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मुहम्मद गौस दरगाह पर 400 साल पुराने इस्लामिक कार्यक्रमों पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस

मुहम्मद गौस दरगाह पर 400 साल पुराने इस्लामिक कार्यक्रमों पर रोक, सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस

ग्वालियर की हजरत मुहम्मद गौस दरगाह पर 400 साल पुराने धार्मिक कार्यक्रमों पर एएसआई की रोक को चुनौती सुप्रीम कोर्ट पहुंची। कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षों को नोटिस जारी किया। यह मामला परंपरा बनाम धरोहर संरक्षण की जंग बन गया है।

New Delhi: ग्वालियर में स्थित हजरत शेख मुहम्मद गौस की दरगाह को लेकर एक बड़ा विवाद अब सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। इस दरगाह पर लंबे समय से उर्स और अन्य धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता आया है, लेकिन भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा इसे 1962 में संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने के बाद इन कार्यक्रमों पर रोक लगा दी गई।

याचिकाकर्ता ने इस रोक को चुनौती दी और कहा कि यह परंपरा 400 साल से चली आ रही है, जिसे अचानक बंद नहीं किया जा सकता। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने हालांकि एएसआई के फैसले को बरकरार रखा था, जिसके खिलाफ अब मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा है।

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई

जस्टिस बी. वी. नगरत्ना और जस्टिस आर. महादेवन की बेंच ने इस मामले पर सुनवाई की। कोर्ट ने केंद्र और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर उनसे जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की विशेष अनुमति याचिका और अंतरिम अनुरोध पर प्रतिवादियों को नोटिस भेजा जाए और तय समय पर उनका पक्ष सुना जाएगा।

इस आदेश से साफ है कि सुप्रीम कोर्ट अब इस विवाद की गहराई से सुनवाई करेगा और यह तय करेगा कि क्या एएसआई का आदेश धार्मिक परंपराओं पर अनुचित रोक है या फिर ऐतिहासिक धरोहर की सुरक्षा के लिए जरूरी कदम।

याचिकाकर्ता का तर्क

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि वह हजरत शेख मुहम्मद गौस का कानूनी उत्तराधिकारी है और दरगाह में सदियों से धार्मिक व सांस्कृतिक गतिविधियां होती रही हैं। उसने कहा कि चार सदियों से अधिक समय से उर्स का आयोजन होता आया है, जो अब स्थानीय समुदाय का अभिन्न हिस्सा बन चुका है।

याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि मार्च 2024 में उसने एएसआई को दरगाह में उर्स आयोजित करने की अनुमति के लिए आवेदन दिया था, लेकिन उसे अस्वीकार कर दिया गया।

हाईकोर्ट का फैसला

मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एएसआई के पक्ष में निर्णय देते हुए कहा कि मुहम्मद गौस की दरगाह को 1962 में राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया था। इसलिए एएसआई का यह कर्तव्य है कि वह इस स्मारक की रक्षा करे और इसमें किसी भी प्रकार की ऐसी गतिविधि को न होने दे जो इसकी संरचना या ऐतिहासिक महत्व को नुकसान पहुंचा सकती है।

हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने मार्च 2024 में एएसआई द्वारा जारी आदेश को चुनौती नहीं दी थी, इसलिए उसकी अपील स्वीकार्य नहीं है।

एएसआई की भूमिका

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने 1962 में इस दरगाह को संरक्षित स्मारक घोषित किया था। एएसआई का मानना है कि दरगाह और परिसर को सुरक्षित रखने के लिए इसमें किसी भी प्रकार की धार्मिक या सांस्कृतिक गतिविधि को रोकना आवश्यक है, क्योंकि बड़ी भीड़ और लगातार आयोजन स्मारक की संरचना को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

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