मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली एक पीठ, जिसमें जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, ने संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बनाए रखने के पक्ष में फैसला सुनाया।
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की सात सदस्यीय संवैधानिक पीठ ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट के फैसले को पलट दिया है। इस ऐतिहासिक निर्णय में 4-3 के बहुमत से यह फैसला सुनाया गया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली इस पीठ में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेडी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा ने संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत एएमयू के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बनाए रखने के पक्ष में अपने मत दिए। इस फैसले के अनुसार, एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में अपनी विशेष स्थिति और अधिकार प्राप्त रहेंगे।
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के पक्ष में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने आज अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे को बरकरार रखते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली सात सदस्यीय संविधान पीठ ने 4:3 के बहुमत से यह निर्णय दिया। सीजेआई चंद्रचूड़ ने बहुमत के लिए अपनी और जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से निर्णय लिखा, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने असहमति जताई।
यह फैसला संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत दिया गया, जो धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों को अपने शैक्षणिक संस्थान स्थापित करने और उन्हें संचालित करने का अधिकार देता है। फैसले के अनुसार, एएमयू को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा बना रहेगा, जिससे उसे अपने प्रशासनिक अधिकारों को संरक्षित रखने का अधिकार प्राप्त होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने एक फरवरी को इस मामले को रखा था सुरक्षित
सुप्रीम कोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) के अल्पसंख्यक संस्थान के दर्जे पर आज फैसला सुनाते हुए इसे बरकरार रखा। यह फैसला 4:3 के बहुमत से सुनाया गया, जिसमें मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ सहित चार जजों ने एएमयू के पक्ष में निर्णय दिया, जबकि जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस दीपांकर दत्ता, और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने असहमति जताई।
इस मामले का इतिहास पुराना है। वर्ष 2006 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एएमयू का अल्पसंख्यक दर्जा रद्द कर दिया था, जिसके बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट में याचिका के रूप में पहुंचा। 2019 में सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने इसे सात जजों की संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया था। इस पर सुनवाई पूरी होने के बाद 1 फरवरी को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था।
मामले में यह सवाल उठा था कि क्या सरकार द्वारा संचालित विश्वविद्यालय अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा पा सकता है। 1967 के अजीज बाशा बनाम भारत गणराज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एएमयू के अल्पसंख्यक दर्जे को खारिज कर दिया था। हालांकि, 1981 में सरकार ने एएमयू एक्ट में संशोधन कर इसे अल्पसंख्यक संस्थान के रूप में मान्यता फिर से दे दी।