भारतीय उद्योग जगत के दिग्गज और समाजसेवी, 9 अक्टूबर 2024 को 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गए। टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन ने उद्योग, शिक्षा और समाज सेवा में अमूल्य योगदान दिया।
Ratan Tata: रतन नवल टाटा (28 दिसंबर 1937 – 9 अक्टूबर 2024) भारत के सबसे प्रतिष्ठित उद्योगपतियों, दानवीरों और दूरदर्शी नेताओं में से एक थे। उन्होंने न केवल टाटा ग्रुप और टाटा सन्स के चेयरमैन के रूप में अपने अद्वितीय नेतृत्व का परिचय दिया, बल्कि समाज और शिक्षा के क्षेत्र में अपने अमूल्य योगदान के कारण पूरी दुनिया में सम्मानित हुए। 1991 से 2012 तक टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहे और अक्टूबर 2016 से फरवरी 2017 तक अंतरिम चेयरमैन के रूप में भी कार्य किया।
रतन टाटा को 2000 में पद्मभूषण और 2008 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया, जो भारत के नागरिक सम्मान में क्रमशः तीसरा और दूसरा सर्वोच्च पुरस्कार है।
प्रारंभिक जीवन और शिक्षा
रतन टाटा का जन्म मुंबई (तब बॉम्बे) में पारसी ज़ोरोस्ट्रियन परिवार में हुआ। वे नवल टाटा के पुत्र थे, जिन्हें रतनजी टाटा द्वारा गोद लिया गया था। उनके दादा जामशेदजी टाटा, टाटा ग्रुप के संस्थापक, भारतीय उद्योग जगत के प्रतीक माने जाते हैं। रतन टाटा को उनकी दादी नवाजबाई टाटा ने पाला। उनके परिवार में उनके छोटे भाई जिमी टाटा और सौतेले भाई नोएल टाटा तथा दो सौतेली बहनें थीं।
रतन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के कैम्पियन स्कूल में प्राप्त की और बाद में कैथेड्रल एंड जॉन कॉनन स्कूल, बिशप कॉटन स्कूल शिमला और रिवरडेल कंट्री स्कूल, न्यूयॉर्क से आगे की पढ़ाई की। 1955 में हाई स्कूल पूरा करने के बाद उन्होंने कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया और 1962 में आर्किटेक्चर में स्नातक की डिग्री हासिल की। उन्होंने हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल का एडवांस्ड मैनेजमेंट प्रोग्राम 1975 में पूरा किया।
कॉर्नेल विश्वविद्यालय में रहते हुए, वे अल्फा सिग्मा फाई फ्रेटर्निटी के सदस्य बने। 2008 में रतन टाटा ने कॉर्नेल को $50 मिलियन दान दिए, जो विश्वविद्यालय के इतिहास में किसी भी अंतरराष्ट्रीय दाता द्वारा दिया गया सबसे बड़ा योगदान था। हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल में भी उन्होंने $50 मिलियन का योगदान दिया, जिससे Tata Hall स्थापित हुआ।
टाटा ग्रुप में करियर की शुरुआत
रतन टाटा ने 1962 में टाटा ग्रुप में अपनी यात्रा शुरू की। उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर से काम शुरू किया और धीरे-धीरे प्रबंधन की विभिन्न भूमिकाओं में अनुभव प्राप्त किया। 1970 के दशक में उन्हें नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स (NELCO) का प्रबंधन सौंपा गया। प्रारंभिक सफलता के बाद आर्थिक मंदी के दौरान यह परियोजना असफल रही, लेकिन इससे उन्हें प्रबंधन के क्षेत्र में गहरी समझ मिली।
1991 में, J.R.D. टाटा के सेवानिवृत्ति के बाद रतन टाटा को टाटा सन्स का चेयरमैन नियुक्त किया गया। इस समय उन्हें विभिन्न सब्सिडियरीज के प्रमुखों का प्रतिरोध भी झेलना पड़ा। उन्होंने समूह को एकीकृत करने के लिए नई नीतियाँ लागू कीं और नवाचार तथा युवा प्रतिभाओं को प्रोत्साहित किया।
वैश्विक विस्तार और प्रमुख अधिग्रहण
रतन टाटा के नेतृत्व में टाटा ग्रुप ने जगुआर लैंड रोवर, कोरस और टेटली जैसी प्रमुख कंपनियों का अधिग्रहण किया। इन कदमों ने टाटा को भारत-केंद्रित समूह से वैश्विक स्तर पर एक अग्रणी संगठन में बदल दिया। उनके नेतृत्व में टाटा ग्रुप का राजस्व 40 गुना और मुनाफा 50 गुना बढ़ा।
टाटा मोटर्स के तहत टाटा नैनो का निर्माण, जो आम भारतीय उपभोक्ता के लिए किफायती कार थी, उनके दूरदर्शी दृष्टिकोण का परिचायक था। उन्होंने भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों की दिशा में भी पहल की और टिगोर इलेक्ट्रिक वाहनों का उत्पादन गुजरात के सानंद प्लांट में शुरू किया।
निवेश और उद्यमिता
रतन टाटा ने व्यक्तिगत और व्यावसायिक रूप से 40 से अधिक स्टार्टअप्स में निवेश किया। इनमें प्रमुख निवेश Snapdeal, Teabox, CashKaro, Ola, Xiaomi और Nestaway शामिल हैं। उन्होंने वरिष्ठ नागरिकों के लिए Goodfellows जैसी कंपनियां भी शुरू की, जो पीढ़ियों के बीच मित्रता और सामाजिक सहभागिता को बढ़ावा देती हैं।
दान और समाज सेवा
रतन टाटा को शिक्षा, चिकित्सा और ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उनके योगदान के लिए जाना जाता है। वे कॉर्नेल विश्वविद्यालय, हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल, MIT, IIT बॉम्बे, और UC San Diego सहित कई वैश्विक संस्थानों के सबसे बड़े दाता रहे।
1984 के सिख विरोधी दंगों के बाद, उन्होंने प्रभावित ट्रक चालकों की मदद के लिए ट्रकों का दान दिया। 2008 के ताज होटल आतंकी हमले के दौरान उन्होंने न केवल होटल का पुनर्निर्माण किया बल्कि कर्मचारियों और मृतकों के परिवारों की वित्तीय मदद भी सुनिश्चित की।
उनके नेतृत्व में टाटा ट्रस्ट ने Tata Institute for Genetics and Society (TIGS), Tata Education and Development Trust, Tata Centre for Technology and Design (IIT Bombay) जैसी संस्थाओं की स्थापना कर शिक्षा, स्वास्थ्य और विज्ञान के क्षेत्र में वैश्विक योगदान दिया।
बोर्ड सदस्यता और अंतरराष्ट्रीय पहचान
रतन टाटा ने कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के बोर्ड में कार्य किया, जिनमें Alcoa Inc., Mondelez International, East-West Center, Harvard Business School Board of Dean’s Advisors, Carnegie Endowment for International Peace शामिल हैं। वे प्रिट्ज़कर आर्किटेक्चर पुरस्कार के जूरी पैनल के सदस्य भी रहे।
व्यक्तिगत जीवन और मृत्यु
रतन टाटा ने कभी विवाह नहीं किया और उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने चार बार शादी के करीब पहुंचे लेकिन हर बार किसी कारण से पीछे हट गए।
9 अक्टूबर 2024 को मुंबई के Breach Candy Hospital में उनकी मृत्यु हो गई। उनके अंतिम संस्कार में उन्हें राजकीय सम्मान और 21 गन सलूट दिया गया। अंतिम संस्कार वारली के पारसी श्मशान में किया गया। उन्होंने अपने वसीयत में ₹10,000 करोड़ (लगभग $1.2 बिलियन) दान करने का ऐलान किया, जिसमें उनके शिष्य शांतनु नायडू का भी समावेश था।
रतन टाटा न केवल भारतीय उद्योग जगत के प्रेरक नेता थे, बल्कि समाजसेवा और शिक्षा के क्षेत्र में भी उनके योगदान अमूल्य थे। उनका दूरदर्शी दृष्टिकोण और उद्यमिता ने टाटा ग्रुप को वैश्विक मान्यता दिलाई और उन्होंने हमेशा समाज, युवा और देश की भलाई को प्राथमिकता दी।