह विवाद भले ही वर्तमान समय का हो, पर यह इस बात का प्रमाण है कि एकलिंग महादेव मंदिर आज भी मेवाड़ की पहचान और शक्ति का केंद्र है।
चमत्कारी मान्यताएं और श्रद्धा
एकलिंगजी महादेव मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां भगवान शिव साक्षात जाग्रत रूप में विराजते हैं और अपने भक्तों की हर संकट में रक्षा करते हैं। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि यहां सच्चे मन से की गई प्रार्थना अवश्य फलदायक होती है। इतिहास में यह भी उल्लेख है कि महान योद्धा महाराणा प्रताप हर युद्ध से पहले इस मंदिर में आकर आशीर्वाद लिया करते थे। उनकी वीरता, आत्मबल और दृढ़ निश्चय को इस पवित्र स्थल से एक विशेष शक्ति मिलती थी, जो उन्हें हर कठिनाई का सामना करने की प्रेरणा देती थी। यह मंदिर आज भी श्रद्धा और चमत्कार की प्रतीक बना हुआ है।
पर्यटन और आध्यात्मिकता
एकलिंगजी महादेव मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक धरोहर और लोकप्रिय पर्यटन केंद्र भी है। यह स्थान उन लोगों के लिए विशेष है जो भक्ति, शांति और प्राचीन स्थापत्य का अनुभव करना चाहते हैं। हर साल हजारों श्रद्धालु और पर्यटक यहाँ आते हैं और मंदिर की सुंदर मूर्तियाँ, शांत वातावरण और इतिहास से जुड़ी कहानियों का आनंद लेते हैं। जब कोई व्यक्ति मंदिर परिसर में प्रवेश करता है, तो उसे एक दिव्य ऊर्जा और आध्यात्मिक शांति का अनुभव होता है, जो मन और आत्मा दोनों को सुकून देती है।
एक विरासत, एक प्रेरणा
एकलिंग महादेव मंदिर केवल एक शिव मंदिर नहीं, बल्कि मेवाड़ की आत्मा है। यह स्थान हमें यह सिखाता है कि किस प्रकार धर्म, राजनीति और समाज का सामंजस्य एक आदर्श राज्य व्यवस्था की नींव बन सकता है। यह मंदिर आज भी यह संदेश देता है कि राजा केवल सत्ता का स्वामी नहीं, बल्कि सेवा और धर्म का प्रतीक होता है। मेवाड़ के राणाओं ने इसे साकार किया और एकलिंग महादेव को अपना स्वामी मानकर शासन किया।
एकलिंग महादेव मंदिर श्रद्धा, शक्ति और परंपरा का ऐसा संगम है, जो युगों-युगों तक समाज को प्रेरणा देता रहेगा। यहां शिव केवल पूज्य नहीं, बल्कि राज्य के अधिष्ठाता हैं। इस मंदिर की भव्यता, इसका इतिहास और आध्यात्मिक ऊर्जा हर किसी को आकर्षित करती है। अगर आप राजस्थान जाएं, तो एकलिंगजी महादेव के इस दिव्य धाम के दर्शन करना ना भूलें – जहां केवल मंदिर नहीं, बल्कि एक युग जीवित है।