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जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा: एक दिव्य संकेत और अद्भुत परंपरा का रहस्य

जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा: एक दिव्य संकेत और अद्भुत परंपरा का रहस्य

भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक विरासत में श्री जगन्नाथ मंदिर, पुरी का विशेष स्थान है। यहां हर वर्ष भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है, जो श्रद्धालुओं के लिए परम सौभाग्य का अवसर माना जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस मंदिर की सबसे रहस्यमयी और अनिवार्य परंपराओं में से एक है – मंदिर की ध्वजा को प्रतिदिन बदलना। यह केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं, बल्कि गहरी आध्यात्मिक और ऐतिहासिक परंपरा है, जिसकी जड़ें 800 वर्षों से भी अधिक पुरानी हैं।

रोज़ क्यों बदली जाती है मंदिर की ध्वजा?

पुरी के जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा प्रतिदिन बदली जाती है और यह कोई सामान्य प्रक्रिया नहीं बल्कि धार्मिक अनिवार्यता है। ऐसी मान्यता है कि यदि किसी दिन यह ध्वजा नहीं बदली गई, तो मंदिर स्वतः 18 वर्षों तक बंद हो जाएगा। इसलिए चाहे वर्षा हो या तूफान, ध्वज बदलने की यह सेवा कभी नहीं रुकती।

श्रद्धालुओं का यह विश्वास है कि मंदिर की ध्वजा भगवान जगन्नाथ की कृपा का प्रतीक है, जो आकाश की ओर प्रसारित होती है। यह ध्वजा भगवान की उपस्थिति का ऐसा संकेत है, जो दूर-दूर तक फैली उनकी दिव्य शक्ति को दर्शाता है।

हवा के विपरीत लहराती है ध्वजा: ईश्वर की अद्भुत लीला

पुरी के जगन्नाथ मंदिर की ध्वजा से जुड़ी सबसे अनोखी बात यह है कि यह हमेशा हवा की दिशा के विपरीत लहराती है। समुद्र के किनारे स्थित होने के कारण वहां आमतौर पर हवा समुद्र से जमीन की ओर चलती है। लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि जब हवा मंदिर की ओर बहती है, तब भी मंदिर के शिखर पर लगी ध्वजा हवा की दिशा के खिलाफ फहरती रहती है। यह घटना विज्ञान के लिए आज तक रहस्य बनी हुई है और इसे कोई स्पष्ट वैज्ञानिक कारण नहीं समझा पाया है।

भक्तों के लिए यह कोई सामान्य घटना नहीं, बल्कि भगवान जगन्नाथ की चमत्कारी उपस्थिति का संकेत है। उनका मानना है कि यह ध्वजा सिर्फ कपड़े का टुकड़ा नहीं, बल्कि भगवान की दिव्य शक्ति से भरी हुई होती है। इसलिए यह हवा की दिशा को भी चुनौती देती है। यह घटना आस्था का प्रतीक बन गई है, जो यह दिखाती है कि ईश्वर की शक्ति मानव समझ से परे होती है।

800 वर्षों से निभाई जा रही सेवा

मंदिर की शिखर पर चढ़कर ध्वजा को बदलना कोई आसान कार्य नहीं है। यह सेवा पिछले 800 वर्षों से ‘चोला’ परिवार द्वारा की जा रही है। न कोई क्रेन, न सीढ़ी, न कोई सुरक्षा उपकरण – सिर्फ विश्वास और भक्ति के बल पर यह कार्य प्रतिदिन संपन्न होता है।

यह परिवार इस कार्य को अपने कुल धर्म के रूप में मानता है। हर दिन लगभग 215 फीट ऊंचे शिखर पर चढ़कर ध्वजा बदलना एक अत्यंत साहसिक कार्य है, जिसे यह परिवार बिना किसी दिखावे और डर के करता आ रहा है।

परंपरा की शुरुआत: भगवान का दिव्य संकेत

ध्वजा को रोज़ बदलने की परंपरा के पीछे एक प्राचीन कथा भी है। कहा जाता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ ने अपने सेवकों को स्वप्न में आदेश दिया कि उनकी ध्वजा जीर्ण हो चुकी है और उसे बदला जाना चाहिए। अगली सुबह सेवकों ने देखा कि ध्वजा सचमुच फटी हुई थी। इसे भगवान की चेतावनी माना गया और तभी से यह निर्णय लिया गया कि अब प्रतिदिन ध्वजा बदली जाएगी। यह परंपरा आज तक जस की तस चली आ रही है, मानो भगवान का आदेश हर दिन जीवित हो।

ध्वजा का धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व

ध्वजा केवल एक कपड़ा नहीं है, बल्कि यह भक्ति, शक्ति और पवित्रता का प्रतीक है। ऐसा माना जाता है कि जब पुरानी ध्वजा हटाई जाती है और नई ध्वजा चढ़ाई जाती है, तो इससे वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। पुरानी ध्वजा नकारात्मक ऊर्जा को अपने भीतर समाहित कर लेती है, और नई ध्वजा के साथ मंदिर के चारों ओर दिव्यता फैल जाती है।

यह ध्वजा दूर से देखने पर ही भक्तों को पुण्य फल प्रदान करती है। कई श्रद्धालु तो मंदिर के मुख्य द्वार से केवल ध्वजा के दर्शन मात्र से ही स्वयं को धन्य मानते हैं।

कैसे तैयार होती है यह दिव्य ध्वजा?

यह ध्वजा सामान्य कपड़े की नहीं होती। इसे खास धार्मिक परंपरा और विधि से बनाया जाता है। इसकी लंबाई लगभग 20 फीट होती है और यह त्रिकोणीय होती है। उस पर विशेष धार्मिक रंगों, चिह्नों और पवित्र मंत्रों को अंकित किया जाता है।

भक्तजन भी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए यह ध्वजा दान करते हैं, जिसे मंदिर सेवा में उपयोग किया जाता है। यह एक ऐसा धार्मिक योगदान है, जो सीधे भगवान के सेवा में जाता है।

पुरी का जगन्नाथ मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था, विज्ञान और रहस्य का संगम है। मंदिर की ध्वजा न केवल उसकी पहचान है, बल्कि भगवान की निरंतर उपस्थिति का प्रतीक भी है। यह परंपरा न केवल हमें भगवान के प्रति हमारी जिम्मेदारियों की याद दिलाती है, बल्कि यह भी सिखाती है कि परंपराएं यदि श्रद्धा और भक्ति से निभाई जाएं, तो वे हजारों वर्षों तक जीवित रहती हैं।

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