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World Para Archery 2025: शीतल देवी ने 18 की उम्र में गोल्ड जीतकर रचा इतिहास

World Para Archery 2025: शीतल देवी ने 18 की उम्र में गोल्ड जीतकर रचा इतिहास

18 साल की भारतीय पैरा आर्चरी खिलाड़ी शीतल देवी ने चीन में वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचा। महिलाओं की कंपाउंड व्यक्तिगत इवेंट में उन्होंने तुर्की की खिलाड़ी को हराया।

World Para Archery 2025: चीन के ग्वांग्जू में चल रही वर्ल्ड पैरा आर्चरी चैंपियनशिप में भारत की 18 साल की युवा पैरा आर्चरी शीतल देवी ने महिलाओं की कंपाउंड व्यक्तिगत स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रच दिया। फाइनल में शीतल ने तुर्की की नंबर-1 खिलाड़ी ओजनूर क्यूर गिर्डी को हराया और भारत का नाम विश्व स्तर पर रोशन किया। यह खास इसलिए भी है क्योंकि शीतल बिना हाथों वाली पहली पैरा आर्चरी हैं जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की।

रोमांचक फाइनल मुकाबला

फाइनल मुकाबला शुरू से ही रोमांचक रहा। पहले राउंड में दोनों खिलाड़ी बराबरी पर थीं और स्कोर 29-29 रहा। दूसरे राउंड में शीतल ने लगातार तीन शॉट में 10-10 अंक हासिल करके बढ़त बनाई और 30-27 से आगे हो गईं। तीसरे राउंड में फिर बराबरी देखने को मिली और चौथे राउंड में तुर्की की खिलाड़ी ने 29 अंक बनाए, जबकि शीतल ने 28 अंक हासिल किए।

पांचवें और आखिरी राउंड में शीतल ने अपनी पूरी ताकत दिखाई और तीन शॉट में 30 अंक लेकर कुल स्कोर 146 बना दिया। ओजनूर क्यूर गिर्डी 143 अंक के साथ सिल्वर मेडल तक ही सीमित रहीं। इस जीत ने शीतल को भारत की युवा पैरा आर्चरी में ऐतिहासिक खिलाड़ी बना दिया।

शीतल का ऐतिहासिक प्रदर्शन

शीतल देवी बिना हाथों के आर्चरी खेलती हैं। निशाना लगाने के लिए वह अपने पैरों और ठुड्डी का इस्तेमाल करती हैं। यह अनोखी तकनीक उन्हें अन्य खिलाड़ियों से अलग बनाती है और विश्व स्तर पर पहचान दिलाती है।

उनका यह तरीका दिखाता है कि अगर मेहनत, अभ्यास और मानसिक दृढ़ता हो तो किसी भी चुनौती को पार किया जा सकता है। युवा पैरा खिलाड़ियों के लिए शीतल का खेल प्रेरणा का स्रोत बन गया है।

भारत के लिए गर्व का पल

शीतल की यह जीत सिर्फ उनके लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए गर्व का पल है। 18 साल की उम्र में विश्व स्तर पर गोल्ड मेडल जीतना यह दिखाता है कि भारत की युवा प्रतिभाएं किसी से कम नहीं हैं।

उनकी उपलब्धि युवा खिलाड़ियों में आत्मविश्वास बढ़ाएगी और यह संदेश देगी कि सीमाओं को पार करके भी किसी भी लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। शीतल की कहानी हर खिलाड़ी के लिए प्रेरणादायक है।

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