सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के अधिग्रहण पर एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित नहीं कर सकती। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में 9 जजों की एक पीठ ने 8-1 के बहुमत से यह निर्णय लिया हैं।
नई दिल्ली: निजी संपत्ति के अधिग्रहण के संबंध में सरकार के अधिकारों पर आज सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट की 9 सदस्यीय संविधान पीठ ने बहुमत से यह स्पष्ट किया कि सरकार सभी निजी संपत्तियों को अधिग्रहित नहीं कर सकती। पीठ ने 8-1 के बहुमत से यह निर्णय लिया है, जो यह दर्शाता है कि निजी संपत्ति के अधिकारों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण कानूनी सिद्धांत है। यह फैसला उन मुद्दों पर प्रकाश डालता है जहां सरकार सार्वजनिक हित के नाम पर संपत्तियों का अधिग्रहण करने की कोशिश करती है, और यह सुनिश्चित करता है कि यह प्रक्रिया उचित और पारदर्शी हो।
पीठ ने 8-1 के बहुमत से लिया फैसला
चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व में 9 जजों की संविधान पीठ ने 8-1 के बहुमत से एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। इस पीठ में चीफ जस्टिस के अलावा जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस बी.वी. नागरत्ना, जस्टिस जे.बी. पारदीवाला, जस्टिस राजेश बिंडल, और जस्टिस ए.जी. मसीह शामिल हैं।
सीजेआई ने इस मामले में बहुमत से फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर के पिछले फैसले को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सभी निजी स्वामित्व वाले संसाधनों को राज्य द्वारा अधिग्रहित किया जा सकता हैं।
9 जजों की पीठ में एक जज नहीं हुए सहमत
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि भारत की अर्थव्यवस्था का उद्देश्य विकासशील देश की चुनौतियों का सामना करना है, न कि किसी एक विशेष आर्थिक ढांचे में सीमित रहना। कोर्ट ने यह भी माना कि पिछले 30 वर्षों में लागू की गई बदलती आर्थिक नीतियों के कारण भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था बना हैं।
कोर्ट ने जस्टिस अय्यर के उस विचार से असहमति व्यक्त की जिसमें उन्होंने निजी संपत्ति को सामुदायिक संपत्ति माना था। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारत की अर्थव्यवस्था का लक्ष्य किसी विशेष आर्थिक मॉडल का पालन करना नहीं है, बल्कि एक विकासशील देश के रूप में आने वाली चुनौतियों का समाधान करना हैं।
क्या हैं मामला?
सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति से संबंधित 16 याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है, जिसमें मुंबई के प्रॉपर्टी मालिकों की याचिका भी शामिल है। यह मामला 1986 में महाराष्ट्र में किए गए कानून संशोधन से संबंधित है, जिसके तहत सरकार को निजी बिल्डिंगों को मरम्मत और सुरक्षा के लिए अपने कब्जे में लेने का अधिकार मिला था। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह संशोधन भेदभावपूर्ण है और उनके संपत्ति के अधिकारों का उल्लंघन करता हैं।
सीजेआई डी.वाई. चंद्रचूड़ ने बताया कि इस मामले में तीन जजमेंट दिए गए हैं. उनका और छह अन्य जजों का, जस्टिस नागरत्ना का आंशिक सहमति वाला और जस्टिस धूलिया का असहमति वाला। यह निर्णय निजी संपत्ति के अधिकारों और सरकारी अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।