दिल्ली के उत्तर पूर्वी जिला प्रशासन ने बाल मजदूरी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कार्रवाई की है। बुधवार को किए गए छापे में 62 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त करवा लिया गया। जिलाधिकारी ने इस मामले में सख्त निर्देश दिए हैं कि बाल मजदूरी करवाने वाले व्यक्तियों को जेल भेजा जाएगा।
दिल्ली: उत्तर पूर्वी दिल्ली जिला प्रशासन ने बुधवार को बाल मजदूरी के खिलाफ एक महत्वपूर्ण कार्रवाई की। इस अभियान में 62 बच्चों को बाल मजदूरी से मुक्त किया गया, जिसे राजधानी दिल्ली में इस वर्ष की सबसे बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है। मुक्त किए गए बच्चों की उम्र 7 से 16 साल के बीच है, जिनमें 57 किशोर और 5 किशोरी शामिल हैं। सभी बच्चों का मेडिकल चेकअप करवा लिया गया है और उन्हें आश्रम में भेज दिया गया हैं।
उत्तर पूर्वी जिलाधिकारी वेदिता रेड्डी ने बताया कि प्रशासन को सूचना मिली थी कि घोंडा क्षेत्र में बच्चों से अवैध मजदूरी करवाई जा रही है। इसके आधार पर सीलमपुर एसडीएम नितेश रावत के नेतृत्व में जिला पुलिस उपायुक्त डॉ. जाय टिर्की की एक विशेष टीम गठित की गई थी। इस टीम में दिल्ली पुलिस, चाइल्ड वेलफेयर कमेटी, सहयोग केयर संस्था और अन्य संबंधित विभाग शामिल थे।
प्रशासन ने 62 बाल मजदूरों को करवाया मुक्त
बता दें बुधवार को सुबह 11:30 बजे उत्तर पूर्वी दिल्ली का जिला प्रशासन घोंडा क्षेत्र में छापेमारी के लिए पहुंचा। इस छापेमारी के दौरान, दस से अधिक छोटी-छोटी फैक्ट्रियों में काम कर रहे बच्चों को मुक्त किया गया। इन बच्चों से चूड़ी, बैग बनाने के साथ ही कढ़ाई और अन्य काम करवाए जा रहे थे। करीब डेढ़ घंटे की कार्रवाई में 62 बाल मजदूरों को मुक्त किया गया। प्रशासन ने दिल्ली पुलिस को निर्देश दिया है कि बच्चों से मजदूरी करवाने वालों के खिलाफ मामला दर्ज किया जाए। जिलाधिकारी वेदिता रेड्डी ने सख्त चेतावनी दी है कि जो भी लोग बाल मजदूरी में लिप्त पाए जाएंगे, उन्हें जेल भेजा जाएगा। इस कार्रवाई के माध्यम से उन्होंने यह स्पष्ट संदेश दिया है कि बाल श्रम के खिलाफ कोई भी सख्ती से नहीं बचेगा।
जिला प्रशासन बेहतर समन्वय से दिया कर्रवाई को अंजाम
उत्तर पूर्वी दिल्ली के जिला प्रशासन ने इस बार बाल मजदूरी के खिलाफ छापेमारी में बेहतर समन्वय और योजना बनाकर काम किया। अक्सर ऐसा देखा गया है कि बाल मजदूरी के खिलाफ छापेमारी की जानकारी लीक हो जाती है, जिससे कार्रवाई के समय मौके पर कुछ नहीं मिलता। लेकिन इस बार प्रशासन ने इस समस्या से निपटने के लिए पुलिस और अन्य विभागों के साथ बेहतर समन्वय स्थापित किया और कार्रवाई की सूचना लीक होने से रोकने में सफल रहा।
सहयोग केयर संस्था के निदेशक शेखर महाजन ने बताया कि छुड़ाए गए बच्चों को फैक्ट्रियों में 12 से 16 घंटे काम कराना जा रहा था और बदले में उन्हें केवल 100-200 रुपये दिहाड़ी दी जाती थी। इसके अलावा, बच्चों का शारीरिक और मानसिक शोषण भी हो रहा था। यह छापेमारी बाल मजदूरी के खिलाफ प्रशासन की गंभीरता और प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।