इंद्रप्रस्थ से दिल्ली तक: जानें किसने रखा नाम और महाभारत से जुड़ा इसका ऐतिहासिक सफर

इंद्रप्रस्थ से दिल्ली तक: जानें किसने रखा नाम और महाभारत से जुड़ा इसका ऐतिहासिक सफर
Last Updated: 5 घंटा पहले

दिल्ली, जो आज भारत की राजनीतिक और सांस्कृतिक राजधानी के रूप में एक प्रमुख स्थान रखती है, उसका इतिहास कई शताब्दियों पुराना और विविधतापूर्ण है। यह शहर न केवल भारतीय इतिहास, बल्कि दुनिया के इतिहास में भी अपनी खास पहचान रखता है। दिल्ली का इतिहास महाभारत काल से लेकर आज तक कई बदलावों और घटनाओं से गुजरते हुए एक अद्भुत सफर तय किया है। आइए, जानें कि कैसे इंद्रप्रस्थ से यह शहर दिल्ली के रूप में विकसित हुआ और यह महाभारत से जुड़ी एक अहम कड़ी कैसे बना।

महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ की स्थापना

दिल्ली का इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। महाभारत के पांडवों ने इंद्रप्रस्थ को अपनी राजधानी के रूप में स्थापित किया था। यह नगर भगवान इंद्र के सम्मान में बसाया गया था और इसे पांडवों ने इंद्र के सहयोग से खांडव वन के स्थान पर बसाया। कहा जाता है कि इंद्रप्रस्थ की स्थापना के समय, पांडवों ने इस शहर को पूरी तरह से सजाया और इसे एक शानदार राजधानी में बदल दिया। यह स्थान न केवल धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता था, बल्कि एक समृद्ध और समृद्धशाली नगर के रूप में भी प्रसिद्ध था।

राजा ढिल्लू और मौर्य सम्राट

इंद्रप्रस्थ के बाद, दिल्ली का इतिहास मौर्य सम्राट राजा ढिल्लू से जुड़ा हुआ है। कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मौर्य सम्राट राजा ढिल्लू ने इस शहर की स्थापना की और इसके नाम को 'ढिल्लू' रखा, जो बाद में 'दिल्ली' के रूप में प्रसिद्ध हुआ। राजा ढिल्लू के समय में दिल्ली एक महत्वपूर्ण स्थल के रूप में स्थापित हुआ, और यहाँ से शहर की सांस्कृतिक और राजनीतिक गतिविधियाँ धीरे-धीरे बढ़ने लगीं। इसके बाद, समय के साथ दिल्ली के विकास ने एक नई दिशा ली और यह विभिन्न सम्राटों के अधीन रहा।

तोमर वंश और दिल्ली का पुनर्निर्माण

दिल्ली का इतिहास तोमर वंश के राजा अनंगपाल से भी जुड़ा है। राजा अनंगपाल ने दिल्ली को एक शक्तिशाली राज्य बनाने के लिए कई किले और महलों का निर्माण करवाया। उनका सबसे प्रसिद्ध निर्माण 'लाल कोट' किला था, जो दिल्ली का पहला मजबूत किला था। इस किले के निर्माण के साथ ही दिल्ली को एक नया रूप मिला, और इसे एक प्रमुख शहर के रूप में स्थापित किया गया। इसके बाद दिल्ली ने विभिन्न शासकों के अधीन सत्ता की पहचान बनाई और एक महत्वपूर्ण शहर के रूप में उभरा।

दिल्ली का ब्रिटिश काल में स्थान

दिल्ली का इतिहास ब्रिटिश काल में भी महत्वपूर्ण मोड़ पर पहुँचा। 1911 में, ब्रिटिश सम्राट जॉर्ज पंचम ने दिल्ली को ब्रिटिश भारत की राजधानी के रूप में घोषित किया। इस ऐतिहासिक निर्णय ने दिल्ली के राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को नया मोड़ दिया। 13 फरवरी 1931 को दिल्ली औपचारिक रूप से ब्रिटिश भारत की राजधानी बनी, और इसके बाद दिल्ली का रूप पूरी तरह से बदल गया। इस समय दिल्ली में कई नए प्रशासनिक और बुनियादी ढांचे का निर्माण हुआ, जो आज भी दिल्ली की पहचान हैं।

स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का पुनर्निर्माण

भारत की स्वतंत्रता के बाद, 1947 में दिल्ली को आधिकारिक रूप से भारत की राष्ट्रीय राजधानी घोषित किया गया। इसके बाद दिल्ली में तेजी से विकास हुआ, और यह शहर न केवल राजनीतिक बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण बन गया। नई दिल्ली का निर्माण भारतीय वास्तुकला और ब्रिटिश शैली का अद्भुत मिश्रण था, जिसे सर एडविन लुटियंस और सर हेरी स्मिथ ने डिजाइन किया था। स्वतंत्रता के बाद दिल्ली ने एक नए आधुनिक रूप को अपनाया और आज यह दुनिया के सबसे प्रमुख महानगरों में से एक बन चुका है।

दिल्ली का इतिहास महाभारत के इंद्रप्रस्थ से लेकर ब्रिटिश काल, स्वतंत्रता संग्राम और आज की आधुनिक दिल्ली तक एक लंबा और गौरवपूर्ण सफर रहा है। इस शहर ने समय के साथ न केवल अपनी पहचान बनाई है, बल्कि भारतीय संस्कृति और राजनीति का केंद्र भी बन गया है। महाभारत से लेकर आधुनिक भारत तक दिल्ली की यह यात्रा हमें इतिहास के विभिन्न मोड़ों से रूबरू कराती है, जो इस शहर की महानता और विविधता को दर्शाती है। दिल्ली न केवल एक ऐतिहासिक शहर है, बल्कि यह आज भी अपने अंदर कई कहानियों, संघर्षों और विजयों को संजोए हुए है।

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