दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के आवास पर नकदी मिलने के मामले में एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में आज सुनवाई हुई।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार की एफआईआर दर्ज करने की मांग वाली याचिका पर आज सुनवाई हुई। इस मामले की सुनवाई जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान पीठ ने याचिका को अपरिपक्व करार दिया। इससे पहले, बुधवार को सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ के सामने वकील मैथ्यूज जे. नेदुम्परा की ओर से याचिका का उल्लेख किया गया था। हालांकि, सीजेआई ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को बताया अपरिपक्व
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने इस मामले को सुनते हुए याचिका को अपरिपक्व करार दिया। अदालत ने कहा कि मामले में ठोस सबूत और विस्तृत जांच के बिना एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया जा सकता। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने वकील मैथ्यूज जे नेदुम्परा की याचिका को तत्काल सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने से मना कर दिया था।
याचिकाकर्ता ने एफआईआर दर्ज करने के लिए के वीरस्वामी मामले में 1991 के फैसले को चुनौती दी थी। उस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय के किसी न्यायाधीश के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश की पूर्व अनुमति अनिवार्य हैं।
आग और नकदी बरामदगी का विवाद
14 मार्च की रात को जस्टिस वर्मा के आवास के एक हिस्से में आग लगने की घटना के बाद नकदी बरामदगी की अफवाहें फैल गईं। आग लगने के बाद अग्निशमन दल घटनास्थल पर पहुंचा था, जिसके बाद कथित रूप से स्टोररूम में भारी मात्रा में नकदी मिलने की खबरें सामने आईं। इस विवाद के चलते सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस वर्मा को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वापस भेजने की सिफारिश की।
न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा ने नकदी मिलने के आरोपों को निंदनीय बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि उनके या उनके परिवार के किसी सदस्य द्वारा स्टोररूम में नकदी रखने का कोई सवाल ही नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच समिति सक्रिय
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने 22 मार्च को इस मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय इन-हाउस समिति का गठन किया। समिति ने जस्टिस वर्मा के आवास का दौरा भी किया और प्रारंभिक रिपोर्ट तैयार की। सीजेआई ने जले हुए नोटों और जांच रिपोर्ट को सार्वजनिक करने का भी निर्णय लिया। यह मामला न्यायपालिका की साख पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। पहली बार सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने इस मामले से संबंधित प्रारंभिक रिपोर्ट और जले हुए नोटों के वीडियो सार्वजनिक किए। इस कदम से पारदर्शिता बनाए रखने का प्रयास किया गया हैं।
सुप्रीम कोर्ट का स्पष्ट कहना है कि याचिका अपरिपक्व है और मामले में पूरी तरह से जांच किए बिना एफआईआर दर्ज करने का आदेश नहीं दिया जा सकता। अदालत ने संकेत दिया कि इन-हाउस समिति की रिपोर्ट आने के बाद ही कोई ठोस कदम उठाया जाएगा।