Shahaji Raje Bhosle's: शाहजी राजे भोसले की पुण्य तिथि 23 जनवरी को मनाई जाती है। इस दिन उनकी मृत्यु हुई थी। वे छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता थे और मराठा साम्राज्य की नींव रखने में अहम भूमिका निभाई थी। 23 जनवरी को उनकी पुण्य तिथि पर उनकी योगदान को याद किया जाता है, और उनके साहस, नेतृत्व, और संघर्षों को सम्मानित किया जाता है।
महाराष्ट्र के इतिहास में शाहजीराजे भोसले का नाम एक अत्यंत सम्मानित और गौरवपूर्ण स्थान रखता है। वे 17वीं शताब्दी के एक महान सेनानायक और छत्रपति शिवाजी महाराज के पिता के रूप में प्रसिद्ध हुए। शाहजी का जीवन न केवल मराठा साम्राज्य की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, बल्कि उनके साहस, रणनीति, और नेतृत्व क्षमता ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमिट स्थान दिलाया। उनका संघर्ष और योगदान भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में अनमोल है, जिससे न केवल मराठों को बल मिला बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप की राजनीति और सैन्य रणनीतियों पर भी प्रभाव पड़ा।
प्रारंभिक जीवन और पारिवारिक पृष्ठभूमि
शाहजीराजे का जन्म 18 मार्च 1594 को हुआ था। वे मालोजीराजे भोसले के पुत्र थे। शाहजी का बचपन कठिनाइयों से भरा हुआ था, लेकिन उनके भीतर बचपन से ही एक सेनानी की भावना और साहस था। उनकी शिक्षा और प्रारंभिक सैन्य प्रशिक्षण ने उन्हें एक प्रभावशाली नेतृत्वकर्ता बनने के लिए तैयार किया। उनका जीवन शुरू से ही चुनौतीपूर्ण था, और उन्होंने अपने समय के प्रमुख साम्राज्यों जैसे बीजापुर, अहमदनगर और मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया।
शाहजीराजे का सैन्य करियर और उनके योगदान
शाहजी के सैन्य करियर की शुरुआत अहमदनगर सल्तनत में हुई थी, जहाँ उन्होंने सेना के विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया। इसके बाद, जब अहमदनगर सल्तनत की स्थिति कमजोर पड़ी, तो शाहजी ने बीजापुर सल्तनत के साथ गठबंधन किया। उनका सैन्य अनुभव और रणनीति उन्हें एक कुशल सेनानायक बना देती थीं।
शाहजी के लिए यह समय विभिन्न संघर्षों से भरा हुआ था, क्योंकि उन्हें लगातार विभिन्न साम्राज्यों के खिलाफ सैन्य अभियानों में भाग लेना पड़ता था। 1632 में जब मुगलों ने निजामशाही पर हमला किया, तो शाहजी ने मुगलों से संघर्ष किया और निजामशाही के बालक मुर्तजाशाह द्वितीय को सिंहासन पर स्थापित किया। इस समय उनकी सैन्य रणनीतियों ने उन्हें एक सक्षम रणनीतिकार के रूप में प्रतिष्ठित किया।
बीजापुर में संघर्ष और कर्नाटक अभियान
निजामशाही की समाप्ति के बाद, शाहजी ने बीजापुर राज्य का आश्रय लिया और वहां से कर्नाटक के विभिन्न हिस्सों में अभियान शुरू किया। 1648 में बीजापुर द्वारा भेजे गए शाहजी ने कर्नाटक में मुगलों के खिलाफ संघर्ष किया और कई महत्वपूर्ण सेनापतियों को हराया। 1651 में शाहजी ने गोलकुंडा के सेनानायक मीरजुमला को पराजित किया, जो उनके सैन्य कौशल और साहस का स्पष्ट उदाहरण था।
उनकी शक्ति और उनकी बढ़ती प्रतिष्ठा से भयभीत होकर बीजापुर ने उन्हें अपने नियंत्रण में रखने के प्रयास किए। इसके बावजूद, शाहजी ने अपनी शक्ति का उपयोग करते हुए बीजापुर से एक स्वतंत्र सैन्य नेता के रूप में कार्य किया और शिवाजी के पिता के रूप में मराठा साम्राज्य की नींव रखने में मदद की।
पिता-पुत्र की पुन भेंट और अंतिम समय
शिवाजी महाराज की बढ़ती शक्ति को देखकर शाहजी ने बीजापुर द्वारा शिवाजी के आक्रमणों को रोकने की कोशिश की, लेकिन वह नाकामयाब रहे। 1662 में, जब पिता-पुत्र की मुलाकात हुई, तो यह एक ऐतिहासिक क्षण था। इस मुलाकात से न केवल पिता-पुत्र के रिश्ते मजबूत हुए, बल्कि मराठा साम्राज्य की ताकत और भविष्य को लेकर एक नई दिशा भी मिली।
लेकिन दुर्भाग्यवश, 23 जनवरी 1664 को शाहजीराजे की मृत्यु हो गई। वे शिकार खेलते समय अपने घोड़े से गिर पड़े और उनका निधन हो गया। उनका निधन मराठा साम्राज्य के लिए एक बड़ा आघात था, लेकिन उनकी धरोहर और उनके योगदान ने मराठा साम्राज्य को शिखर तक पहुँचाया।
शाहजीराजे भोसले का जीवन और उनका योगदान मराठा साम्राज्य की सफलता के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण था। उनके द्वारा किए गए संघर्षों और उनके सैन्य रणनीतियों ने मराठों को न केवल युद्धों में जीत दिलाई, बल्कि एक नई शक्ति और धारा को जन्म दिया। उनके अद्भुत नेतृत्व और साहस को हमेशा याद किया जाएगा, और वे भारतीय इतिहास में एक प्रेरणास्त्रोत के रूप में जीवित रहेंगे।
शाहजीराजे की जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हम उनके योगदान को हमेशा सराहेंगे और उनके विचारों और कार्यों को आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाने का प्रयास करेंगे।