ब्राह्मण समाज का इतिहास क्या है, कैसे हुई ब्राह्मणों की उत्पति? यहां जानें

ब्राह्मण समाज का इतिहास क्या है, कैसे हुई ब्राह्मणों की उत्पति? यहां जानें
Last Updated: 13 जुलाई 2024

ब्राह्मण समाज का इतिहास और उत्पत्ति जानें

प्राचीन वेदों के अनुसार, समाज को चार वर्णों में विभाजित किया गया था: ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, और शूद्र। तीन वेद (ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद) इन वर्णों के कर्तव्यों का निर्धारण करते हैं। ब्राह्मण का कर्तव्य अध्ययन, अध्यापन, यज्ञ करना और करवाना, दान देना और लेना था। सबसे ऊपर के स्थान पर होने के कारण, ब्राह्मणों को जातिगत भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ा, लेकिन उन्हें अन्य वर्गों से ईर्ष्या और द्वेष का सामना करना पड़ा।

कुछ लोग ब्राह्मणों को अपने पिछड़ेपन का दोषी मानते हैं। भारत में कुछ निचले तबके के लोगों ने हिन्दू धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपना लिए, इसका कारण ब्राह्मणों का अत्याचार बताया गया। ब्राह्मणों के खिलाफ कई किताबें और लेख लिखे गए हैं। हालांकि, सारे ब्राह्मण अच्छे सामाजिक स्थिति में नहीं हैं, लेकिन जातिगत आधार पर उन्हें आरक्षण जैसी सुविधाओं से वंचित किया गया। ब्राह्मण कर्मशील, समझदार, धार्मिक, व्यावहारिक, सामाजिक, जुझारू और शिक्षा के महत्व को समझने वाले होते हैं। अगर हम उनके दैनिक क्रियाकलापों और आदतों को अपनाएं तो हम भी एक अच्छी सामाजिक स्थिति में पहुंच सकते हैं।

 

ब्राह्मण किस श्रेणी में आते हैं?

ब्राह्मण सामान्यतः सामान्य श्रेणी (General Category) में आते हैं, लेकिन यह राज्य पर निर्भर करता है। हरियाणा और पंजाब में जाट सामान्य हैं लेकिन अन्य राज्यों में वे ओबीसी हैं।

 

ब्राह्मणों के प्रकार

स्मृति-पुराणों में ब्राह्मण के 8 भेदों का वर्णन है: मात्र, ब्राह्मण, श्रोत्रिय, अनुचान, भ्रूण, ऋषिकल्प, ऋषि और मुनि। ब्राह्मणों के सरनेम और विधि-विधान में अंतर होता है। ब्राह्मणों के सरनेम उनके उपनामों के आधार पर होते हैं।

 

ब्राह्मणों की उत्पत्ति

ईश्वर ने सृष्टि की रक्षा के लिए अपने मुख, भुजा, ऊरु (जंघा) और चरणों से क्रमशः ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र को उत्पन्न किया और उनके कर्तव्यों का निर्धारण किया। ब्राह्मणों के लिए पढ़ना, पढ़ाना, यज्ञ करना, यज्ञ कराना, दान देना और दान लेना निर्धारित किया गया। ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए, इसलिए वे सबसे उत्तम हैं।

ब्राह्मणों की वंशावली

भविष्य पुराण के अनुसार, महर्षि कश्यप के पुत्र कण्व की पत्नी आर्यावनी नाम की देव कन्या थी। ब्रह्मा की आज्ञा से दोनों ने सरस्वती नदी के तट पर तपस्या की। वरदान के प्रभाव से कण्व के दस पुत्र हुए: उपाध्याय, दीक्षित, पाठक, शुक्ला, मिश्रा, अग्निहोत्री, दुबे, तिवारी, पाण्डेय, चतुर्वेदी।

 

ब्राह्मणों के गोत्र

इनके गोत्र हैं: कश्यप, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्रि, वसिष्ठ, वत्स, गौतम, पराशुराम, गर्ग, अत्रि, भृगडत्र, अंगिरा, श्रंगी, कात्याय, याज्ञवल्क्य।

 

ब्राह्मणों की आज की स्थिति

ब्राह्मण समाज ने शिक्षकों, विद्वानों, डॉक्टरों, योद्धाओं, लेखकों, कवियों, राजनेताओं के रूप में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। आधुनिक ब्राह्मण माता-पिता अपने बच्चों को कंप्यूटर प्रोग्रामर और इंजीनियर बनाना चाहते हैं। ब्राह्मण समाज के महत्वपूर्ण योगदान को जानने के लिए ब्राह्मण प्रसिद्ध सूची देखी जा सकती है।

 

ब्राह्मण के विदेशी होने का डीएनए सबूत

हरियाणा के राखीगढ़ी में मिले 2500 साल पुराने कंकालों के डीएनए में R1a1 जीन का कोई निशान नहीं मिला है, जिसे आर्यन जीन कहा जाता है। यह दर्शाता है कि भारत का ब्राह्मण समुदाय विदेशी नहीं है। आर्य आक्रमण सिद्धांत अंग्रेजों द्वारा फूट डालो और शासन करो की नीति का हिस्सा था।

 

सरयूपारीण ब्राह्मणों का इतिहास

सरयूपारीण ब्राह्मण सरयू नदी के पूर्वी तरफ बसे ब्राह्मणों को कहा जाता है। ये ब्राह्मण कान्यकुब्ज ब्राह्मणों की शाखा हैं। भगवान श्रीराम ने लंका विजय के बाद यज्ञ करवाकर इन्हें सरयू के पार बसाया था।

 

ब्राह्मणों को पूजनीय क्यों माना गया है?

शास्त्रों में ब्राह्मणों का स्थान सर्वप्रथम है। ब्राह्मणों के बताई विधियों से ही धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की सिद्धि मानी गई है। ब्राह्मण की उत्पत्ति भगवान के मुख से हुई है, इसलिए वे पूजनीय माने जाते हैं।

 

निष्कर्ष

ब्राह्मण समाज का इतिहास प्राचीन वेदों और पुराणों में विस्तार से मिलता है। समाज में उनकी उच्च स्थिति और उनके कर्तव्यों का उल्लेख उनके महत्व को दर्शाता है। हालांकि, समय के साथ उनकी स्थिति में बदलाव आया है, लेकिन उनकी सांस्कृतिक और धार्मिक महत्वता आज भी बरकरार है।

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