सुप्रीम कोर्ट ने दिसंबर 2000 के लाल किला हमले के मामले में लश्कर ए तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की मौत की सजा बरकरार रखी है.
लाल किले पर हमले के दोषी लश्कर ए तैयबा के आतंकवादी मोहम्मद आरिफ उर्फ अशफाक की सुप्रीम कोर्ट ने पुनर्विचार याचिका खारिज करते हुए हुए मौत की सजा बरकार रखी है. 2005 में आरिफ को निचली अदालत ने भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने और हत्या के आरोप में फांसी की सजा सुनाई थी. इसके बाद साल 2007 में हाईकोर्ट ने भी इस सजा की पुष्टि की. 2011 में भी सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने इस सजा को बरकरार रखा था.
इसके बाद 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सजा को बरकरार रखते हुए आरिफ की पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया था. 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने क्यूरेटिव पीटिशन भी खारिज कर दी थी. लेकिन 2014 में ही आए एक फैसले की वजह से आरिफ को दोबारा अपनी याचिका दाखिल करने का मौका मिल गया. दरअसल कोर्ट ने उस फैसले में कहा था कि फांसी के मामले में पुनर्विचार याचिका को खुली अदालत में सुना जाना चाहिए. इससे पहले पुनर्विचार याचिका की सुनवाई जज अपने चैंबर में करते थे.
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस यूयू ललित की अध्यक्षता वाली बेंच ने गुरूवार को फैसला सुनाते हुए कहा, "हम उस आवेदन को स्वीकार करते हैं कि इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड को विचार किया जाना चाहिए. उसका दोष सिद्ध होता है. हम इस अदालत द्वारा लिए गए विचार की पुष्टि करते हैं और पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हैं."
22 साल पहले हुए था लाल किले पर हमला
22 दिसंबर 2000 को आरिफ उन तीन लोगों में से एक था, जिसने लाल किले में दाखिल होने के बाद अंधाधुंध फायरिंग की थी. इस हमले में तीन लोग मारे गए थे जिनमें सेना के दो जवान भी थे. जवाबी कार्रवाई में लाल किले पर हमला करने वाले दो आतंकी भी मारे गए थे. आरिफ ही लाल किले पर हमला का मास्टरमाइंड था. पूछताछ में उसने पाकिस्तानी नागरिक होने की बात कबूली थी.
आतंकवादी हमले के तीन दिन बाद दिल्ली पुलिस ने आरिफ को गिरफ्तार किया था. निचली अदालत ने आरिफ समेत छह लोगों को दोषी पाया था. सभी पर हत्या, आपराधिक साजिश और भारत के खिलाफ युद्ध छेड़ने के आरोप लगे थे. आरिफ के अलावा अन्य लोगों को कैद की सजा मिली थी.
पाकिस्तान स्थित आतंकवादी संगठन लश्कर ए तैयबा ने हमले की जिम्मेदारी ली थी, जिसने तब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों को तनावपूर्ण बना दिया था.