Delhi-NCR pollution: CPCB की AQI रिपोर्ट पर उठे सवाल, क्या दिल्ली का AQI 1200 है या 494? जानें आंकड़े

Delhi-NCR pollution: CPCB की AQI रिपोर्ट पर उठे सवाल, क्या दिल्ली का AQI 1200 है या 494? जानें आंकड़े
Last Updated: 2 दिन पहले

सीपीसीबी द्वारा जारी किए जाने वाले एक्यूआई पर सवाल उठ रहे हैं। जबकि निजी एजेंसियां दिल्ली का एक्यूआई 1000 के आसपास बताती हैं, सीपीसीबी का आंकड़ा 500 से कम होता है। इस आर्टिकल में हम इसका विश्लेषण करेंगे।

Delhi-NCR  AQI Update: दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही है, जहां न केवल सांस लेने में परेशानी हो रही है, बल्कि दृश्यता भी बहुत कम हो गई है। स्मॉग के कारण विमानों की उड़ानों पर भी असर पड़ा है, और शहर की वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। इस बीच, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) और निजी कंपनियों द्वारा जारी किए गए AQI में अंतर सामने आया है, जो जनता के बीच भ्रम पैदा कर रहा है।

CPCB का एक्यूआई

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का सिद्धांत है कि उनका एक्यूआई कभी 500 से अधिक नहीं दिखाया जाएगा, भले ही प्रदूषण की स्थिति कितनी भी गंभीर क्यों न हो। सीपीसीबी के पास 999 तक के आंकड़े मापने की क्षमता होने के बावजूद, वह 500 से अधिक आंकड़ा कभी भी सार्वजनिक नहीं करते। इसके बावजूद, निजी कंपनियां जैसे स्विस AQI और पर्पल एयर ने दिल्ली में प्रदूषण का आंकड़ा हजार के पास दिखाया है। सोमवार को भी निजी एजेंसियों ने AQI को 1000 के आसपास दर्ज किया, जबकि सीपीसीबी ने 494 का आंकड़ा बताया।

सीपीसीबी का तर्क

सीपीसीबी का कहना है कि यदि AQI 450 से अधिक है, तो यह पहले ही गंभीर स्थिति मानी जाती है और सभी आवश्यक उपाय पहले ही लागू कर दिए जाते हैं। इसलिए 500 के पार आंकड़ा दिखाने का कोई औचित्य नहीं है। उनका यह तर्क यह दिखाने के लिए है कि वे पहले ही प्रदूषण को गंभीर मानते हुए आवश्यक कदम उठा रहे हैं, भले ही आंकड़ा 500 से अधिक न हो।

क्या सीपीसीबी आंकड़ों को छिपा रहा है?

अब यह सवाल उठता है कि अगर CPCB अपने आंकड़ों पर इतने आश्वस्त हैं, तो क्यों वे निजी कंपनियों द्वारा बताए गए उच्च आंकड़ों को खारिज नहीं करते? क्या सीपीसीबी द्वारा जारी आंकड़ों से वास्तविक प्रदूषण का स्तर कम दिखाया जा रहा है, और जनता तक सही जानकारी पहुंचने से रोकने की कोशिश की जा रही है?

निजी कंपनियों का आंकड़ा और उनका तरीका

निजी कंपनियां, जैसे स्विस AQI और पर्पल एयर, अपने आंकड़ों में पीएम 2.5 और अन्य प्रदूषक कणों की जानकारी देती हैं, जो अधिक विस्तृत होते हैं। ये कंपनियां अमेरिकी AQI फॉर्मूले का पालन करती हैं, जबकि सीपीसीबी भारतीय मानकों का पालन करता है। इसमें अंतर यह है कि अमेरिका में प्रदूषण का स्तर अधिक होने पर AQI दोगुना हो जाता है, जबकि भारत में यह अधिकतम 850 तक पहुंच सकता है।

CPCB और अन्य कंपनियों के आंकड़ों में अंतर

CPCB के अनुसार, सोमवार को दिल्ली का 24 घंटे का औसत AQI 494 था, जिसे "सीवियर प्लस" यानी खतरनाक श्रेणी में रखा गया। वहीं, निजी कंपनियों द्वारा जारी आंकड़ों में दिल्ली के कई क्षेत्रों का AQI 844 से लेकर 969 तक बताया गया। यह भिन्नता दिखाती है कि दो अलग-अलग विधियों द्वारा मापे गए आंकड़े कितने भिन्न हो सकते हैं, और यह जनता के लिए भ्रमित करने वाला हो सकता है।

सीपीसीबी और सीएक्यूएम का समर्थन

वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) ने भी सीपीसीबी के AQI को सही और प्रामाणिक माना है और इसके लिए सीपीसीबी की आधिकारिक वेबसाइट या समीर ऐप को प्राथमिक स्रोत के रूप में संदर्भित किया है। इसके बावजूद, कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि निजी कंपनियों के आंकड़े पूरी तरह से गलत नहीं हो सकते, क्योंकि वे अपने आंकड़ों में पीएम 2.5 से भी छोटे कणों को शामिल करते हैं, जो सीपीसीबी के आंकड़ों से अधिक प्रदूषण की स्थिति को दर्शाते हैं।

विशेषज्ञों की राय

पर्यावरणविद विमलेंदु झा और डॉ. राधा गोयल का मानना है कि सीपीसीबी को अपने AQI मापने के तरीके में सुधार करना चाहिए। डॉ. गोयल का कहना है कि सीपीसीबी का AQI कैलिब्रेशन फार्मूला 2014 में सेट किया गया था, और तब से इसे अपडेट नहीं किया गया है। वे मानते हैं कि प्रदूषण के बढ़ते स्तर के मद्देनजर इसमें बदलाव होना चाहिए।

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर

दिल्ली में प्रदूषण का स्तर बेहद खतरनाक हो गया है, खासकर नवंबर के महीने में। 31 अक्टूबर को पीएम 2.5 का स्तर 199 था, जो 17 नवंबर को 429 तक पहुंच गया। वहीं, पीएम 10 का स्तर भी 13 नवंबर को 512 और 17 नवंबर को 538 था, जो अत्यधिक हानिकारक माने जाते हैं।

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