कई बार ऐसी स्थिति आती है जब किसी व्यक्ति को अचानक पैसों की जरूरत होती है, लेकिन वह अपने लॉन्ग टर्म निवेश को तोड़ना नहीं चाहता। ऐसे में एक विकल्प होता है कि अपने निवेश को बैंक या फाइनेंशियल संस्था के पास गिरवी रखकर लोन लिया जाए। इस तरह के लोन को "लोन अगेंस्ट एसेट्स" कहा जाता है और आमतौर पर इसकी ब्याज दर पर्सनल लोन से कम होती है।
बड़ी संख्या में लोग आजकल FD, म्यूचुअल फंड, शेयर, गोल्ड या बीमा पॉलिसी जैसी संपत्तियों को गिरवी रखकर लोन ले रहे हैं। लेकिन यह फैसला लेने से पहले इससे जुड़ी कुछ अहम बातों को समझना जरूरी होता है।
लोन-टू-वैल्यू यानी कितनी रकम तक मिलेगा लोन
जब आप अपनी कोई संपत्ति गिरवी रखते हैं, तो उसकी कुल वैल्यू के अनुसार एक तय प्रतिशत तक ही लोन मिलता है। इसे लोन-टू-वैल्यू रेशियो कहते हैं।
- गोल्ड: कुल वैल्यू का लगभग 75 प्रतिशत तक
- फिक्स्ड डिपॉजिट: 90 से 95 प्रतिशत तक
- शेयर: लगभग 50 से 60 प्रतिशत तक
- म्यूचुअल फंड (Debt): 70 से 80 प्रतिशत तक
- PPF: सिर्फ 25 प्रतिशत तक
- बीमा पॉलिसी: सम एश्योर्ड या सरेंडर वैल्यू के अनुसार
यह अनुपात बैंक या संस्था की पॉलिसी और आरबीआई के नियमों पर निर्भर करता है।
किन चीजों को गिरवी रखकर लिया जा सकता है लोन
बैंकों और NBFCs से लोन लेने के लिए कई तरह की संपत्तियां गिरवी रखी जा सकती हैं। आमतौर पर इनमें शामिल हैं
- फिक्स्ड डिपॉजिट (FD)
- शेयर या डिमैट अकाउंट में रखे गए स्टॉक्स
- गोल्ड यानी सोने के आभूषण या सिक्के
- म्यूचुअल फंड्स (खासकर डेब्ट फंड्स)
- बीमा पॉलिसी (ज्यादातर एंडोमेंट पॉलिसी)
- पब्लिक प्रोविडेंट फंड (PPF)
हर संपत्ति की एक लिमिट होती है, जिसके आधार पर लोन की राशि तय होती है। यह लिमिट लोन-टू-वैल्यू (LTV) के तौर पर जानी जाती है।
क्या हैं इसके नुकसान और जोखिम
हालांकि इन लोन की ब्याज दर कम होती है, लेकिन इससे जुड़े कुछ अहम जोखिम भी होते हैं। अगर गिरवी रखी गई संपत्ति की बाजार वैल्यू घटती है, तो बैंक अतिरिक्त मार्जिन या सिक्योरिटी की मांग कर सकता है। ऐसा न करने पर वह आपकी गिरवी संपत्ति को बेच भी सकता है।
शेयर या म्यूचुअल फंड्स जैसी एसेट्स की वैल्यू बाजार पर निर्भर होती है। अगर बाजार गिरता है, तो आपकी गिरवी संपत्ति का मूल्य भी गिर सकता है और यह स्थिति आपके लिए मुश्किल पैदा कर सकती है।
दूसरी बात, इस तरह के लोन पर कोई टैक्स छूट नहीं मिलती, जैसा होम लोन या एजुकेशन लोन में मिलता है। साथ ही, समय पर भुगतान न करने पर गिरवी संपत्ति को जब्त किए जाने का खतरा भी होता है।
FD पर लोन लेना कितना आसान है
फिक्स्ड डिपॉजिट पर लोन लेना सबसे आसान और सुरक्षित विकल्प माना जाता है। बैंक 90 से 95 प्रतिशत तक राशि बतौर लोन दे देते हैं और ब्याज दर FD की ब्याज दर से लगभग 1 या 2 प्रतिशत ज्यादा होती है।
इसमें आपका मूल निवेश सुरक्षित रहता है और अगर आप समय से लोन चुका देते हैं, तो आपकी FD पर कोई असर नहीं होता। इसे ओवरड्राफ्ट फैसिलिटी के रूप में भी दिया जाता है।
बीमा पॉलिसी और PPF पर लोन की शर्तें अलग होती हैं
बीमा पॉलिसी पर लोन लेने के लिए पॉलिसी का एंडोमेंट या पारंपरिक होना जरूरी होता है। टर्म प्लान पर लोन नहीं लिया जा सकता। बीमा कंपनियां आम तौर पर सरेंडर वैल्यू के आधार पर लोन देती हैं।
वहीं PPF पर लोन की सुविधा खाते के तीसरे और छठे साल के बीच ही उपलब्ध होती है। इसमें भी राशि सीमित होती है और ब्याज दर सरकारी नियमों पर आधारित होती है।
गोल्ड लोन लेते समय ध्यान देने योग्य बातें
गोल्ड लोन की प्रक्रिया भी सरल होती है और इसमें कम समय में लोन मिल जाता है। हालांकि, यह ध्यान रखना जरूरी होता है कि अगर तय समय में रकम नहीं चुकाई गई, तो बैंक आपके सोने को नीलाम कर सकता है।
इसके अलावा कुछ संस्थाएं प्रोसेसिंग फीस, स्टोरेज चार्ज और इंश्योरेंस जैसे अतिरिक्त शुल्क भी लेती हैं, जिनका असर आपकी कुल लागत पर पड़ता है।
शेयर और म्यूचुअल फंड्स पर लोन जोखिम भरा हो सकता है
शेयर या इक्विटी म्यूचुअल फंड पर लोन लेना थोड़ा जोखिम भरा होता है क्योंकि इनकी कीमतें बाजार की चाल पर निर्भर करती हैं। बाजार में गिरावट आने पर बैंक की ओर से मार्जिन कॉल आ सकता है यानी आपको अतिरिक्त सिक्योरिटी देनी होगी।
बैंक कुछ विशेष शेयरों पर ही लोन देते हैं और उनके चयन की एक सूची होती है। ऐसे में जरूरी है कि आप यह जांच लें कि आपके शेयर या फंड उस लिस्ट में आते हैं या नहीं।