Bihar Politics: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश को 'लाड़ला सीएम' कहकर किया संबोधित, क्या बिहार में बीजेपी की महत्वाकांक्षा का हो गया अंत?

Bihar Politics: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नीतीश को 'लाड़ला सीएम' कहकर किया संबोधित, क्या बिहार में बीजेपी की महत्वाकांक्षा का हो गया अंत?
अंतिम अपडेट: 4 घंटा पहले

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार के भागलपुर में एक भव्य रोड शो किया, जहां उन्होंने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को ‘हमारे लाड़ले मुख्यमंत्री’ कहकर संबोधित किया। पीएम मोदी की इस टिप्पणी के बाद बिहार की राजनीति में हलचल तेज हो गई है। सवाल उठ रहा है कि क्या बीजेपी अब पूरी तरह से नीतीश कुमार के नेतृत्व को स्वीकार कर चुकी है, या यह सिर्फ एक चुनावी रणनीति का हिस्सा है?

बिहार में जेडीयू को बड़ा भाई मानने की मजबूरी

2020 के विधानसभा चुनाव में जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था, लेकिन उसे मात्र 43 सीटों पर जीत हासिल हुई। वहीं, बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़कर 74 सीटें अपने नाम कीं। इस आंकड़े के अनुसार, राज्य में बीजेपी बड़ी पार्टी है, लेकिन इसके बावजूद वह नीतीश कुमार को पीछे करने का जोखिम नहीं उठा रही है।

बिहार में बीजेपी की स्थिति और रणनीति

भारतीय जनता पार्टी पूरे देश में लगातार मजबूत होती जा रही है, वहीं बिहार में पिछले चुनावों में जनता ने जेडीयू को अपेक्षाकृत कमजोर कर दिया था। इससे यह उम्मीद की जा रही थी कि इस बार बीजेपी राज्य में नेतृत्व की भूमिका में होगी। लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने रोड शो के दौरान अपनी गाड़ी में सिर्फ नीतीश कुमार को साथ रखकर स्पष्ट संकेत दे दिया कि आगामी चुनाव जेडीयू के नेतृत्व में ही लड़ा जाएगा।

आरजेडी की बढ़ती मजबूती से बीजेपी की रणनीतिक चुनौतियां

सोशल मीडिया पर बीजेपी नेताओं की एक बैठक का वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें यह चर्चा की जा रही है कि तेजस्वी यादव के बजाय लालू यादव को निशाना बनाया जाए। दरअसल, बिहार में आरजेडी एक मजबूत स्थिति में बनी हुई है। 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी सबसे बड़े दल के रूप में उभरी थी। बीजेपी को 74 सीटें मिली थीं, जबकि आरजेडी को 75 सीटें हासिल हुई थीं।

महागठबंधन की स्थिति ऐसी थी कि वह कभी भी एनडीए सरकार को गिरा सकता था, और एक बार ऐसा हुआ भी। मौजूदा समय में आरजेडी की स्थिति कुछ हद तक पहले जैसी मजबूत नहीं है, लेकिन बीजेपी के लिए उसे अकेले हराना आसान भी नहीं होगा। यही वजह है कि बीजेपी को यह चिंता सता रही है कि यदि नीतीश कुमार को कमजोर करने की कोशिश की गई, तो आरजेडी उन्हें फिर से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बनाकर चुनाव में उतर सकती है।

लालू यादव की ओर से लगातार इस तरह के संकेत भी मिलते रहे हैं। इसी कारण बीजेपी इस बार के चुनाव में नीतीश कुमार को आगे रखकर अपनी रणनीति बना रही है, ताकि किसी तरह सत्ता पर अपनी पकड़ बरकरार रख सके।

बिहार में नीतीश कुमार का कोई विकल्प तैयार नहीं

बिहार की राजनीति में अब तक ऐसा कोई नेता नहीं उभर पाया है जो नीतीश कुमार के कद का मुकाबला कर सके। भारतीय जनता पार्टी भी अब तक ऐसा नेतृत्व खड़ा नहीं कर पाई है जो राज्य में पार्टी को पूरी तरह संभाल सके। यही वजह है कि बिहार में नीतीश कुमार की गैरमौजूदगी बीजेपी और आरजेडी दोनों के लिए एक चुनौती बन सकती है। 

नीतीश कुमार को अति पिछड़ों का मजबूत समर्थन हासिल है, और यही कारण है कि बीजेपी को उनका साथ बनाए रखना जरूरी लगता है। जातीय समीकरणों को देखते हुए बीजेपी को यह चिंता सता रही है कि अगर नीतीश कुमार अलग होते हैं, तो अति पिछड़ा वोट बैंक भी खिसक सकता है, जिससे बिहार में पार्टी कमजोर हो सकती है।

नीतीश कुमार को साधने की रणनीति में बीजेपी

बीजेपी लंबी राजनीति के तहत नीतीश कुमार को अपने साथ बनाए रखने की कोशिश कर रही है। नीतीश कुमार ने बिहार में अति पिछड़ों का एक मजबूत वोट बैंक तैयार किया है, जिसे बीजेपी अपनी ओर आकर्षित करना चाहती है। पार्टी इस तथ्य को भी भली-भांति जानती है कि यह नीतीश कुमार का अंतिम चुनाव हो सकता है। जेडीयू में भी उन्होंने अपने अलावा किसी अन्य नेता को आगे नहीं बढ़ने दिया है। ऐसे में भविष्य में बीजेपी उनके समर्थन को अपने पक्ष में लाने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है, जिसमें उन्हें कोई बड़ा पद देकर उनके वोटर्स को बीजेपी के साथ जोड़े रखने की रणनीति बनाई जा सकती है।

मोदी की तारीफ से ज्यादा उम्मीदें पालना सही नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ हमेशा राजनीतिक सफलता की गारंटी नहीं होती। इतिहास गवाह है कि जिन नेताओं की उन्होंने खुलकर प्रशंसा की है, कई बार उनका राजनीतिक कद कमजोर हुआ है। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर इसका ताजा उदाहरण हैं, जिनकी तारीफ के कुछ ही समय बाद उन्हें पद से हटना पड़ा। दिल्ली चुनाव जीतने के बाद भी मोदी ने पूर्वी राज्यों को जीत का श्रेय दिया था, लेकिन वहां भी समीकरण बदले। ऐसे में नीतीश कुमार को "लाड़ला मुख्यमंत्री" कहने को सिर्फ एक राजनीतिक बयान समझा जाना चाहिए, न कि कोई पक्की गारंटी कि वे बिहार की राजनीति में हमेशा प्रभावी रहेंगे।

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