सावन का महीना भगवान शिव की भक्ति और पितरों की शांति के लिए जाना जाता है। इस महीने की अमावस्या तिथि को 'हरियाली अमावस्या' कहा जाता है, जो साल 2025 में 24 जुलाई को पड़ रही है। इस दिन गंगा स्नान, तर्पण और दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। लेकिन कम लोग जानते हैं कि इस दिन नान्दीमुख श्राद्ध करने की परंपरा भी बेहद पुरानी है, जिसे करने से पितरों की कृपा के साथ जीवन में कई सकारात्मक परिवर्तन आने लगते हैं।
नान्दीमुख श्राद्ध क्या होता है?
नान्दीमुख श्राद्ध को संस्कृत में 'आभ्युदयिक श्राद्ध' भी कहा जाता है। इसका अर्थ होता है ऐसा श्राद्ध जो शुभता और उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। यह श्राद्ध सामान्य प्रेत श्राद्ध से अलग होता है। नान्दीमुख में 'नान्दी' शब्द का मतलब आनंद होता है और 'मुख' का अर्थ है आरंभ। यानी यह श्राद्ध जीवन में सुख, समृद्धि और शुभ कार्यों के आरंभ के लिए किया जाता है।
हरियाली अमावस्या पर क्यों करें नान्दीमुख श्राद्ध?
शास्त्रों और पुराणों के अनुसार, सावन की अमावस्या को पितृलोक के द्वार खुले होते हैं और इस दिन किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान का सीधा लाभ पितरों तक पहुंचता है। नान्दीमुख श्राद्ध इस दिन करने से जीवन में सकारात्मक ऊर्जा आती है और शुभ कार्यों में आने वाली विघ्न-बाधाएं समाप्त हो जाती हैं।
यह दिन खासतौर पर उन लोगों के लिए भी विशेष है जो विवाह, गृह प्रवेश, नई नौकरी, व्यापार या अन्य किसी शुभ कार्य की योजना बना रहे हों। ऐसा माना जाता है कि यदि इन कार्यों से पहले नान्दीमुख श्राद्ध कर लिया जाए, तो पितृ कृपा से सबकुछ मंगलमय हो जाता है।
नान्दीमुख श्राद्ध कैसे करें?
नान्दीमुख श्राद्ध का विधान वेदों और पुराणों में विस्तार से बताया गया है। इसे विधिपूर्वक करने के लिए कुछ खास क्रियाएं की जाती हैं
- सबसे पहले मातृका पूजन किया जाता है।
- इसके बाद वसोर्धारा की प्रक्रिया होती है जिसमें विशेष जलधारा पिंडों पर चढ़ाई जाती है।
- फिर सपिण्ड, पिंड रहित, आमान्न और हेम श्राद्धि कर्म किए जाते हैं।
- पवित्रिकरण, आचमन, शिखा बंधन, आसन शुद्धि, प्राणायाम, पंचगव्य निर्माण, संकल्प, पिंडदान, ब्राह्मण भोजन, और आशीर्वाद आदि की प्रक्रिया भी शामिल होती है।
- इस दिन श्रद्धा और नियम से भोजन बनाकर ब्राह्मणों को खिलाया जाता है और दक्षिणा दी जाती है।
कहां करना चाहिए नान्दीमुख श्राद्ध?
अगर संभव हो तो नान्दीमुख श्राद्ध गंगा नदी, हरिद्वार, गया, प्रयागराज जैसे तीर्थ स्थलों पर किया जाए तो इसका पुण्य कई गुना बढ़ जाता है। लेकिन अगर तीर्थ जाना संभव न हो तो घर पर भी ब्राह्मणों की उपस्थिति में ये श्राद्ध कर्म किया जा सकता है।
नान्दीमुख श्राद्ध से क्या लाभ होते हैं?
इस श्राद्ध को करने से कई प्रकार के लाभ प्राप्त होते हैं:
- जीवन के सभी शुभ कार्य निर्विघ्न पूरे होते हैं।
- पितृ दोष से राहत मिलती है और कुल में शांति का वास होता है।
- पारिवारिक सदस्यों को आरोग्य और दीर्घायु की प्राप्ति होती है।
- देवताओं की कृपा के साथ सर्प दोष से भी मुक्ति मिलती है।
- घर-परिवार में सुख-शांति और समृद्धि बढ़ती है।
क्या हर कोई कर सकता है यह श्राद्ध?
हां, जो भी व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करता है, वह यह श्राद्ध कर सकता है। हालांकि, इसके लिए योग्य ब्राह्मणों की मदद लेना बेहतर होता है ताकि समस्त विधियां शास्त्रों के अनुसार पूरी की जा सकें।
पौराणिक महत्व भी जुड़ा है
शिव पुराण और गरुड़ पुराण में इस श्राद्ध का उल्लेख मिलता है। भगवान शिव ने माता पार्वती को नान्दीमुख श्राद्ध के महत्व के बारे में बताया था कि कैसे इससे पितृ संतुष्ट होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। यही वजह है कि आज भी कई सनातन परंपराओं में इस श्राद्ध का विशेष स्थान है।
हरियाली अमावस्या से जुड़े अन्य कार्य भी
इस दिन वृक्षारोपण करने की भी परंपरा है। पीपल, तुलसी, नीम जैसे पवित्र पेड़ों को लगाना विशेष पुण्यदायी माना गया है। इसके साथ ही गरीबों को अन्न, वस्त्र, जल पात्र, छाता, चप्पल आदि का दान करने की भी परंपरा है।
श्रद्धा से ही श्राद्ध का फल
नान्दीमुख श्राद्ध करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि मन, वाणी और कर्म से पूरी श्रद्धा होनी चाहिए। तभी इसका पूर्ण फल मिलता है और पितरों की कृपा बनी रहती है।