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मौसम बदलते ही बढ़ सकती हैं अस्थमा की दिक्कत, जानें तुरंत अपनाने योग्य सावधानियां

मौसम बदलते ही बढ़ सकती हैं अस्थमा की दिक्कत, जानें तुरंत अपनाने योग्य सावधानियां

बदलते मौसम में अस्थमा मरीजों के लिए जोखिम बढ़ जाता है। तेज ठंड, गर्मी, नमी, प्रदूषण और परागकण लक्षण बढ़ा सकते हैं। डॉ. अजय कुमार के अनुसार दवाइयों का नियमित उपयोग, इनहेलर पास रखना, घर और वातावरण को साफ रखना, और अचानक लक्षणों पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना जरूरी है।

Asthma: दिल्ली में डॉ. अजय कुमार ने चेताया कि बदलते मौसम में अस्थमा मरीजों को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। अचानक ठंडी या गर्म हवा, बारिश की नमी, धूल, प्रदूषण और परागकण फेफड़ों में सूजन बढ़ाकर सांस लेने में दिक्कत, खांसी और छाती में जकड़न बढ़ा सकते हैं। मरीजों को दवाइयों और इनहेलर का नियमित उपयोग करना, घर को साफ और धूल-मुक्त रखना, मौसम के अनुसार बाहर जाने से बचना और हल्की एक्सरसाइज या योग करना चाहिए। किसी भी गंभीर लक्षण पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना बेहद जरूरी है।

बदलते मौसम में अस्थमा के कारण

अस्थमा एक क्रॉनिक फेफड़ों की बीमारी है। इसमें फेफड़ों की नलियों में सूजन और सिकुड़न होती है, जिससे सांस लेने में कठिनाई आती है। बदलते मौसम में हवा में नमी का बढ़ना, ठंडी हवा का अचानक असर, बारिश या प्रदूषण अस्थमा को ट्रिगर कर सकते हैं। इसके अलावा परागकण यानी पॉलन भी फेफड़ों में जलन और सूजन बढ़ाते हैं। बच्चों और बुजुर्गों में इसका असर और गंभीर हो सकता है।

मौसम बदलते ही फेफड़ों की नलियां संवेदनशील हो जाती हैं। अचानक ठंडी हवा या बारिश की नमी सांस लेने में दिक्कत बढ़ा देती है। प्रदूषण और धूल भी अस्थमा के लक्षणों को बढ़ा देते हैं। इसलिए हल्के लक्षणों को नजरअंदाज करना खतरनाक साबित हो सकता है।

अस्थमा मरीज बदलते मौसम में कैसे रखें ध्यान

दिल्ली एमसीडी के डॉ. अजय कुमार बताते हैं कि अस्थमा मरीजों के लिए बदलते मौसम में सतर्क रहना बेहद जरूरी है। सबसे पहले, अपनी दवाइयों और इनहेलर का नियमित इस्तेमाल करें और डॉक्टर द्वारा बताई गई खुराक का पालन करें।

घर के वातावरण को साफ और धूल-मुक्त रखें। ठंडी हवा या बारिश में बाहर जाने से बचें। अगर बाहर जाना जरूरी हो तो मास्क पहनें। हल्की एक्सरसाइज और योग फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने में मदद कर सकते हैं, लेकिन मौसम के अनुसार अभ्यास को हल्का रखें।

सर्दियों में कमरे में नमी बनाए रखना फायदेमंद होता है, वहीं गर्मियों में हवादार स्थान में रहना बेहतर है। अचानक खांसी या सांस लेने में दिक्कत महसूस होने पर तुरंत इमरजेंसी संपर्क करें। नियमित चेकअप और फेफड़ों की जांच से अस्थमा को कंट्रोल में रखा जा सकता है।

घर और आसपास की सावधानियां

धूल, धुआं और प्रदूषण से बचाव जरूरी है। ठंडी हवा में बाहर जाने पर साफ कपड़े और शॉल पहनें। घर में नियमित सफाई और वेंटिलेशन का ध्यान रखें। धूम्रपान और धुएँ वाले स्थानों से दूर रहें। खांसी, जकड़न या सांस की समस्या बढ़ने पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

साथ ही, अपनी दवाइयों और इनहेलर को हमेशा पास रखें। अस्थमा के मरीजों को मौसम बदलते ही अपनी जीवनशैली में थोड़ी सतर्कता बरतनी चाहिए। घर और बाहर के वातावरण का ध्यान रखने से लक्षणों को कम किया जा सकता है।

बच्चों और बुजुर्गों में अधिक सावधानी

बदलते मौसम में अस्थमा का असर बच्चों और बुजुर्गों पर अधिक गंभीर हो सकता है। उनके लिए अतिरिक्त सतर्कता की जरूरत होती है। बच्चों को ठंडी हवा में बाहर कम भेजें और उन्हें मास्क या ढके हुए कपड़े पहनने के लिए प्रेरित करें। बुजुर्गों में सांस की समस्या बढ़ने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है।

अस्थमा को नियंत्रण में रखने के उपाय

डॉ. अजय कुमार के अनुसार, अस्थमा मरीजों को बदलते मौसम में नियमित दवा लेना, फेफड़ों की क्षमता बढ़ाने वाले व्यायाम करना और प्रदूषण से बचाव करना चाहिए। समय-समय पर फेफड़ों की जांच करवाना भी जरूरी है।

साथ ही, मरीजों को बाहर जाने से पहले मौसम और प्रदूषण के स्तर की जानकारी रखनी चाहिए। अगर तेज धूल, धुआं या पॉलन का स्तर ज्यादा हो तो बाहर जाने से बचना फायदेमंद होगा।

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