कर्ण के जन्म की कहानी

कर्ण के जन्म की कहानी
Last Updated: 12 मई 2023

   कर्ण के जन्म की कहानी    Story of Karna's birth

यह कहानी ऐसे योद्धा की है, जिसे लोग दानवीर कर्ण के नाम से जानते है। कर्ण पांडवों में सबसे बड़े थे और इस बात का पता सिर्फ माता कुंती को ही था। कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले ही हो गया था। इसलिए, लाेकलाज के डर से कुंती ने कर्ण को छोड़

दिए थे, लेकिन कर्ण का जन्म कुंती के विवाह से पहले कैसे हो गया, इसके पीछे भी एक कहानी है। बात उस समय की है जब कुंती का विवाह नहीं हुआ था और वे सिर्फ राजकुमारी थीं। उसी दौरान ऋषि दुर्वासा पूरे एक वर्ष के लिए राजकुमारी कुंती के पिता के

महल में अतिथि के रूप में ठहरे। कुंती ने एक वर्ष तक उनकी खूब सेवा की। राजकुमारी की सेवा से ऋषि दुर्वासा प्रसन्न हो गए और उन्होंने कुंती को वरदान दिए कि वो किसी भी देवता को बुलाकर उनसे संतान की प्राप्ती कर सकती है।

एक दिन कुंती के मन में आया कि क्यों न वरदान की परीक्षा की जाए। ऐसा सोचकर उन्होंने सूर्य देव की प्रार्थना करके उन्हें बुला लिए। सूर्य देव के आने और वरदान के प्रभाव से कुंती विवाह के पूर्व ही गर्भवती हो गईं। कुछ समय बाद उन्होंने एक पुत्र को जन्म दिए,

जो सूर्य देव के समान ही प्रभावशाली था। साथ ही जन्म के समय से ही उस शिशु के शरीर पर कवच और कुंडल थे। कुंवारी अवस्था में पुत्र की प्राप्ति के कारण लोकलाज के डर से कुंती ने उसे एक डिब्बे में बंद करके नदी में बहा दिए। बक्सा एक सारथी और

उसकी पत्नी को मिला, जिनकी कोई संतान नहीं थी। वो दोनों कर्ण के रूप में पुत्र को पाकर बहुत खुश और उसका लालन पालन करने लगे। यही सूर्य पुत्र आगे चलकर दानवीर कर्ण कहलाए और कई वर्षों बाद कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांचों पांडवों के सामने वह एक

शक्तिशाली योद्धा के रूप में खड़े रहे।

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