बढ़ती महंगाई! रोटी और दाल जैसी जरूरी चीजों पर खर्च करना कठिन, देखें त्योहारों पर इसका प्रभाव

बढ़ती महंगाई! रोटी और दाल जैसी जरूरी चीजों पर खर्च करना कठिन, देखें त्योहारों पर इसका प्रभाव
Last Updated: 27 अक्टूबर 2024

भारत में महंगाई ने आम जनता की जीवनशैली को प्रभावित करना शुरू कर दिया है। अगस्त में खुदरा महंगाई दर 3.65 प्रतिशत थी, जो सितंबर में बढ़कर 5.49 प्रतिशत तक पहुंच गई है। इस बढ़ती महंगाई ने त्योहारों की तैयारियों को प्रभावित किया है, जिससे लोगों को आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

Diwali 2024:  हर साल दिवाली का त्योहार माता लक्ष्मी की पूजा और समृद्धि की कामना के साथ मनाया जाता है। इस अवसर पर घरों में भक्ति से भरी आरतियों की गूंज होती है, लेकिन इस बार मां लक्ष्मी के स्वागत की तैयारियों में सबसे बड़ी चुनौती महंगाई बनकर सामने आई है।

वास्तव में, भारत में बढ़ती कीमतों ने केवल लोगों के त्योहारों की खुशियों को प्रभावित किया है, बल्कि महंगाई के चलते कई लोग अपने उत्सव को भी स्थगित करने पर मजबूर हो रहे हैं। सजावट से लेकर मिठाइयों तक, हर चीज की कीमतें आसमान छू रही हैं। ऐसे में एक बड़ा सवाल उठता हैक्या इस बार हम लक्ष्मी माता का स्वागत पूरे उत्साह और खुशी के साथ कर पाएंगे, या महंगाई की काली छाया में दिवाली का त्योहार फीका रह जाएगा?

आंकड़े क्या कहते हैं?

राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुसार, भारत में अगस्त महीने में खुदरा महंगाई दर 3.65 प्रतिशत थी, जो सितंबर में बढ़कर 5.49 प्रतिशत पर पहुंच गई। इस प्रकार, एक ही महीने में महंगाई दर में 2 प्रतिशत का उछाल देखा गया है। महीने-दर-महीने के आधार पर, सितंबर में सब्जियों की महंगाई दर 35.99 प्रतिशत तक पहुंच गई, जबकि अगस्त में यह दर 10.71 प्रतिशत थी। अनाज, दूध, फल और अंडों की कीमतों में भी महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है। रिपोर्ट के अनुसार, दालों और अन्य उत्पादों की महंगाई दर अगस्त में 13.6 प्रतिशत से घटकर 9.81 प्रतिशत पर गई है।

खाने के तेल की कीमतों में वृद्धि

रिपोर्टों के अनुसार, पिछले एक महीने में पाम ऑयल की कीमतों में 37 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जिसने घरेलू बजट पर दबाव डाला है। इसके साथ ही, रेस्तरां, होटल और मिठाई की दुकानों की लागत भी बढ़ गई है, क्योंकि वे स्नैक्स तैयार करने में तेल का उपयोग करते हैं। इसी दौरान, घरों में सामान्यत: इस्तेमाल होने वाले सरसों के तेल की कीमत में भी 29 प्रतिशत का इजाफा हुआ है।

तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण

तेल की कीमतें हाल ही में बढ़ गई हैं, जिसका मुख्य कारण सब्जियों और अन्य खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें हैं। सितंबर में खुदरा महंगाई दर 5.5 प्रतिशत तक पहुँच गई, जो पिछले नौ महीनों में सबसे उच्चतम स्तर है। इसके अलावा, सरकार ने पिछले महीने कच्चे सोयाबीन, पाम और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी की, जिससे कीमतों में और उछाल आया। 14 सितंबर से, कच्चे पाम, सोयाबीन और सूरजमुखी तेल पर आयात शुल्क को 5.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 27.5 प्रतिशत और रिफाइंड फूड ऑयल पर 13.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 35.7 प्रतिशत कर दिया गया है। इस प्रकार, इन कारकों ने मिलकर तेल की कीमतों में वृद्धि को जन्म दिया है।

महंगाई कर रही त्योहार का मजा किरकिरा

महंगाई के इस दौर में त्योहारों का जश्न मनाना पहले की तरह आसान नहीं रह गया है। इस मुद्दे पर इकोनॉमिस्ट विकास बंसल ने एबीपी लाइव से बातचीत करते हुए कहा कि देश में महंगाई इस हद तक बढ़ गई है कि लोगों का ध्यान अब केवल जरूरी चीजों पर केंद्रित हो गया है। पहले, ज़रूरत में केवल रोटी, कपड़ा और मकान शामिल थे, लेकिन अब स्वास्थ्य और शिक्षा भी इन आवश्यकताओं में शामिल हो गए हैं। उन्होंने आगे बताया कि बढ़ती महंगाई के कारण आम आदमी की आय अब इन पांच बुनियादी चीज़ों पर ही खर्च हो रही है।

यही वजह है कि मिडिल क्लास परिवारों के शौक पूरे नहीं हो पा रहे हैं। रेस्टोरेंट में खाने जाना, मल्टीप्लेक्स में फिल्में देखना, घूमने-फिरने और शॉपिंग करने जैसे शौक अब महज ख्वाब बनकर रह गए हैं। हालांकि, मिडिल क्लास परिवारों को अपने बच्चों की स्कूल फीस भरने या बुजुर्गों की दवाइयों का खर्च उठाने में कोई विशेष समस्या नहीं रही है, लेकिन उनके मनोरंजन और शौक पूरे करने की संभावनाएं लगातार सीमित होती जा रही हैं।

महंगाई बढ़ने के पीछे क्या कारण हैं?

इकोनॉमिस्ट विकास बंसल के अनुसार, इस समय वैश्विक मंदी का दौर चल रहा है, जिसका प्रभाव भारत पर भी पड़ रहा है। उन्होंने बताया कि एक ओर, प्राइवेट सेक्टर में कर्मचारियों की वेतन वृद्धि नहीं हुई है, और यदि हुई भी है, तो वह बहुत मामूली है। दूसरी ओर, व्यापारियों की कमाई में भी कमी आई है। इसका एक प्रमुख कारण यह है कि पहले रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध चल रहा था, और अब इजराइल-हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष जारी है। जब विश्व के बड़े हिस्से में युद्ध होते हैं, तो इससे सभी देशों को समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विकास आगे कहते हैं कि इन संघर्षों के कारण जर्मनी और अमेरिका की अर्थव्यवस्था भी कमजोर हो गई है।

भारत में महंगाई कैसे मापी जाती है?

भारत सरकार महंगाई को मापने के लिए मुख्यतः उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) और थोक मूल्य सूचकांक (WPI) का सहारा लेती है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) उन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों को दर्शाता है जिन्हें उपभोक्ता खरीदते हैं, जैसे कि खाद्य सामग्री, आवास, कपड़े, स्वास्थ्य सेवाएं, परिवहन और शिक्षा। यह सूचकांक हर महीने अपडेट किया जाता है और इसके आधार पर महंगाई की दर का आकलन किया जाता है। वहीं, थोक मूल्य सूचकांक (WPI) उत्पादन स्तर पर वस्तुओं की कीमतों को मापता है, जिसमें कच्चे माल और थोक में बिकने वाली वस्तुओं की कीमतें शामिल होती हैं।

यह आंकड़ा कृषि, उद्योग और खनन से संबंधित उत्पादों के लिए प्रयोग किया जाता है। महंगाई के आंकलन की प्रक्रिया में विभिन्न बाजारों से कीमतों का डेटा इकट्ठा किया जाता है, और फिर विभिन्न वस्तुओं को उनके महत्व के अनुसार वजन दिया जाता है। अंततः, इन आंकड़ों के आधार पर CPI और WPI के सूचकांकों का निर्माण किया जाता है। भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा नियमित रूप से इन सूचकांकों की रिपोर्ट जारी की जाती है, जो नीतिगत निर्णय लेने में सहायक होती है और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में मदद करती है।

महंगाई का अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

भारत में महंगाई का अर्थव्यवस्था पर कई महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। सबसे पहले, जब महंगाई में वृद्धि होती है, तो उपभोक्ताओं की खरीदारी शक्ति कम हो जाती है। इससे रोजमर्रा की जरूरतों के लिए खर्च बढ़ता है, जिसके कारण लोगों को अपनी बचत या अन्य खर्चों में कटौती करनी पड़ती है। यह उपभोक्ता खर्च में कमी लाता है, जो आर्थिक विकास को प्रभावित कर सकता है।

इसके अतिरिक्त, बढ़ती महंगाई का प्रभाव व्यवसायों पर भी देखने को मिलता है। कंपनियों को उत्पादन के लिए कच्चे माल की उच्च कीमतें चुकानी पड़ती हैं, जिससे उनकी लागत में वृद्धि होती है। इस परिस्थिति में, कंपनियां या तो अपने उत्पादों की कीमतें बढ़ाती हैं या मुनाफे में कटौती करती हैं, जिससे बाजार में प्रतिस्पर्धा प्रभावित होती है। महंगाई के बढ़ने पर भारतीय रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ा सकता है, जिससे ऋण लेना महंगा हो जाता है। उच्च ब्याज दरें निवेश पर भी असर डालती हैं, क्योंकि व्यवसाय और उपभोक्ता दोनों उधारी के लिए अधिक राशि चुकाते हैं।

 

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