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ज्येष्ठ मास 2025: तप, सेवा और पुण्य के महीनों में शामिल ये चार पावन व्रत और पर्व

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हिंदू धर्म में वर्ष के प्रत्येक मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व होता है। इन्हीं में से एक है 'ज्येष्ठ मास', जिसे तप, सेवा और दान का मास माना जाता है। इस वर्ष 2025 में ज्येष्ठ मास 13 मई से प्रारंभ हुआ और 11 जून तक रहेगा। इस माह की तपती दोपहरी और लू के बीच किया गया दान और व्रत न केवल शरीर को तपाता है, बल्कि आत्मा को भी शुद्ध करता है। यही कारण है कि इस माह में व्रत, उपवास, दान, और तीर्थ स्नान का विशेष महत्व होता है। आइए जानते हैं इस माह में आने वाले चार प्रमुख व्रत और त्योहारों के बारे में, जो आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पुण्यदायी माने गए हैं।

अपरा एकादशी – 23 मई 2025 (शुक्रवार)

अपरा एकादशी का व्रत ज्येष्ठ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को रखा जाता है। 2025 में यह शुभ तिथि 23 मई, शुक्रवार को पड़ रही है। इस दिन 'सर्वार्थ सिद्धि योग' और 'अमृत सिद्धि योग' जैसे विशेष संयोग बन रहे हैं, जिससे इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है। यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित होता है और इसे करने से जीवन के सभी पाप मिटते हैं और पुण्य की प्राप्ति होती है। यह दिन आत्मशुद्धि और अध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।

अपरा एकादशी पर व्रती को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना चाहिए और स्वच्छ वस्त्र धारण कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। पूजा के समय तुलसी पत्र, फल, जल और दीपक अर्पित करें। घी का दीप जलाकर "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करें। इस दिन अन्न ग्रहण न करें और एक समय फलाहार लें। पूर्ण श्रद्धा और भक्ति से उपवास करने पर भगवान विष्णु अपने भक्तों को मोक्ष प्रदान करते हैं और जीवन में सुख-शांति देते हैं।

वट सावित्री व्रत – 26 मई 2025 (सोमवार)

वट सावित्री व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए एक विशेष और श्रद्धा से भरा हुआ पर्व होता है। यह व्रत ज्येष्ठ माह की अमावस्या को किया जाता है, और 2025 में यह तिथि 26 मई, सोमवार को पड़ रही है। इस दिन 'सोमवती अमावस्या' का योग भी बन रहा है, जिससे इस व्रत का महत्व और बढ़ जाता है। यह व्रत पवित्र प्रेम, समर्पण और पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है। महिलाएं पूरे दिन निर्जल उपवास रखकर अपने पति के सुख, समृद्धि और सौभाग्य की कामना करती हैं।

इस दिन व्रती महिलाएं वट (बरगद) के पेड़ की पूजा करती हैं। वे पेड़ के चारों ओर कच्चा सूत लपेटकर परिक्रमा करती हैं और सावित्री-सत्यवान की कथा सुनती हैं। माना जाता है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश – तीनों देवताओं का वास होता है। पूजा में सिंदूर, हल्दी, अक्षत (चावल), फूल, फल और मिठाई का उपयोग किया जाता है। यह व्रत महिलाओं के वैवाहिक जीवन को मजबूत बनाता है और उन्हें अखंड सौभाग्य का वरदान देता है।

गंगा दशहरा – 5 जून 2025 (गुरुवार)

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन पवित्र गंगा नदी धरती पर आई थी। इस दिन गंगा नदी में स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है। 2025 में यह पर्व 5 जून को मनाया जाएगा। इस बार गंगा दशहरा उत्तर फाल्गुनी नक्षत्र और सिद्ध रवियोग के योग में पड़ रहा है, जो इसे और भी शुभ बनाता है। इसलिए इस दिन भगवान की आराधना और गंगा नदी में स्नान करने से विशेष लाभ होते हैं।

अगर गंगा नदी में स्नान करना संभव न हो तो घर पर गंगाजल मिलाकर स्नान करना चाहिए। साथ ही इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को सत्तू, गुड़, पानी, वस्त्र और पंखा दान करना अत्यंत पुण्यकारी माना जाता है। किसी भी सार्वजनिक स्थान पर प्याऊ लगाना या प्यासे लोगों को पानी पिलाना भी बड़ा पुण्य देता है। ऐसा दान जन्मों-जन्मों तक फलदायी होता है और जीवन में सुख, शांति और समृद्धि लाता है। इसलिए गंगा दशहरा पर दान-पुण्य करना बहुत ही शुभ कार्य माना जाता है।

निर्जला एकादशी – 6 जून 2025 (शुक्रवार)

ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। इस दिन व्रती पूरी तरह से निर्जल, यानी बिना जल और अन्न के पूरे दिन उपवास रखते हैं। इसे सबसे कठिन उपवास माना जाता है क्योंकि इसमें पानी भी नहीं पीना होता। इस व्रत को भीमा एकादशी भी कहा जाता है, क्योंकि महाभारत के भीमसेन ने यह उपवास बहुत श्रद्धा से किया था। वर्ष 2025 में यह व्रत 6 जून, शुक्रवार को रखा जाएगा। निर्जला एकादशी का महत्व बहुत बड़ा है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि यदि कोई व्यक्ति अन्य सभी 23 एकादशियों का व्रत नहीं रख पाता, तो इस एकादशी के व्रत से वह सबका समान पुण्य प्राप्त कर सकता है।

इस दिन व्रती भगवान विष्णु की विशेष पूजा करते हैं और पूरे मन से उनका ध्यान रखते हैं। निर्जला एकादशी आत्मा की शुद्धि और इच्छाओं की पूर्ति का मार्ग है। यह व्रत शरीर और मन दोनों को नियंत्रित करने की शिक्षा देता है। उपवास के दौरान व्यक्ति संयम और भक्ति से भगवान का स्मरण करता है, जिससे उसके जीवन में शांति और सौभाग्य आता है। इस प्रकार, निर्जला एकादशी को रखने से न केवल आध्यात्मिक लाभ होते हैं, बल्कि जीवन में सकारात्मक बदलाव भी आते हैं।

ज्येष्ठ माह में दान का महत्व

ज्येष्ठ महीने में बहुत तेज गर्मी होती है, इसलिए इस समय जल सेवा और ठंडी चीजों का दान करना बहुत शुभ माना जाता है। इस महीने में दान करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है, बल्कि यह हमारे मन को भी सुकून और शांति देता है। जैसे राहगीरों के लिए प्याऊ लगवाना, पंखा, छाता, और चप्पल दान करना बहुत फलदायी होता है। इससे गर्मी से परेशान लोगों को राहत मिलती है और उनका कल्याण होता है।

इसके अलावा, जल पात्रों की स्थापना करना और पक्षियों के लिए पानी की व्यवस्था करना भी बहुत जरूरी है। इन छोटे-छोटे कार्यों से न केवल हमें आत्मिक लाभ मिलता है, बल्कि हमारे ग्रह-नक्षत्र भी शुभ प्रभाव देते हैं। ज्येष्ठ माह में इस प्रकार के दान से जीवन में खुशहाली आती है और हम अपने चारों ओर सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं। इसलिए इस महीने दान-पुण्य करना बहुत जरूरी होता है।

ज्येष्ठ मास आत्मशुद्धि, तप और सेवा का महीना है। इस महीने किए गए व्रत, उपवास, स्नान और दान से व्यक्ति को अद्भुत आध्यात्मिक लाभ मिलता है। अपरा एकादशी, वट सावित्री व्रत, गंगा दशहरा और निर्जला एकादशी – ये चार पर्व न केवल हमारी धार्मिक परंपरा का हिस्सा हैं, बल्कि हमारे जीवन को भी ऊर्जावान और सकारात्मक बनाने का माध्यम हैं। इस ज्येष्ठ मास में हम सभी को अपनी क्षमता अनुसार सेवा, साधना और संयम का पालन करते हुए जीवन को धर्ममय बनाने का संकल्प लेना चाहिए।

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