आरएसएस जाति आधारित भेदभाव का विरोध करता है, लेकिन SC और ST के लिए कोटा में उप-वर्गीकरण या क्रीमी लेयर लागू करने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श और सहमति जरूरी मानता है। संगठन सामाजिक समरसता के लिए काम कर रहा है।
Caste Census: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने केंद्र सरकार की जातिगत जनगणना के फैसले पर एक सधा हुआ रुख अपनाया है। आरएसएस का कहना है कि जातिगत जनगणना का उपयोग राजनीतिक हथियार के रूप में नहीं किया जाना चाहिए। संघ ने इस मुद्दे पर अपनी चिंताएं जाहिर करते हुए कहा कि यह संवेदनशील मामला है और इसे सामाजिक समरसता के संदर्भ में संभाला जाना चाहिए।
आरएसएस का जातिगत जनगणना पर रुख
आरएसएस हमेशा से जाति आधारित भेदभाव और विभाजन का विरोध करता रहा है, और संगठन का मानना है कि जाति के आधार पर किसी भी प्रकार का विभाजन समाज में और अधिक भेदभाव पैदा कर सकता है। हालांकि, आरएसएस के अनुसार, अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के लिए कोटा में उप-वर्गीकरण और क्रीमी लेयर जैसी व्यवस्थाओं के लिए सभी हितधारकों से परामर्श और सहमति बनाना आवश्यक है।
RSS के प्रवक्ता ने कहा कि जातिगत जनगणना को केवल उन समुदायों के कल्याण के लिए होना चाहिए जो पिछड़े हैं और जिन्हें विशेष ध्यान की आवश्यकता है। उनका कहना था, "यह डेटा पहले भी एकत्रित किया जाता रहा है, लेकिन इसका उपयोग केवल उन समुदायों के कल्याण के लिए होना चाहिए, न कि चुनावी या राजनीतिक हथियार के रूप में।"
जातिगत जनगणना: पॉलिटिकल टूल नहीं
आरएसएस का मानना है कि जातिगत जनगणना को राजनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहिए। संगठन अपनी 'सामाजिक समरसता' मुहिम के तहत हिन्दू समाज को एकजुट करने की दिशा में काम करता रहा है। संगठन के मुख्य प्रवक्ता सुनील अंबेकर ने पिछले साल केरल में कहा था कि जाति संबंधी मुद्दे बेहद संवेदनशील होते हैं और इसे राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए संभालना चाहिए, न कि चुनावी लाभ के लिए।
अंबेकर ने स्पष्ट किया था कि आरएसएस को जाति डेटा संग्रह करने में कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह केवल उन समुदायों के लाभ के लिए होना चाहिए जिन्हें विशेष ध्यान देने की जरूरत है। उनका कहना था, "जाति संबंधी डेटा केवल विकास और कल्याण के लिए इस्तेमाल होना चाहिए, न कि राजनीति के लिए।"
RSS का समर्थन: एक नई दिशा की ओर
RSS का यह बयान अब एक महत्वपूर्ण समर्थन माना जा रहा है, जिसने नरेंद्र मोदी सरकार को बिना किसी बड़े विरोध का सामना किए इस दिशा में कदम बढ़ाने की स्वतंत्रता दी है। बिहार में जमीनी स्तर पर लागू जातिगत जनगणना और आरएसएस के राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन के साथ, यह प्रक्रिया अब भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक नीतियों को नया आकार देने की ओर अग्रसर है।