बैंक लोन डिफॉल्ट और लोन माफ करने का मामला, 12 लाख करोड़ तक का कर्ज माफ, जानें कौन सा बैंक रहा सबसे ज्यादा मेहरबान?

बैंक लोन डिफॉल्ट और लोन माफ करने का मामला, 12 लाख करोड़ तक का कर्ज माफ, जानें कौन सा बैंक रहा सबसे ज्यादा मेहरबान?
Last Updated: 16 दिसंबर 2024

बैंक लोन डिफॉल्ट और लोन माफ करने का मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। पिछले 10 वर्षों में बैंकों ने करीब 12 लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं, जिसमें से आधी राशि सरकारी बैंकों द्वारा माफ की गई है। यह आंकड़ा किसी भी सामान्य व्यक्ति के लिए चौंकाने वाला हो सकता है, जिनके लिए एक छोटा सा कर्ज भी बहुत कठिनाइयों के साथ मिलता है। वहीं, बैंक बड़े डिफॉल्टर्स के मामले में मेहरबान दिखाई देते हैं।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की बड़ी भूमिका

लोन डिफॉल्टर्स को राहत देने में सबसे अग्रणी नाम स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) का है। इस बैंक ने पिछले पांच साल में करीब डेढ़ लाख करोड़ रुपये के कर्ज माफ किए हैं। इसके अलावा, कई अन्य सरकारी बैंक जैसे पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया, बैंक ऑफ बड़ौदा और बैंक ऑफ इंडिया ने भी काफी रकम का कर्ज माफ किया है। इन बैंकों द्वारा कर्ज माफ करने का सिलसिला तब शुरू हुआ जब यह बैंकों ने यह मान लिया कि अब इन कर्जों के वापस मिलने के आसार कम हैं।

बड़े उद्योगपतियों के लोन डिफॉल्ट और सरकारी बैंकों का रवैया

जिन बड़े उद्योगपतियों ने बैंकों से करोड़ों रुपये का कर्ज लिया और उसे चुकता नहीं किया, उनमें से कई ने बैंकों को डिफॉल्ट की स्थिति में डाल दिया। इनमें प्रमुख नामों में अनिल अंबानी, जिंदल और जेपी ग्रुप के उद्योगपति शामिल हैं। सरकार के आंकड़ों के अनुसार, इन उद्योगपतियों के लोन की रकम भी बट्टे खाते में डाली गई है। इसके बावजूद छोटे लोन लेने वाले ग्राहकों के लिए बैंक की शर्तें और प्रक्रिया बेहद जटिल और कठिन होती हैं, जिनकी वजह से उन्हें ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज मिल पाता है।

बट्टे खाते में डालने का क्या मतलब?

जब बैंकों का यह मानना हो जाता है कि किसी लोन का वापस मिलना असंभव है, तो वे उस लोन को 'बट्टे खाते में डाल देते हैं' इसका मतलब है कि बैंक अब उस कर्ज की वसूली की कोशिशें कम कर देती हैं और इसके बाद कानूनी प्रक्रियाएं शुरू की जाती हैं। पिछले पांच वर्षों में स्टेट बैंक ने लगभग दो लाख रुपये बट्टे खाते में डाले हैं। सभी सरकारी बैंकों ने मिलकर इस दौरान करीब साढ़े छह लाख करोड़ रुपये बट्टे खाते में डाले हैं।

समानता का संकट: आम नागरिक और बड़े डिफॉल्टर्स के बीच अंतर

यह पूरा मामला एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा करता हैआखिर क्यों बैंकों द्वारा आम नागरिकों से ज्यादा मेहरबानी बड़े डिफॉल्टर्स पर दिखाई जाती है? छोटे कर्जदारों को बैंक द्वारा टोकन फंडिंग और कागजी कार्रवाई के चलते संघर्ष करना पड़ता है, जबकि बड़े लोन डिफॉल्टर्स के लिए आसान रास्ता खोला जाता है। यह असमानता आने वाले समय में और बढ़ सकती है, यदि इस पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया जाता है।

बैंकों द्वारा दिए गए लोन माफ करने के आंकड़े यह बताते हैं कि बड़े उद्योगपति लोन के डिफॉल्टर होने के बावजूद आसानी से बैंकों से माफी पा लेते हैं, जबकि छोटे कर्जदारों के लिए हमेशा कड़ी प्रक्रिया होती है। यह भी दिखाता है कि बैंकों की प्राथमिकताएं अलग-अलग हो सकती हैं। आने वाले समय में इस स्थिति पर सरकार को ध्यान देने की जरूरत है ताकि छोटे और बड़े कर्जदारों के बीच समानता सुनिश्चित की जा सके।

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