बारिश और खराब मौसम की वजह से हाल ही में एनटीपीसी (NTPC), टाटा पावर और पावर ग्रिड जैसे पावर सेक्टर के दिग्गज स्टॉक्स पर दबाव देखने को मिला है। उत्पादन और वितरण में चुनौतियों के चलते इन कंपनियों के शेयरों में कुछ गिरावट दर्ज की गई।
इस बार गर्मियों में बारिश ने बिजली कंपनियों की कमाई पर पानी फेर दिया। अप्रैल से जून की तिमाही में बिजली की खपत में गिरावट दर्ज की गई है। इसकी वजह रही सामान्य से ज्यादा बारिश और अपेक्षाकृत कम तापमान। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस तिमाही में करीब 60 फीसदी दिन ऐसे थे जब देश के बड़े हिस्सों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई, जिससे पंखे, एसी और कूलर की मांग में कमी आई और बिजली की खपत भी घटी।
पहली तिमाही में बिजली की मांग घटी
एसबीआई कैपिटल की रिपोर्ट बताती है कि वित्त वर्ष 2026 की पहली तिमाही में बिजली की मांग में सालाना आधार पर करीब 1.5 फीसदी की गिरावट आई है। यह पिछले कई सालों में पहली बार हुआ है जब Q1 में खपत घटी है। अगर कोविड साल 2021 को छोड़ दिया जाए, तो 2016 के बाद से ऐसा नहीं देखा गया था।
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि मई 2025 में देश में बिजली की अधिकतम मांग 231 गीगावॉट रही, जो मई 2024 में 250 गीगावॉट थी। यानी करीब 7.5 फीसदी की गिरावट। इसका असर साफ तौर पर बिजली उत्पादन और वितरण कंपनियों के राजस्व पर पड़ा है।
पावर सेक्टर के स्टॉक्स पर दिखा असर
बाजार में लिस्टेड बिजली कंपनियों के स्टॉक्स पर इस मौसमीय बदलाव का सीधा असर पड़ा है। एनटीपीसी का शेयर Q1 में करीब 6.4 फीसदी टूटा। JSW एनर्जी और टोरेंट पावर के शेयर भी गिरे। हालांकि, जून के आखिरी हिस्से में बाजार में आई मजबूती से इन स्टॉक्स में हल्की रिकवरी देखने को मिली।
इसी दौरान अगर broader market की बात करें, तो बीएसई सेंसेक्स में लगभग 8 फीसदी की बढ़त दर्ज की गई, जबकि बीएसई पावर इंडेक्स सिर्फ 5.2 फीसदी की ही बढ़त दिखा सका। इससे साफ है कि बिजली क्षेत्र के स्टॉक्स ने बाजार की रफ्तार को पूरी तरह फॉलो नहीं किया।
खर्च ज्यादा, मुनाफा घटा
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि जिन कंपनियों की लागत ज्यादा है, उन्हें इस तरह की मांग में उतार-चढ़ाव के दौर में ज्यादा नुकसान उठाना पड़ सकता है। कई बार उन्हें मुनाफा बनाए रखने के लिए मर्चेंट मार्केट का सहारा लेना पड़ता है, जहां बिजली के दाम स्थिर नहीं रहते।
खासतौर पर थर्मल पावर प्लांट चलाने वाली कंपनियों के लिए ऐसी स्थिति चुनौतीपूर्ण हो जाती है। उत्पादन की लागत लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि मांग में गिरावट से रेवेन्यू पर असर पड़ता है।
लॉन्ग टर्म की तस्वीर अभी भी पॉजिटिव
बावजूद इसके, कई ब्रोकिंग हाउस और मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि बिजली क्षेत्र की लंबी अवधि की संभावनाएं मजबूत बनी हुई हैं। WealthMills Securities के इक्विटी स्ट्रैटेजी डायरेक्टर क्रांति बाथिनी ने कहा कि पावर सेक्टर का भविष्य उज्ज्वल है, लेकिन फिलहाल मौसम से जुड़ी अनिश्चितता के चलते थोड़ी दबाव की स्थिति बन सकती है।
रिलिगेयर ब्रोकिंग के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (रिटेल रिसर्च) रवि सिंह ने भी इसी बात को दोहराया। उन्होंने कहा कि डेटा सेंटर, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे नए सेक्टर्स से आने वाली बिजली की मांग लॉन्ग टर्म में कंपनियों के लिए बड़ा अवसर साबित हो सकती है।
एनएचपीसी, पावर ग्रिड और टाटा पावर पर निवेशकों की नजर
मार्केट एक्सपर्ट्स की नजरें फिलहाल तीन कंपनियों पर खासतौर से टिकी हैं एनएचपीसी, पावर ग्रिड और टाटा पावर। इन कंपनियों के स्टॉक्स हाल ही में कंसोलिडेशन जोन में थे, लेकिन अब इनमें ब्रेकआउट के संकेत मिल रहे हैं।
रवि सिंह के मुताबिक, इन तीनों स्टॉक्स में आने वाले समय में 8 से 10 फीसदी की बढ़त देखने को मिल सकती है। इन कंपनियों की फंडामेंटल स्थिति मजबूत है और सरकार की ओर से भी इनके सेक्टर को लगातार समर्थन मिलता रहा है।
भारत की बिजली मांग में तेज बढ़ोतरी का अनुमान
अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी यानी IEA ने एक रिपोर्ट में कहा है कि 2025 से 2028 के बीच भारत की बिजली की मांग औसतन 6.3 फीसदी सालाना की दर से बढ़ सकती है। यह दर 2015 से 2024 के औसत 5 फीसदी से ज्यादा है।
उधर, रेटिंग एजेंसी ICRA ने भी अनुमान जताया है कि वित्त वर्ष 2026 से 2030 के बीच देश की बिजली खपत 6 से 6.5 फीसदी की दर से बढ़ेगी। इसमें डेटा सेंटर, ईवी और ग्रीन हाइड्रोजन जैसे सेगमेंट्स का योगदान 20 से 25 फीसदी तक हो सकता है।
विदेशी निवेशक भी दिखा रहे रुचि
बिजली कंपनियों में विदेशी निवेशकों की दिलचस्पी भी बढ़ती नजर आ रही है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि एनर्जी ट्रांजिशन की दिशा में भारत ने जो तेज़ी दिखाई है, उससे इन कंपनियों में विदेशी निवेशकों का भरोसा भी बढ़ा है।
पिछले कुछ महीनों में टाटा पावर, एनएचपीसी और पावर ग्रिड जैसी कंपनियों में एफआईआई होल्डिंग में बढ़ोतरी देखी गई है, जो इस बात का संकेत है कि इंटरनेशनल मार्केट्स भी इन कंपनियों की लॉन्ग टर्म ग्रोथ को लेकर पॉजिटिव हैं।