भारतीय संस्कृति में कई रहस्यमयी परंपराएं हैं, जो पौराणिक कथाओं और ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ी हैं। ऐसी ही एक अनोखी परंपरा है किन्नरों द्वारा एक रात के लिए विवाह करना। यह परंपरा महाभारत के महान योद्धा अरावन से जुड़ी हुई है, जिनकी कथा त्याग और बलिदान की अनूठी मिसाल पेश करती है। खास बात यह है कि इस परंपरा के मूल में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण का एक अद्भुत त्याग भी छिपा हुआ है। आइए जानते हैं, इस परंपरा के पीछे की पौराणिक कथा और इसका किन्नर समाज से गहरा संबंध।
कौन थे अरावन और क्यों दी गई उनकी बलि?
महाभारत के अनुसार, अरावन अर्जुन और नागकन्या ऊलूपी के पुत्र थे। वे एक पराक्रमी योद्धा थे, जिनका नाम उनके वीरता और बलिदान के लिए जाना जाता है। महाभारत युद्ध के दौरान, पांडवों ने देवी काली को प्रसन्न करने के लिए एक विशेष यज्ञ करने का निर्णय लिया। इस यज्ञ की सफलता के लिए किसी राजकुमार को स्वेच्छा से बलिदान देना आवश्यक था। कोई भी योद्धा इसके लिए तैयार नहीं हुआ, लेकिन अरावन ने बिना संकोच अपने प्राणों की आहुति देने की सहमति दी।
अरावन की अंतिम इच्छा और श्रीकृष्ण का रूप परिवर्तन
अरावन ने बलिदान से पहले एक अंतिम इच्छा व्यक्त की— वह मृत्यु से पहले विवाह करना चाहते थे। यह एक कठिन स्थिति थी क्योंकि कोई भी कन्या यह जानते हुए विवाह करने को तैयार नहीं थी कि उसका पति अगले दिन मर जाएगा। जब कोई समाधान नहीं मिला, तो स्वयं श्रीकृष्ण ने एक चमत्कारी कदम उठाया।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी माया का प्रयोग कर स्वयं को एक सुंदर स्त्री में परिवर्तित कर लिया और "मोहिनी" नामक राजकुमारी का रूप धारण किया। इस रूप में उन्होंने अरावन से विवाह किया और उनकी अंतिम इच्छा पूरी की। जब अगली सुबह अरावन की बलि दी गई, तो श्रीकृष्ण ने विधवा के रूप में विलाप किया और इस महान बलिदान की गाथा को अमर कर दिया।
किन्नरों की परंपरा और अरावन उत्सव
इस पौराणिक कथा का गहरा संबंध किन्नर समाज से है। किन्नर अरावन को अपना देवता मानते हैं और उनके प्रति विशेष श्रद्धा रखते हैं। इसी कारण, तमिलनाडु में विशेष रूप से अरावन देवता की याद में किन्नर समाज एक रात के लिए प्रतीकात्मक विवाह करता है। इस परंपरा को "अरावनी उत्सव" या "कूथांडावर उत्सव" के रूप में मनाया जाता है, जिसमें किन्नर अरावन देवता की मूर्ति से विवाह करते हैं और अगले दिन विधवा के रूप में शोक मनाते हैं।
इस परंपरा का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
अरावन का बलिदान: यह परंपरा अरावन के त्याग को याद रखने का एक माध्यम है।
श्रीकृष्ण का त्याग: यह घटना श्रीकृष्ण की करुणा और उनकी लीलाओं की गहराई को दर्शाती है।
किन्नरों की पहचान: यह उत्सव किन्नरों के समाज में धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को मजबूती देता है।
किन्नरों की संस्कृति से जुड़ा यह उत्सव क्यों है खास?
भारत में किन्नर समुदाय को अक्सर मुख्यधारा समाज से अलग समझा जाता है, लेकिन यह उत्सव उनके आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाता है। इस परंपरा से वे अपने देवता अरावन के प्रति भक्ति प्रकट करते हैं और अपने समुदाय के एकजुटता का प्रदर्शन करते हैं।
किन्नरों की यह एक रात की शादी केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि त्याग, भक्ति और समाज से जुड़ाव का प्रतीक है। श्रीकृष्ण द्वारा निभाई गई यह लीला प्रेम, करुणा और कर्तव्यपरायणता की अद्भुत मिसाल पेश करती है। अरावन देवता की इस कथा के माध्यम से यह परंपरा समाज और आध्यात्मिकता के गहरे संबंध को दर्शाती है, जो भारतीय संस्कृति की विविधता और गहराई को उजागर करता है।