कनाडा में हो रही G7 बैठक में ट्रंप के साथ टकराव से बचने के प्रयासों के बीच, ईरान-इजरायल संघर्ष, अमेरिकी टैरिफ और वैश्विक सुरक्षा जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा होगी। कनाडा इस बार पारंपरिक संयुक्त बयान जारी करने के बजाय एक अध्यक्षीय समरी जारी करेगा।
Canada: G7 देशों की इस महत्वपूर्ण बैठक का आयोजन इस बार कनाडा में हो रहा है, जहां प्रधानमंत्री मार्क कार्नी इस सम्मेलन को टकराव के बजाय सहयोग और समाधान के मंच के रूप में पेश करना चाहते हैं। उन्होंने अपनी प्राथमिकताओं में शांति और सुरक्षा को मज़बूत करने, क्रिटिकल मिनरल्स की आपूर्ति श्रृंखला को विकसित करने और नौकरियों के अवसर पैदा करने को सबसे ऊपर रखा है।
कनाडा की सरकार चाहती है कि इस बार बैठक शांतिपूर्ण और परिणामोन्मुख हो, इसलिए किसी विवादास्पद विषय पर अमेरिका विशेषकर डोनाल्ड ट्रंप के साथ टकराव टालने की रणनीति पर काम किया जा रहा है।
ईरान-इजरायल संघर्ष और टैरिफ रहेगा एजेंडे में शीर्ष पर
बैठक में भाग लेने वाले नेता मुख्य रूप से कुछ अंतरराष्ट्रीय संकटों और आर्थिक मुद्दों पर फोकस करेंगे। जर्मनी के चांसलर फ्रेडरिक मर्ज ने साफ कहा कि ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव को एजेंडे में सबसे ऊपर रखा गया है। इसके अलावा, अमेरिकी टैरिफ और रूस-यूक्रेन युद्ध को लेकर भी गहन चर्चा की जाएगी। टैरिफ के मुद्दे पर अमेरिका और उसके G7 सहयोगियों के बीच पहले से ही मतभेद हैं, और कनाडा चाहता है कि इन विषयों पर बातचीत सौहार्दपूर्ण और बिना टकराव के हो।
ट्रंप से टकराव टालने की रणनीति क्यों?
2018 के सम्मेलन की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए, जहां तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कनाडाई प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को “बेईमान और कमजोर” करार देते हुए आखिरी वक्त पर संयुक्त बयान से अपना समर्थन वापस ले लिया था, कनाडा इस बार ऐसी स्थिति से बचना चाहता है।
इसलिए, मेजबान कनाडा ने यह फैसला लिया है कि बैठक के बाद कोई पारंपरिक संयुक्त बयान नहीं जारी किया जाएगा। इसके स्थान पर, सम्मेलन के अंत में अध्यक्ष की ओर से एक समरी साझा की जाएगी, जिससे किसी देश विशेष पर कोई सीधा राजनीतिक दबाव न पड़े।
राजनयिकों की भूमिका और टोन में नरमी
कनाडा के विदेश मंत्रालय और G7 में शामिल राजनयिक इस बार पूरी कोशिश कर रहे हैं कि सम्मेलन का माहौल तनाव रहित रहे। एक वरिष्ठ कनाडाई अधिकारी ने कहा कि इस सम्मेलन का फोकस उन बिंदुओं पर रहेगा, जो सभी सातों सदस्य देशों—कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका—को एक साथ जोड़ते हैं।
कई राजनयिक मानते हैं कि यदि ट्रंप बैठक के दौरान कोई "राजनीतिक विस्फोट" नहीं करते हैं तो यह सम्मेलन सफल माना जाएगा। ओटावा विश्वविद्यालय के अंतरराष्ट्रीय मामलों के प्रोफेसर रोलैंड पेरिस ने भी यही विचार साझा किया।
ट्रंप को कैसे संभालेगा शिखर सम्मेलन?
2018 में ट्रूडो के निजी प्रतिनिधि रहे कनाडाई सीनेटर पीटर बोहम के अनुसार, इस बार की बैठक अपेक्षाकृत लंबी होगी ताकि अलग-अलग देशों को ट्रंप से आमने-सामने बात करने का मौका मिल सके। ट्रंप को आमतौर पर बड़ी बैठकों और गोलमेज चर्चा की बजाय व्यक्तिगत बैठकें अधिक पसंद हैं, इसलिए लीडर्स उन्हें व्यक्तिगत रूप से अपनी चिंताओं से अवगत कराएंगे।
इस सम्मेलन में यूक्रेन, भारत, मैक्सिको, ऑस्ट्रेलिया, दक्षिण कोरिया, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका के नेता भी आमंत्रित किए गए हैं। इससे स्पष्ट है कि चर्चा का दायरा केवल पारंपरिक G7 तक सीमित नहीं रहेगा।