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हरिहर अवतार की अनसुनी कथा: क्यों शिव ने दिया विष्णु को आधा शरीर?

हरिहर अवतार की अनसुनी कथा: क्यों शिव ने दिया विष्णु को आधा शरीर?

हिंदू धर्म में भगवान शिव और विष्णु को दो सबसे प्रमुख देवताओं के रूप में पूजा जाता है। एक ओर शिव हैं जो संहारक माने जाते हैं और दूसरी ओर विष्णु हैं जो पालन करने वाले हैं। पर क्या आपने कभी सोचा है कि अगर ये दोनों शक्तियां एक साथ एक ही रूप में दिखाई दें, तो वह रूप कैसा होगा? इसी सवाल का जवाब है भगवान का हरिहर अवतार। यह वह अद्भुत और दिव्य रूप है जिसमें शिव और विष्णु एक ही शरीर में आधे-आधे रूप में प्रकट होते हैं।

हरिहर शब्द का अर्थ क्या है

हरिहर दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘हरि’ यानी भगवान विष्णु और ‘हर’ यानी भगवान शिव। जब ये दोनों देवता एक ही शरीर में एकाकार होते हैं तो उस अवतार को हरिहर कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह रूप केवल एकता का नहीं, बल्कि ब्रह्मांड की संपूर्ण व्यवस्था का भी प्रतीक है।

हरिहर अवतार की पौराणिक कथा

हरिहर अवतार से जुड़ी एक प्रसिद्ध कथा है। कहा जाता है कि एक बार ब्रह्मा जी और विष्णु जी ने भगवान शिव की घोर तपस्या की। शिवजी उनकी भक्ति से प्रसन्न हुए और वरदान देने को तैयार हो गए। तब ब्रह्मा जी ने शिव से वर मांगा कि वह उनके पुत्र के रूप में प्रकट हों। इसके कुछ समय बाद ब्रह्मा जी सृष्टि की रचना में असफल रहे। तब शिवजी ने वरदान पूरा करने के लिए पुत्र रूप में अवतार लिया।

इसी दौरान भगवान विष्णु ने भी शिव की भक्ति मांगी और यह इच्छा जताई कि वे शिव के साथ सदा एकाकार रहना चाहते हैं। तब भगवान शिव ने विष्णु को अपना आधा शरीर दे दिया और दोनों मिलकर हरिहर रूप में प्रकट हुए। इस अवतार में शरीर का दाहिना हिस्सा शिव का और बायां हिस्सा विष्णु का होता है।

हरिहर का दिव्य रूप

शास्त्रों में हरिहर अवतार का स्वरूप बेहद विशिष्ट और चमत्कारी बताया गया है। एक ओर उनके हाथ में त्रिशूल और डमरू होते हैं, तो दूसरी ओर चक्र और गदा। दाहिनी ओर पार्वती जी की झलक मिलती है, तो बाईं ओर लक्ष्मी जी विराजमान होती हैं। इस रूप में शिव और विष्णु की शक्तियां एक साथ दिखाई देती हैं।

यह अवतार न केवल देवताओं के मिलन का प्रतीक है, बल्कि यह यह भी दर्शाता है कि सृष्टि का संचालन, संरक्षण और विनाश – तीनों ही कार्य एक ही परम शक्ति के विभिन्न रूपों से होते हैं।

सावन में क्यों होती है हरिहर पूजन की खास मान्यता

सावन का महीना वैसे तो भगवान शिव को समर्पित होता है लेकिन इस दौरान हरिहर अवतार की पूजा भी विशेष फलदायी मानी जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सावन के महीने में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते हैं और चार महीने तक क्षीरसागर में शयन करते हैं। इस अवधि को चातुर्मास कहा जाता है।

जब विष्णु विश्राम में होते हैं, तब ब्रह्मांड की व्यवस्था की जिम्मेदारी भगवान शिव के पास होती है। ऐसे में हरिहर अवतार की पूजा यह दर्शाती है कि भक्त एक साथ दोनों देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त कर रहे हैं। खासकर सावन में जब शिवजी भूलोक में वास करते हैं, तब हरिहर स्वरूप की साधना और अधिक फलदायक मानी जाती है।

हरिहर पूजा के लाभ से जुड़ी मान्यता

धार्मिक ग्रंथों में कहा गया है कि हरिहर अवतार की पूजा करने से भक्त को विष्णु की कृपा से जीवन में संतुलन, शांति और समृद्धि मिलती है, वहीं शिव की कृपा से रोग, शोक, दुख और भय का नाश होता है। यह भी माना जाता है कि जो भी श्रद्धालु हरिहर रूप की सच्चे मन से उपासना करता है, उसके जीवन में सभी प्रकार की बाधाएं स्वतः दूर हो जाती हैं।

कई मंदिरों में होती है हरिहर की विशेष पूजा

भारत के कई हिस्सों में हरिहर अवतार के मंदिर हैं जहां सावन के महीने में विशेष पूजा की जाती है। खासतौर पर दक्षिण भारत के कर्नाटक, तमिलनाडु और आंध्रप्रदेश में हरिहर देव के मंदिरों में विशेष उत्सव मनाए जाते हैं। उत्तर भारत में भी कुछ स्थानों पर हरिहर पूजा की परंपरा देखी जाती है, जहां शिव-विष्णु का यह संयुक्त रूप भक्तों के बीच अत्यंत श्रद्धा का केंद्र होता है।

हरिहर अवतार से मिलने वाली जीवन सीख

हरिहर अवतार न केवल एक धार्मिक अवधारणा है बल्कि यह हमें यह भी सिखाता है कि भले ही कार्य अलग-अलग हों – कोई संहारक हो या कोई पालनकर्ता – लेकिन उनका उद्देश्य एक ही होता है, और वह है सृष्टि की रक्षा और धर्म की स्थापना। यह रूप भक्तों को यह भाव देता है कि सब कुछ एक ही शक्ति का विस्तार है, और उसे दो रूपों में देखना भी एक मायावी भ्रम है।

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