एक देश एक चुनाव के मुद्दे पर शिवसेना (यूबीटी) ने एक बार फिर भाजपा पर तीखा प्रहार किया है। पार्टी के मुखपत्र 'सामना' में प्रकाशित संपादकीय में आरोप लगाया गया है कि भाजपा इस पहल के माध्यम से अन्य धर्मों के लोगों को चुनाव प्रक्रिया से दूर रखने की कोशिश कर रही हैं।
नई दिल्ली: 'एक देश एक चुनाव' के मुद्दे पर केंद्र सरकार और विपक्षी दलों के बीच आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है। शिवसेना (यूबीटी) ने इस प्रस्ताव को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साधा है। शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार एक साथ चुनाव कराने की आड़ में मतदाता सूची से अन्य धर्मों के लोगों को बाहर करने का प्रयास कर रही है, ताकि अंत में कुछ खास वोटर्स को ही मतदान का अधिकार मिल सके।
शिवसेना (यूबीटी) के मुखपत्र 'सामना' में प्रकाशित संपादकीय में भाजपा पर तीखा हमला करते हुए कहा गया कि भाजपा की योजना है कि देश में केवल एक ही पार्टी सत्ता में रहे। संपादकीय में यह भी कहा गया कि 'एक देश, एक चुनाव' के बहाने भाजपा का असली लक्ष्य 'एक पार्टी, एक चुनाव' हैं।
केंद्र सरकार पर तीखा प्रहार
शिवसेना (यूबीटी) ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि 'एक देश एक चुनाव' का प्रस्ताव केवल लोकतंत्र को कमजोर करने की साजिश है। संपादकीय में यह भी कहा गया है कि भाजपा का उद्देश्य एक ही पार्टी को सत्ता में बनाए रखना है और इसके लिए एक देश एक चुनाव का मॉडल एक कड़ी के रूप में काम कर रहा हैं।
शिवसेना (यूबीटी) के संपादकीय में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का भी उल्लेख किया गया है। लेख में कहा गया है कि जैसे ट्रंप ने अमेरिका में अश्वेत, लैटिनो और अप्रवासी समुदायों को मतदान से रोकने का प्रयास किया, वैसे ही भाजपा भारत में अन्य धर्मों के लोगों को मतदाता सूची से बाहर करने की कोशिश कर रही हैं।
मोदी और ट्रंप में समानता
सामना के संपादकीय में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप की तुलना करते हुए कहा गया कि दोनों नेता लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के प्रति अनिच्छुक हैं। संपादकीय में ट्रंप को 'श्वेत मोदी' करार देते हुए कहा गया कि दोनों ही नेताओं की नीतियां लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत हैं। शिवसेना (यूबीटी) ने आरोप लगाया कि भाजपा 'एक देश एक चुनाव' के माध्यम से केवल एक ही पार्टी की सत्ता स्थापित करना चाहती है। पार्टी ने कहा कि यह कदम भारतीय लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा है और इसे किसी भी सूरत में स्वीकार नहीं किया जा सकता।