राज्यसभा में CISF की कथित तैनाती को लेकर विपक्ष ने सरकार पर निशाना साधा। खड़गे ने संसद की गरिमा पर सवाल उठाया। जेपी नड्डा ने पलटवार करते हुए विपक्ष के रवैये को अलोकतांत्रिक बताया।
Rajyasbha: राज्यसभा में मंगलवार को उस समय हंगामा खड़ा हो गया जब विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन ख़ड़गे ने आरोप लगाया कि सरकार ने सदन के वेल के पास CISF कर्मियों को तैनात किया है। ख़ड़गे ने इस कदम को अत्यंत आपत्तिजनक बताते हुए कहा कि यह लोकतांत्रिक परंपराओं और संसद की गरिमा के खिलाफ है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या संसद अब इतनी नीचे गिर गई है कि सदस्यों के विरोध के अधिकार को दबाने के लिए सुरक्षाबलों का सहारा लिया जाए।
ख़ड़गे ने पूर्व नेताओं का दिया हवाला
ख़ड़गे ने कहा कि जब अरुण जेटली और सुषमा स्वराज विपक्ष में थे, तो उन्होंने संसद की कार्यवाही में व्यवधान को भी लोकतंत्र का हिस्सा बताया था। उन्होंने ज़ोर दिया कि विरोध करना हर सदस्य का संवैधानिक अधिकार है और विपक्ष इसी अधिकार का प्रयोग कर रहा है।
उपसभापति हरिवंश ने किया ख़ड़गे के आरोपों का खंडन
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने ख़ड़गे के आरोपों को खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि सदन में किसी बाहरी बल जैसे CISF की तैनाती नहीं की गई थी। उन्होंने बताया कि सुरक्षा व्यवस्था संसद की आंतरिक प्रणाली का हिस्सा है और उस दिन तैनात कर्मी संसद की सुरक्षा व्यवस्था के ही थे।
जेपी नड्डा ने विपक्ष को लिया आड़े हाथ
विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए राज्यसभा में नेता और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि विपक्ष का व्यवहार अलोकतांत्रिक और अराजकता फैलाने वाला है। उन्होंने कहा कि जब कोई सदस्य सदन में बोल रहा हो और कोई विपक्षी सदस्य उसकी बात को नारेबाज़ी से बाधित करे, तो यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया नहीं है।
"मेरे से ट्यूशन ले लो...": नड्डा का तंज
नड्डा ने ख़ड़गे पर व्यंग्य करते हुए कहा, "मैं खुद लंबे समय तक विपक्ष में रहा हूँ। आपको विपक्ष में कैसे काम किया जाता है, यह मुझसे सीखना चाहिए क्योंकि आप अगले 40 साल तक विपक्ष में ही रहेंगे। मेरे से ट्यूशन ले लो।" उनका यह बयान सदन में काफी चर्चा का विषय बन गया।
लोकतांत्रिक मर्यादा बनाम विरोध का अधिकार
इस पूरी बहस ने एक बार फिर इस सवाल को खड़ा कर दिया है कि लोकतंत्र में विरोध और असहमति की क्या सीमाएँ हैं। क्या संसद के भीतर प्रदर्शन करना लोकतंत्र को सशक्त बनाता है या इससे उसकी गरिमा को ठेस पहुँचती है?
विपक्ष का रुख और सरकार की जवाबदेही
विपक्ष ने साफ़ कहा है कि वे जनहित से जुड़े मुद्दों पर शांत नहीं बैठेंगे और सरकार की नीतियों का विरोध करते रहेंगे। वहीं, सरकार का कहना है कि सदन की कार्यवाही को बाधित करना न केवल जनता के साथ अन्याय है, बल्कि संसदीय प्रणाली की आत्मा के खिलाफ भी है।
नियमों और प्रक्रियाओं की अहमियत
संसद के भीतर नियमों के अनुसार कार्यवाही चलाना हर सदस्य की जिम्मेदारी है। उपसभापति की ओर से यह स्पष्ट किया गया कि संसद में केवल अधिकृत सुरक्षाकर्मी ही मौजूद थे और कोई बाहरी बल मौजूद नहीं था। ऐसे में विपक्ष द्वारा लगाए गए आरोपों को भ्रामक बताया गया।