कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार एक बार फिर दिल्ली गए हैं। कांग्रेस नेतृत्व से चर्चा के बीच सीएम बदलने की अटकलें तेज हो गई हैं। रोटेशनल फॉर्मूले की संभावनाएं फिर उभरी हैं।
Karnataka CM Conflict: कर्नाटक की सत्ता पर काबिज कांग्रेस सरकार एक बार फिर आंतरिक उठापटक के केंद्र में है। मुख्यमंत्री सिद्धरमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार एक साथ दिल्ली पहुंचे हैं, जिससे राजनीतिक हलकों में यह चर्चा फिर तेज हो गई है कि क्या सिद्धरमैया अपना कार्यकाल पूरा कर पाएंगे या रोटेशनल फॉर्मूला लागू होगा। यह वही फॉर्मूला है जिसके तहत ढाई साल बाद मुख्यमंत्री की कुर्सी डीके शिवकुमार को सौंपे जाने की बात कही गई थी। हालांकि पार्टी ने इस पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है।
सबसे लंबे कार्यकाल की ओर बढ़ते सिद्धरमैया
मुख्यमंत्री के रूप में यह सिद्धरमैया का दूसरा कार्यकाल है और वह अब कर्नाटक के सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले निर्वाचित मुख्यमंत्री बनने के करीब हैं। वह वरिष्ठ नेता देवराज उर्स के रिकॉर्ड की बराबरी करने के बेहद नजदीक हैं, जिन्होंने 2700 से अधिक दिनों तक मुख्यमंत्री पद संभाला था। इसके बावजूद, पार्टी के भीतर यह सवाल बना हुआ है कि क्या सिद्धरमैया को अपना कार्यकाल पूरा करने दिया जाएगा।
सत्ता संघर्ष को लेकर फिर चर्चा में कांग्रेस
कांग्रेस पार्टी हमेशा से आंतरिक गुटबाजी से जूझती रही है। कर्नाटक भी इससे अछूता नहीं है। सरकार के भीतर चल रही असहज शांति को लेकर अब यह चर्चा जोरों पर है कि राज्य में एक बार फिर नेतृत्व परिवर्तन की संभावना है। सिद्धरमैया और डीके शिवकुमार दोनों दिल्ली पहुंचे हैं और ऐसी संभावना जताई जा रही है कि वे राहुल गांधी या अन्य शीर्ष नेताओं से मुलाकात कर सकते हैं।
ढाई साल के कार्यकाल के करीब पहुंची सरकार
कर्नाटक में कांग्रेस सरकार अपने ढाई साल के कार्यकाल के करीब पहुंच चुकी है। राजनीतिक जानकारों का मानना है कि सत्ता हस्तांतरण को लेकर अंदरखाने मंथन चल रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व फिलहाल बिहार चुनावों तक इस मुद्दे को टालना चाहता है, क्योंकि सिद्धरमैया देश के एकमात्र ओबीसी मुख्यमंत्री हैं और पार्टी नहीं चाहती कि उन्हें हटाने का कोई गलत राजनीतिक संदेश जाए।
ओबीसी समीकरण को लेकर पार्टी सतर्क
राहुल गांधी लगातार ओबीसी समुदाय के अधिकारों के पक्ष में बयान देते रहे हैं, जैसे कि जातीय जनगणना और आरक्षण बढ़ाने की मांग। ऐसे में अगर कांग्रेस सिद्धरमैया को हटाती है, तो यह ओबीसी विरोधी कदम के रूप में देखा जा सकता है, जिससे बिहार और अन्य राज्यों में पार्टी की छवि प्रभावित हो सकती है। पार्टी अंदर ही अंदर इस बात का आकलन कर रही है कि अगर मुख्यमंत्री बदला जाता है तो इसका क्या असर होगा।
राजनीतिक रणनीति या वास्तविक बहस?
जहां एक तरफ दोनों नेता दिल्ली में 'भागीदारी न्याय सम्मेलन' जैसे कार्यक्रमों में हिस्सा लेने के लिए पहुंचे हैं, वहीं कांग्रेस के अंदरूनी सूत्रों की मानें तो असली वजह नेतृत्व परिवर्तन को लेकर बातचीत हो सकती है। पिछले दौरे के दौरान सिद्धरमैया राहुल गांधी से नहीं मिल सके थे, लेकिन इस बार संभावना है कि यह बैठक हो सकती है।
साल के अंत में हो सकता है निर्णय
कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस साल के अंत में कांग्रेस नेतृत्व कोई निर्णायक फैसला ले सकता है। पार्टी इस समय जिस संतुलन को बनाए रखने की कोशिश कर रही है, वह लंबे समय तक जारी नहीं रह सकता। डीके शिवकुमार भी अपनी भूमिका को लेकर पूरी तरह गंभीर हैं और मुख्यमंत्री बनने की अपनी दावेदारी को समय आने पर फिर से सामने रख सकते हैं।
जनसमर्थन और विधायकों का विश्वास
सिद्धरमैया को कर्नाटक में ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों का व्यापक समर्थन प्राप्त है। वहीं, उन्हें कांग्रेस के अधिकांश विधायकों का भी विश्वास हासिल है। 2023 के चुनाव में पार्टी की जीत के बाद मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी खींचतान हुई थी, लेकिन डीके शिवकुमार को उपमुख्यमंत्री बनाकर एक अस्थायी समाधान निकाला गया।