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F-35B: 37 दिन बाद उड़ान के लिए तैयार हुआ ब्रिटिश F-35B फाइटर जेट, तिरुवनंतपुरम से टेकऑफ की तैयारी पूरी

F-35B: 37 दिन बाद उड़ान के लिए तैयार हुआ ब्रिटिश F-35B फाइटर जेट, तिरुवनंतपुरम से टेकऑफ की तैयारी पूरी

तिरुवनंतपुरम एयरपोर्ट पर 14 जून को इमरजेंसी लैंडिंग करने वाला ब्रिटिश F-35B फाइटर जेट अब उड़ान के लिए तैयार है। 37 दिन तक मरम्मत चली, जिसमें भारत ने पूरा सहयोग किया।

F-35B: 14 जून 2025 को खराब मौसम और कम ईंधन के चलते तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर इमरजेंसी लैंडिंग करने वाला ब्रिटिश रॉयल नेवी का अत्याधुनिक F-35B लाइटनिंग II फाइटर जेट अब उड़ान भरने को तैयार है। यह जेट बीते 37 दिनों से एयरपोर्ट पर फंसा हुआ था। अब इसकी तकनीकी मरम्मत पूरी कर ली गई है और इसे टेस्ट फ्लाइट के लिए तैयार किया गया है।

कैसे हुई थी इमरजेंसी लैंडिंग?

14 जून की रात करीब 9:28 बजे HMS प्रिंस ऑफ वेल्स नामक ब्रिटिश एयरक्राफ्ट करियर से उड़ान भरने के बाद यह जेट केरल के तट से 185 किमी दूर अरब सागर के ऊपर था। यह मिशन भारत-ब्रिटेन के बीच संयुक्त नेवल अभ्यास का हिस्सा था। उसी दौरान मौसम बिगड़ गया और ईंधन की मात्रा भी कम हो गई, जिसके कारण पायलट को इमरजेंसी लैंडिंग का निर्णय लेना पड़ा।

भारतीय वायुसेना ने IACCS (Integrated Air Command and Control System) के जरिए जेट को तिरुवनंतपुरम इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर सुरक्षित लैंड कराने में सहायता की। शुरुआत में ऐसा माना गया था कि ईंधन भरने के बाद जेट वापस उड़ान भर सकेगा। लेकिन बाद में तकनीकी जांच में इसके हाइड्रॉलिक सिस्टम और APU (Auxiliary Power Unit) में गंभीर खराबी पाई गई।

F-35B की खासियत क्या है?

F-35B लाइटनिंग II एक पांचवीं पीढ़ी का स्टेल्थ फाइटर जेट है, जिसे अमेरिकी कंपनी Lockheed Martin ने तैयार किया है। इसकी कीमत लगभग 110-120 मिलियन डॉलर यानी 900 से 1000 करोड़ रुपये के बीच है।

इस जेट की सबसे खास बात इसकी STOVL क्षमता है, यानी ये कम रनवे पर टेकऑफ कर सकता है और हेलिकॉप्टर की तरह वर्टिकल लैंडिंग भी कर सकता है। इसे विशेष रूप से एयरक्राफ्ट करियर जैसे प्लेटफॉर्म के लिए डिजाइन किया गया है।

इसमें उन्नत रडार, सेंसर, डेटा-शेयरिंग सिस्टम, और आधुनिक हथियार प्रणाली होती है। F-35B को 'उड़ता हुआ कंप्यूटर' भी कहा जाता है क्योंकि इसकी नेविगेशन और लड़ाकू क्षमताएं अत्यधिक तकनीकी हैं।

क्यों रुका रह गया जेट इतने दिनों तक?

लैंडिंग के बाद जेट को रीफ्यूल किया गया था। लेकिन उड़ान से पहले जब अंतिम जांच की गई, तो पता चला कि हाइड्रॉलिक सिस्टम और APU में खराबी है। शुरू में HMS प्रिंस ऑफ वेल्स से तीन टेक्नीशियन मरम्मत के लिए आए, लेकिन वे सफलता नहीं पा सके। कारण था इस जेट की जटिल तकनीक और जरूरी उपकरणों की उपलब्धता।

हाइड्रॉलिक सिस्टम जेट के लैंडिंग गियर, ब्रेक और कंट्रोल सरफेस को ऑपरेट करता है। वहीं APU एक बैकअप पावर यूनिट है, जो विशेष रूप से इमरजेंसी में आवश्यक होता है।

केरल के मानसून मौसम ने स्थिति को और जटिल बना दिया। जेट खुले में बे नंबर 4 पर खड़ा था, और भारी बारिश ने मरम्मत को मुश्किल बना दिया। शुरू में ब्रिटिश नेवी ने एयर इंडिया के हैंगर में शिफ्ट करने से इनकार किया, ताकि स्टेल्थ तकनीक की गोपनीयता बनी रहे। लेकिन 6 जुलाई को, यानी 22 दिन बाद, इसे हैंगर में शिफ्ट किया गया।

मरम्मत कैसे हुई?

6 जुलाई को ब्रिटिश और अमेरिकी इंजीनियरों की 25 सदस्यीय टीम RAF के A400M एटलस विमान से तिरुवनंतपुरम पहुंची। इस टीम के साथ खास उपकरण और एक टो व्हीकल भी लाया गया। जेट को एयर इंडिया के MRO (Maintenance, Repair and Overhaul) हैंगर 2 में ले जाया गया। मरम्मत के दौरान सुरक्षा बेहद सख्त रही। हैंगर को पूरी तरह सील कर दिया गया। CISF को हैंगर के अंदर जाने की अनुमति नहीं दी गई। ब्रिटिश सैन्य कर्मियों ने पूरी निगरानी संभाली। 37 दिन तक लगातार मरम्मत और जांच चलती रही। अंततः 21 जुलाई को जेट टेस्ट फ्लाइट के लिए तैयार हो गया।

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