भगवान शिव के अनगिनत भक्त उन्हें महादेव, भोलेनाथ, आदिदेव, देवाधिदेव जैसे कई नामों से पुकारते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि शिव और शंकर एक ही हैं या दोनों में कोई मौलिक अंतर है? धर्मशास्त्रों में इस विषय पर कई रोचक बातें मिलती हैं, जिनसे यह स्पष्ट होता है कि शिव और शंकर एक ही शक्ति के दो अलग-अलग रूप हैं। आइए जानते हैं इस रहस्य के पीछे की सच्चाई।
भगवान शिव और शंकर: क्या हैं अलग?
सनातन धर्म में भगवान शिव और शंकर को लेकर अलग-अलग धारणाएँ हैं। कुछ लोग इन्हें एक मानते हैं, जबकि कुछ मानते हैं कि दोनों अलग हैं। शिव पुराण के अनुसार, शिव निराकार, प्रकाश पुंज स्वरूप हैं, जबकि शंकर भगवान शिव का साकार रूप हैं।
भगवान शिव का स्वरूप
भगवान शिव को सर्वोच्च शक्ति और परमात्मा का स्वरूप माना जाता है। वे निराकार, ज्योति स्वरूप हैं, जिनकी पूजा शिवलिंग के रूप में की जाती है। शिवलिंग ब्रह्मांडीय ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। शिव स्वयंभू हैं, अर्थात् उनकी कोई उत्पत्ति नहीं हुई, वे सृष्टि की आदि शक्ति हैं। वे ब्रह्मांड के निर्माण, पालन और संहार के मूल कारक हैं। शिव का स्वरूप ध्यान और मोक्ष का प्रतीक है, और वे सदा ध्यानस्थ रहते हैं।
भगवान शंकर का स्वरूप
भगवान शंकर, शिव के साकार रूप माने जाते हैं। उन्हें त्रिलोचन (तीन नेत्रों वाले), जटाधारी, त्रिशूलधारी और ध्यानमग्न योगी के रूप में चित्रित किया जाता है। शंकर जी कैलाश पर्वत पर निवास करते हैं और वे अपने भक्तों की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। वे संसार में व्याप्त दैवीय शक्तियों के संरक्षक और लोकहित के लिए विभिन्न रूप धारण करने वाले देवता हैं।
भगवान शिव और शंकर की उत्पत्ति का रहस्य
शिव पुराण के अनुसार, सबसे पहले एक दिव्य प्रकाश पुंज उत्पन्न हुआ, जिससे ब्रह्मा और विष्णु की उत्पत्ति हुई। जब ब्रह्मा जी ने उस प्रकाश पुंज से पूछा कि 'आप कौन हैं?', तो उत्तर मिला – "मैं शिव हूँ।" इसके बाद ब्रह्मा जी ने उस प्रकाश पुंज से साकार रूप लेने की प्रार्थना की, तब भगवान शंकर प्रकट हुए। इसलिए भगवान शिव और शंकर को एक ही शक्ति का अंश माना जाता है, लेकिन शिव निराकार और शंकर साकार रूप में पूजे जाते हैं।
शिव और शंकर में मुख्य अंतर
भगवान शिव और भगवान शंकर में मूलभूत अंतर यह है कि शिव निराकार, ज्योतिर्मय और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के प्रतीक हैं, जबकि शंकर साकार, शरीरधारी और सांसारिक रूप में पूजे जाते हैं। शिव की उपासना ध्यान और साधना द्वारा की जाती है, जबकि शंकर की प्रत्यक्ष आराधना की जाती है। शिव परमधाम में निवास करते हैं, जबकि शंकर कैलाश पर्वत पर विराजमान होते हैं। शिव निर्विकार, अनादि और निर्लेप हैं, जबकि शंकर करुणामयी, संवेदनशील और भक्तों की प्रार्थनाओं से प्रसन्न होने वाले देवता हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अंतर
विष्णु पुराण के अनुसार, भगवान विष्णु की नाभि से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई और भगवान विष्णु के माथे से तेज उत्पन्न हुआ, जिससे भगवान शिव प्रकट हुए। शिव परमधाम के निवासी हैं और शंकर सूक्ष्म लोक में रहने वाले देवता हैं। भगवान शंकर भी शिवलिंग की पूजा करते हैं क्योंकि शिव संपूर्ण सृष्टि के स्रोत हैं।
शिवरात्रि: शिव के सम्मान में पर्व
महाशिवरात्रि भगवान शिव की स्मृति में मनाई जाती है, न कि भगवान शंकर की। इससे यह स्पष्ट होता है कि भगवान शिव स्वयं अनंत, अखंड और निराकार ऊर्जा के प्रतीक हैं, जबकि भगवान शंकर उनके साकार रूप हैं।
शंकर का सांसारिक जीवन
भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती से हुआ था, जो शक्ति का स्वरूप हैं। उनके दो पुत्र – भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय हैं। यह तथ्य शंकर को एक पारिवारिक देवता के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि शिव निराकार हैं और किसी भी सांसारिक बंधन से मुक्त हैं।