विद्यारंभ संस्कार भारतीय परंपरा में बच्चों की शिक्षा की शुरुआत का महत्वपूर्ण अनुष्ठान है। यह विजयादशमी पर मनाया जाता है और बच्चों को ज्ञान, संगीत और कलाओं से परिचित कराने का अवसर देता है। इस दिन गणेश और सरस्वती की पूजा होती है और बच्चों को गुरु की देखरेख में रेत या चावल पर मंत्र लिखने की विधि अपनाई जाती है।
Vidyarambh Sanskar: भारतीय संस्कृति में 2 अक्टूबर 2025 को विद्यारंभ संस्कार का आयोजन किया जाएगा, जो बच्चों की शिक्षा की शुरुआत का विशेष अनुष्ठान है। इस दिन बच्चों को स्नान कर पारंपरिक पोशाक पहनाई जाती है, गणेश और मां सरस्वती की पूजा होती है, और गुरु की देखरेख में ‘ओम ह्री श्री गणपतये नमः’ मंत्र रेत या चावल पर लिखवाया जाता है। दक्षिण भारत में इसे धूमधाम से मनाया जाता है और शिक्षा से जुड़ी भेंटें भी दी जाती हैं।
विद्यारंभ संस्कार का महत्व
विद्यारंभ संस्कार का अर्थ है 'ज्ञान की नई शुरुआत'। संस्कृत शब्द 'विद्या' का अर्थ है ज्ञान और 'अरंभम' का अर्थ है शुरुआत। इस दिन बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र से परिचित कराया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे कर्नाटक और केरल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है और इसे वहां 'एजुथिनिरुथु' के नाम से जाना जाता है।
भारतीय परंपरा में यह अनुष्ठान विजयादशमी पर्व पर संपन्न होता है। इस दिन 4 से 5 साल के बच्चों को लिखने-पढ़ने, संगीत, नृत्य और लोक कला की शिक्षा दी जाती है। विद्यारंभ संस्कार से बच्चों के मन में सीखने का उत्साह पैदा होता है और उन्हें सामाजिक जीवन में आत्मनिर्भर बनने की प्रेरणा मिलती है।
शुभ मुहूर्त और समय
विद्यारंभ संस्कार 2 अक्टूबर 2025 को गुरुवार को मनाया जाएगा। इस दिन के प्रमुख मुहूर्त इस प्रकार हैं:
- ब्रह्म मुहूर्त: 04:14 से 05:02 बजे तक
- प्रातः संध्या: 04:38 से 05:50 बजे तक
- अभिजित मुहूर्त: 11:23 से 12:11 बजे तक
- विजय मुहूर्त: 01:46 से 02:33 बजे तक
- गोदूलि मुहूर्त: 05:44 से 06:08 बजे तक
- सायाह्न संध्या: 05:44 से 06:56 बजे तक
- अमृत काल: 11:01 बजे रात से 12:38 बजे, 3 अक्टूबर तक
- निशिता मुहूर्त: 11:23 बजे रात से 12:11 बजे, 3 अक्टूबर तक
संपूर्ण दिन में रवि योग बना रहेगा, जिससे शिक्षा की शुरुआत के लिए यह समय और भी शुभ माना गया है।
दक्षिण भारत में विशेष आयोजन
दक्षिण भारत में विद्यारंभ संस्कार का आयोजन विशेष रूप से मंदिरों में किया जाता है। इस दिन बुद्धि के देवता गणेश और मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बच्चों के गुरु का आशीर्वाद लेकर 'गुरुदक्षिणा' दी जाती है। केरल के थुंचन परम्बु मंदिर और कर्नाटक के कोल्लूर मूकाम्बिका मंदिर में विद्यारंभ समारोह बड़े पैमाने पर मनाया जाता है।
विद्यारंभ अनुष्ठान की विधि
विद्यारंभ दिवस पर सुबह बच्चों को स्नान कर पारंपरिक पोशाक पहनाई जाती है। इसके बाद श्री विष्णु, मां सरस्वती और भगवान गणेश का पूजन किया जाता है।
इस अनुष्ठान के दौरान बच्चों से सबसे पहले रेत या चावल के दानों पर 'ओम ह्री श्री गणपतये नमः' मंत्र लिखवाया जाता है। रेत पर लिखना अभ्यास का प्रतीक और चावल पर लिखना ज्ञान प्राप्ति का प्रतीक माना जाता है।
इसके बाद गुरु सोने के तार से इसी मंत्र को बच्चे की जीभ पर लिखते हैं। ऐसा करने से मां सरस्वती की विशेष कृपा प्राप्त होती है। यह अनुष्ठान पूरा होने के बाद बच्चों द्वारा अन्य बच्चों को शिक्षा से जुड़ी भेंट जैसे स्लेट, पेंसिल आदि दी जाती है।
विद्यारंभ संस्कार का सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
विद्यारंभ संस्कार केवल शिक्षा की शुरुआत नहीं है, बल्कि यह बच्चों के बौद्धिक और नैतिक विकास के लिए भी आवश्यक माना जाता है। यह अनुष्ठान बच्चों में अनुशासन, ध्यान और सीखने की क्षमता विकसित करता है। साथ ही, माता-पिता और परिवार के सदस्यों को भी यह संस्कार बच्चों की शिक्षा के महत्व के प्रति जागरूक करता है।
इस संस्कार से बच्चों को शिक्षा के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है और उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जाता है। यह परंपरा भारतीय संस्कृति की समृद्धता और ज्ञान के प्रति सम्मान को दर्शाती है।