सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा पर सुनवाई में कहा कि निःसंतान विधवा की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति मायके के बजाय ससुराल वालों को जाएगी। अदालत ने विवाह में गोत्र परिवर्तन और 'कन्यादान' परंपरा को मान्यता दी।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) की धारा पर सुनवाई करते हुए एक महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। अदालत ने साफ किया कि निःसंतान हिंदू विधवा की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति मायके के बजाय ससुराल वालों को मिलेगी। अदालत ने इस दौरान हिंदू विवाह की परंपरा और गोत्र परिवर्तन पर भी अपनी राय रखी।
विवाह के बाद महिला का बदलता है गोत्र
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह में जब कोई महिला शादी करती है तो उसका गोत्र बदल जाता है। यह परंपरा हजारों वर्षों से चली आ रही है और हिंदू समाज में इसे हमेशा से मान्यता दी गई है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि वह इस परंपरा को तोड़ना नहीं चाहती।
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना की टिप्पणी
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना ने कहा कि हिंदू समाज में 'कन्यादान' की परंपरा है। इसके अंतर्गत विवाह के समय महिला का गोत्र बदलकर उसके पति के गोत्र में शामिल हो जाता है। उन्होंने यह भी बताया कि विवाह के बाद महिला अपने मायके की जिम्मेदारी से अलग हो जाती है और पति के परिवार का हिस्सा बन जाती है।
गौरतलब है कि न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना सुप्रीम कोर्ट की इकलौती महिला जज हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एक विवाहित महिला अपने भाई से भरण-पोषण का दावा नहीं करती क्योंकि विवाह के बाद उसकी जिम्मेदारी पति और उसके परिवार की होती है।
क्या है पूरा मामला?
मामला एक निःसंतान हिंदू विधवा की संपत्ति के उत्तराधिकार से जुड़ा है, जो बिना वसीयत के मर जाती है। मौजूदा कानून के तहत, ऐसी स्थिति में संपत्ति मायके के बजाय ससुराल वालों को दी जाती है। इसी प्रावधान को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दाखिल की गई थीं।
एक मामले में कोविड-19 के दौरान एक युवा दंपति की मृत्यु हो गई। इसके बाद पुरुष की मां और महिला की मां के बीच संपत्ति को लेकर विवाद शुरू हो गया। पुरुष की मां का कहना था कि पूरी संपत्ति उसे मिलनी चाहिए, जबकि महिला की मां ने अपनी बेटी की संपत्ति और कमाई पर अधिकार जताया।
इसी तरह एक अन्य मामले में जब निःसंतान दंपति की मृत्यु हो गई, तो पुरुष की बहन ने संपत्ति पर दावा किया। इन मामलों में याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत से कहा कि यह केवल व्यक्तिगत विवाद नहीं है बल्कि एक जनहित का मुद्दा है और सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप की आवश्यकता है।
'कन्यादान' और 'गोत्र-दान' की परंपरा
न्यायमूर्ति बी.वी. नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर. महादेवन की बेंच ने सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील से कड़े सवाल पूछे। न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि हिंदू विवाह में 'कन्यादान' और 'गोत्र-दान' की परंपरा के तहत महिला अपने पति और उसके परिवार की जिम्मेदारी में आती है।
उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में विवाह की रस्मों के दौरान यह स्पष्ट रूप से कहा जाता है कि महिला एक गोत्र से दूसरे गोत्र में जाती है। इसी वजह से विवाह के बाद महिला का संबंध पति के परिवार से माना जाता है।
महिला का अधिकार और वसीयत का विकल्प
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई महिला चाहे तो वह अपनी संपत्ति का बंटवारा वसीयत के जरिए कर सकती है। इसके अलावा वह दोबारा विवाह भी कर सकती है। लेकिन मौजूदा कानून यानी हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 15(1)(b) के अनुसार, अगर निःसंतान विधवा बिना वसीयत के मर जाती है और उसने दोबारा विवाह नहीं किया है, तो उसकी संपत्ति मायके को नहीं बल्कि पति के वारिसों को मिलती है।
सुप्रीम कोर्ट ने मध्यस्थता का रास्ता सुझाया
अदालत ने इस संपत्ति विवाद को मध्यस्थता के लिए भेजते हुए धारा 15(1)(b) की वैधता पर सुनवाई नवंबर तक के लिए स्थगित कर दी है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह से जुड़ी परंपराओं को तोड़ना उसका उद्देश्य नहीं है।