महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर छिड़ा विवाद लगातार तूल पकड़ता जा रहा है। इस मुद्दे पर राज्यपाल सी. पी. राधाकृष्णन ने चिंता जताते हुए कहा कि हिंसा और नफरत के माहौल में कोई भी महाराष्ट्र में निवेश नहीं करेगा, जिससे राज्य की छवि और विकास प्रभावित हो सकता है।
Maharashtra Politics: महाराष्ट्र में मराठी भाषा को लेकर छिड़े विवाद ने अब एक नई राजनीतिक दिशा पकड़ ली है। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन के हालिया बयान पर शिवसेना (उद्धव ठाकरे गुट) ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। राज्य में भाषा की पहचान, निवेश और सांस्कृतिक गर्व के मुद्दे पर तीखी बहस छिड़ी हुई है, जो अब केवल क्षेत्रीय स्तर पर नहीं, बल्कि राष्ट्रीय और वैश्विक मंच पर भी चर्चा का विषय बन चुकी है।
राज्यपाल का बयान: हिंसा से निवेश को खतरा
राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि भाषा के नाम पर हिंसा और नफरत फैलाने से महाराष्ट्र की छवि को नुकसान पहुंचता है, जिससे निवेशक राज्य से दूरी बना सकते हैं। उन्होंने कहा, “हमें अधिक से अधिक भाषाएं सीखनी चाहिए और अपनी मातृभाषा पर गर्व करना चाहिए, लेकिन नफरत और हिंसा से राज्य को ही नुकसान होगा।” उन्होंने यह भी कहा कि वे खुद हिंदी नहीं समझते हैं, और भाषा की विविधता को सम्मान देना चाहिए।
राज्यपाल ने तमिलनाडु का एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि जब वे सांसद थे, तब उन्होंने देखा कि किसी व्यक्ति को केवल इस कारण पीटा जा रहा था क्योंकि वह तमिल नहीं बोल पा रहा था। उन्होंने इसे एक खतरनाक सोच करार दिया और कहा कि ऐसे रवैये से देश की एकता और राज्य का विकास प्रभावित होता है।
उद्धव ठाकरे गुट की प्रतिक्रिया: 'मराठी भाषा पर समझ बढ़ाएं राज्यपाल'
राज्यपाल के इस बयान पर शिवसेना (यूबीटी) ने पलटवार किया है। पार्टी नेता आनंद दुबे ने कहा, “कोई भी हिंसा का समर्थन नहीं करता, लेकिन मराठी केवल एक भाषा नहीं बल्कि महाराष्ट्र की आत्मा और संस्कृति है। राज्यपाल को मराठी भाषा का सम्मान करना चाहिए और इसे विवाद का मुद्दा नहीं बनाना चाहिए। आनंद दुबे ने सवाल किया कि जब बड़े व्यवसाय महाराष्ट्र से गुजरात जाते हैं, तब राज्यपाल चुप क्यों रहते हैं?
उन्होंने आगे कहा, अगर महाराष्ट्र में मराठी नहीं बोली जाएगी, तो क्या यह भूटान में बोली जाएगी? मराठी को महाराष्ट्र में प्राथमिकता मिलनी चाहिए। हम राज्यपाल से आग्रह करते हैं कि वे अपना अगला भाषण मराठी में दें।
सांस्कृतिक अस्मिता बनाम राष्ट्रीय समरसता
यह विवाद सिर्फ भाषा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह अब सांस्कृतिक पहचान और आर्थिक विकास के संतुलन की बहस बन चुका है। एक ओर राज्यपाल बहुभाषिकता और समावेशिता की बात कर रहे हैं, तो दूसरी ओर क्षेत्रीय दल स्थानीय पहचान और सांस्कृतिक गर्व को सर्वोपरि मान रहे हैं। शिवसेना (यूबीटी) का कहना है कि मराठी को नजरअंदाज करना राज्य के गौरव और नागरिकों की अस्मिता का अपमान है। वहीं, राज्यपाल का कहना है कि भाषा के नाम पर कोई भी हिंसा देश की एकता और राज्य के विकास के लिए घातक है।