लैटरल एंट्री विवाद ने देशभर में आरक्षण के मुद्दे को एक बार फिर से चर्चा में ला दिया है, और बिहार इस परिघटना से अछूता नहीं रहा है। इस मामले को लेकर जाति की राजनीति करने वाले नेता इसे अपने फायदे के लिए भुनाने में जुटे हैं। ऐसे में यह जानना आवश्यक है कि बिहार में अनुसूचित जातियों की बड़ी आबादी को सरकारी नौकरियों और राजनीति में उनकी संख्या के अनुपात के अनुसार कितनी जगह हासिल हुई है।
Bihar: सरकारी नौकरी में लेटरल एंट्री को लेकर उठा विवाद न केवल पूरे देश बल्कि बिहार की सियासत में भी गर्माहट ला रहा है। केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी अनुसूचित जातियों के उप वर्गीकरण के लिए आंदोलन करने के मूड में आ गए हैं। वे अनुसूचित जातियों की 22 में से 18 जातियों के लिए रैली आयोजित करेंगे। वे राज्य सरकार पर उप वर्गीकरण के लिए दबाव बनाने का प्रयास करेंगे। उनके अनुसार, आरक्षण का बड़ा लाभ केवल चार अनुसूचित जातियों (पासवान, रविदास, धोबी और पासी) को ही मिल रहा है।
17 जातियों के लिए उठा विवाद
दूसरी ओर, अनुसूचित जातियों का एक बड़ा वर्ग उप वर्गीकरण के खिलाफ है और वे सड़क पर उतरे हैं। बिहार की वास्तविकता यह है कि अनुसूचित जातियों की एक बड़ी जनसंख्या सरकारी नौकरियों में अपने संख्या के अनुपात में उचित स्थान नहीं प्राप्त कर सकी है। यह सच है कि मांझी जिन 18 जातियों का उल्लेख कर रहे हैं, उनमें से केवल एक मुसहर जाति को छोड़कर बाकी 17 जातियां सरकारी नौकरियों में अपवाद के रूप में ही मौजूद हैं।
जाति आधारित गणना का विश्लेषण क्या कहता है?
बिहार में किए गए जाति आधारित गणना (Caste Based Survey) के विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि पासवानों की कुल आबादी में हिस्सेदारी 5.31 प्रतिशत है। जबकि सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी केवल 1.44 प्रतिशत है। इस सूची में रविदास दूसरे स्थान पर हैं, जिनकी संख्या भी 5.31 प्रतिशत है।
सरकारी नौकरियों में रविदासों की भागीदारी 1.20 प्रतिशत दर्ज की गई है। वहीं, दो जातियां, जिनकी आबादी एक प्रतिशत से भी कम है, जैसे धोबी (0.83) और पासी (0.98), सरकारी नौकरियों में क्रमशः 3.14 और 2.00 प्रतिशत की भागीदारी दिखाते हैं। इन चार जातियों की कुल आबादी 12.37 प्रतिशत है, और सरकारी नौकरियों में इनकी भागीदारी 7.78 प्रतिशत है।
हालांकि, इन चार जातियों के अलावा अन्य 18 अनुसूचित जातियों की स्थिति भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती है। जाति आधारित गणना की रिपोर्ट के अनुसार, पासवान और रविदास के बाद मुसहर तीसरे स्थान पर हैं, जिनकी आबादी 3.8 प्रतिशत है, लेकिन सरकारी नौकरियों में उनकी भागीदारी मात्र 0.26 प्रतिशत है।
अन्य अनुसूचित जातियों, जिनकी जनसंख्या 3.48 प्रतिशत बताई गई है, सरकारी नौकरियों में कहीं नजर नहीं आती हैं। इनमें शामिल हैं: बांतर, बौरी, भुइयां, चौपाल, दबगर, डोम, घासिया, हलालखोर, हेला/ मेहतर, कंजर, कोरियार, लालबेगी, नट, पानी, रजवार, तुरी और तुन। इसके अतिरिक्त, सरकारी नौकरियों में पिछड़ी अनुसूचित जातियां राजनीति में भी पिछड़ी हुई हैं।
राजनीति में भी यही स्थिति
बिहार में लोकसभा की 40 सीटों में से 6 सीटें आरक्षित की गई हैं। इनमें पासवान, रविदास, मुसहर और पासी जाति के सांसद शामिल हैं। विधानसभा में भी इन जातियों के प्रतिनिधि उपस्थित हैं। हालांकि, सरकारी नौकरियों में धोबी जाति को राजनीति में अधिक अवसर नहीं मिल पाए हैं।
नौकरियों में पिछड़ी पासवान और रविदास जातियां राजनीति में आगे बढ़ी हैं। राजनीतिक रूप से जागरूक इन जातियों को सभी राजनीतिक दलों से समर्थन प्राप्त होता है। जबकि मुसहर जाति जो नौकरी में पीछे हैं, वे भी राजनीति में पीछे नहीं हैं। जीतन राम मांझी वर्तमान में केंद्र में मंत्री हैं, और उनके पुत्र संतोष कुमार बिहार में मंत्री हैं।