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परिजन की मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है सिर मुंडन, जानें आध्यात्मिक मान्यताएं

परिजन की मृत्यु के बाद क्यों किया जाता है सिर मुंडन, जानें आध्यात्मिक मान्यताएं

हिंदू धर्म में किसी परिजन की मृत्यु के बाद पुरुषों का सिर मुंडवाना एक प्राचीन परंपरा है। गरुड़ पुराण के अनुसार यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारणों से भी जुड़ा हुआ है। यह परंपरा शुद्धिकरण, मृतक से संबंध विच्छेद और संक्रमण से बचाव का प्रतीक मानी जाती है।

सिर मुंडवाने की परंपरा: परिजन की मृत्यु के बाद पुरुषों का सिर मुंडवाना सदियों पुरानी परंपरा है, जो आज भी निभाई जाती है। यह परंपरा मुख्यतः अंतिम संस्कार के बाद की धार्मिक प्रक्रिया का हिस्सा है और गरुड़ पुराण में इसका विशेष उल्लेख मिलता है। माना जाता है कि इससे मृतक और परिजनों के बीच का सूक्ष्म संबंध समाप्त होता है, आत्मा को मोक्ष का मार्ग मिलता है और परिवारजन शुद्धता प्राप्त करते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से भी इसे संक्रमण से बचाव और स्वास्थ्य सुरक्षा से जोड़ा गया है।

हिंदू धर्म में सदियों पुरानी परंपरा

हिंदू धर्म में किसी परिजन की मृत्यु के बाद परिवार के सदस्यों के लिए कई धार्मिक नियम और परंपराएं निभाना आवश्यक माना गया है। इन्हीं परंपराओं में से एक प्रमुख परंपरा है पुरुषों का सिर मुंडवाना। यह परंपरा पीढ़ियों से चली आ रही है और इसे धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। लेकिन सवाल यह उठता है कि आखिर क्यों अंतिम संस्कार के बाद परिवारजन सिर मुंडवाते हैं और इसके पीछे क्या मान्यताएं जुड़ी हुई हैं? आइए जानते हैं विस्तार से।

गरुड़ पुराण से जुड़ी मान्यता

हिंदू धर्मग्रंथ गरुड़ पुराण के अनुसार, परिवार में किसी सदस्य के निधन के बाद पुरुषों का सिर मुंडवाना एक अनिवार्य नियम माना गया है। ऐसा विश्वास है कि मृत्यु के समय परिवार पर पातक लगता है, जिसे अशुद्ध अवधि कहा जाता है। इस अवधि को समाप्त करने और शुद्धता प्राप्त करने के लिए मुंडन की परंपरा निभाई जाती है।

धार्मिक मान्यता यह भी कहती है कि मृतक से भौतिक संबंध तोड़ने के लिए यह प्रक्रिया आवश्यक है। आत्मा के प्रस्थान के बाद भी परिवार और मृतक के बीच एक सूक्ष्म संबंध बना रहता है। जब पुरुष मुंडन करते हैं, तो माना जाता है कि यह संबंध समाप्त हो जाता है और आत्मा को अपने अगले मार्ग की ओर बढ़ने में मदद मिलती है।

आध्यात्मिक महत्व

हिंदू परंपरा में बालों को गर्व और अहंकार का प्रतीक माना गया है। ऐसे में जब परिवारजन अंतिम संस्कार के बाद सिर मुंडवाते हैं, तो इसका सीधा अर्थ होता है कि वे अपने अहंकार और सांसारिक मोह का त्याग कर रहे हैं।

इसे मृतक के प्रति श्रद्धा और सम्मान जताने का एक माध्यम भी माना जाता है। इस प्रक्रिया के जरिए परिवारजन अपने शोक और समर्पण की भावना व्यक्त करते हैं। यानी यह परंपरा केवल धार्मिक ही नहीं बल्कि भावनात्मक दृष्टि से भी गहरा महत्व रखती है।

वैज्ञानिक कारण

यह परंपरा सिर्फ धार्मिक मान्यता तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक कारण भी बताए गए हैं। अंतिम संस्कार के दौरान परिवारजन मृत शरीर के संपर्क में आते हैं। वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो मृत शरीर पर कई तरह के हानिकारक जीवाणु हो सकते हैं। ये जीवाणु बालों पर चिपक जाते हैं और सामान्य स्नान करने से भी पूरी तरह नहीं हटते।

ऐसे में संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है। यही कारण है कि सिर के बाल पूरी तरह हटाना सबसे सुरक्षित उपाय माना गया। इससे न केवल संक्रमण का खतरा कम हो जाता है बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह कदम फायदेमंद साबित होता है।

आत्मा और ऊर्जा से जुड़ी मान्यता

गरुड़ पुराण में यह भी उल्लेख है कि मृत्यु के बाद आत्मा लगभग 13 दिनों तक घर में मौजूद रहती है। इस दौरान वह अपने परिवार से संपर्क साधने की कोशिश करती है। पारंपरिक मान्यता है कि बाल नकारात्मक ऊर्जा को जल्दी ग्रहण करते हैं और आत्मा इन्हीं के माध्यम से परिवार से जुड़ने का प्रयास करती है।

इसी कारण अंतिम संस्कार के बाद मुंडन की परंपरा निभाई जाती है, ताकि आत्मा और परिवारजन के बीच का यह संबंध समाप्त हो सके और आत्मा अपनी यात्रा में आगे बढ़ सके।

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