विशेषज्ञों का कहना हैं कि जन्म से पहले कुछ महीनों में बच्चे जिस प्रकार की बातचीत सुनते हैं, वह उनके संचार और भाषा कौशल को सुधारता और बिगाड़ता है। बच्चों को छूने से लेकर मुस्कुराने और उनसे बात करने तक, ये शुरुआती बातचीत संचार कौशल में विकसित होती है।
यही कारण है की, कोविड महामारी के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों ने बच्चों की भाषा और बातचीत की क्षमताओं पर काफी प्रभाव डाला है। स्पेन के कुछ शोधकर्ताओं ने खुलासा किया है कि कोविड के दौरान लोगों के बीच मेलजोल कम हो गया, शारीरिक मुलाकातें कम हो गईं और लगभग सभी शारीरिक मेलजोल बंद हो गए, जिसका असर उस दौरान पैदा हुए बच्चों पर पड़ा।
शोध कैसे किया गया?
"द कन्वर्सेशन" में प्रकाशित एक शोध पत्र से पता चलता है कि महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों का संचार इतना सीमित और अलग था कि इसने उनके विकास को प्रभावित किया। यह शोध मैड्रिड के विभिन्न संस्थानों से जुड़े चार विशेषज्ञों द्वारा किया गया था, जो की ईवा मुरिलो, सैन जुआन, आइरीन रौहास पास्कल, मार्टा कैसला सोलर और मिगुएल लाज़ारो थे। ये सभी न्यूरोसाइकोलॉजी के विशेषज्ञ हैं। शोधकर्ताओं का कहना है, जब उन्होंने दो समूहों के डेटा की तुलना की तो एक समूह में महामारी से पहले पैदा हुए बच्चे शामिल थे और उनका डेटा महामारी से पहले एकत्र किया गया था। दूसरे समूह में अक्टूबर 2019 और दिसंबर 2020 के बीच महामारी से ठीक पहले या उसके दौरान पैदा हुए बच्चे शामिल थे।
कोविड के दौरान पहने मास्क का हुआ प्रभाव
शोधकर्ताओ ने बताया की, हमारे नतीजों से पता चला कि महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों की भाषा में दूसरे समूह की तुलना में कम शब्द थे। दूसरी ओर, जो बच्चे महामारी की शुरुआत से पहले या ठीक शुरुआत में पैदा हुए थे, उनके बीच अक्टूबर 2019 और दिसंबर 2020, अधिक जटिल वाक्य बना सकते थे और उनकी बोलने शैली भी अच्छी थी।
इन परिणामों के आधार पर, शोधकर्ताओं का सुझाव हैं कि महामारी के दौरान पैदा हुए बच्चों के सामाजिक रिश्ते सीमित थे, जिससे उनकी भाषा के विकास पर असर पड़ा होगा। इसके अतिरिक्त, मास्क पहनना भी इसका एक कारक माना गया।