उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को बड़ा राजनीतिक झटका लगा है। मायावती सरकार में मंत्री रहे वरिष्ठ नेता दद्दू प्रसाद ने पार्टी से नाता तोड़ते हुए समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया है।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक और बड़ा फेरबदल देखने को मिला है। मायावती के भरोसेमंद रहे और पूर्व कैबिनेट मंत्री दद्दू प्रसाद ने बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को अलविदा कहकर समाजवादी पार्टी (सपा) का दामन थाम लिया है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव की मौजूदगी में लखनऊ स्थित पार्टी मुख्यालय में उन्होंने पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
मानिकपुर से मिल सकता है बड़ा मौका
दद्दू प्रसाद चित्रकूट जिले की मानिकपुर विधानसभा सीट से पहले विधायक रह चुके हैं और अब एक बार फिर इसी सीट से सपा के संभावित उम्मीदवार माने जा रहे हैं। सपा की ओर से उन्हें मजबूत दलित चेहरा मानते हुए चुनावी मैदान में उतारने की तैयारी है। एक समय बसपा की ‘कोर टीम’ का हिस्सा रहे दद्दू प्रसाद जैसे नेताओं का पार्टी छोड़ना इस बात का संकेत है कि बसपा के पारंपरिक दलित वोटबैंक में बड़ी सेंध लग रही है। इंद्रजीत सरोज, बाबू सिंह कुशवाहा के बाद अब दद्दू प्रसाद का सपा में आना बसपा के लिए और बड़ी राजनीतिक क्षति है।
अखिलेश का नया मिशन: दलित-ओबीसी गठजोड़
अखिलेश यादव ने इस मौके पर स्पष्ट संकेत दिया कि सपा अब पीडीए (पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक) समीकरण पर फोकस कर रही है। प्रेस वार्ता में उन्होंने कहा, दद्दू प्रसाद जी का और उनके साथियों का सपा परिवार में स्वागत है। हम सब मिलकर भाजपा और उसके नफरत के एजेंडे को हराएंगे। ये पीडीए की लड़ाई है और अब यह तेज़ होगी।
सपा में शामिल होने वालों में दद्दू प्रसाद के अलावा बुलंदशहर से देवरंजन नागर, नगर पालिका अध्यक्ष सलाउद्दीन, और जगन्नाथ कुशवाहा भी शामिल हुए। यह सपा की रणनीति का हिस्सा है कि क्षेत्रीय दलों के प्रभावशाली नेताओं को साथ लाकर अपने जनाधार को मजबूत किया जाए।
मंदिर धोए जाते हैं, जब हम जाते हैं - अखिलेश का तंज
प्रेस कॉन्फ्रेंस में अखिलेश यादव ने बीजेपी पर कटाक्ष करते हुए कहा, आज हालत ये हो गई है कि अगर दद्दू प्रसाद किसी मंदिर में चले जाएं तो उसे धोया जाता है। मैं भी जब सीएम आवास छोड़ा था, उसे भी धुलवाया गया था। यह नफरत की राजनीति है जिसे हम नहीं मानते। उन्होंने राज्यसभा सांसद रामजी लाल सुमन पर हुए हमले की भी निंदा की और कहा कि अगर उन्हें कुछ हुआ तो इसकी जिम्मेदारी सीधे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की होगी।
दद्दू प्रसाद का सपा में शामिल होना सिर्फ एक दल-बदल नहीं, बल्कि 2027 विधानसभा चुनावों की तैयारियों की दिशा तय करता है। बसपा से दलित नेताओं का इस तरह अलग होना न सिर्फ पार्टी के लिए संकट है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सपा अब भाजपा को चुनौती देने के लिए जातीय और सामाजिक समीकरणों को नए सिरे से गढ़ रही है।