Delhi Air Pollution Update: दिल्ली की हवाओं में फेल रहा जहर, पराली का धुआं बना सांसो पर खतरा

Delhi Air Pollution Update: दिल्ली की हवाओं में फेल रहा जहर, पराली का धुआं बना सांसो पर खतरा
Last Updated: 6 घंटा पहले

राजधानी में वायु प्रदूषण की समस्या को हल करने के लिए पराली जलाने की घटनाओं में कमी आई है, लेकिन कुछ जिले अभी भी नियंत्रण से बाहर हैं। 2020 से 2023 तक के आंकड़ों के अनुसार, पराली जलाने की घटनाओं में 50% से अधिक की गिरावट देखी गई है। हालांकि, पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिलों में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं।

New Delhi: निश्चित रूप से, पराली का धुआं एक बार फिर दिल्ली निवासियों के लिए समस्या बन सकता है, लेकिन पिछले चार वर्षों में पराली जलाने की घटनाएं काफी कम हुई हैं। यह सच है कि हरियाणा और पंजाब के कुछ जिले इस मामले में अभी भी नियंत्रण से बाहर हैं। वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) के अनुसार, वर्ष 2020 में पराली जलाने की कुल 87,632 घटनाएं दर्ज की गई थीं।

वहीं, वर्ष 2023 में ये संख्या घटकर 39,186 हो गई। इसका मतलब है कि पिछले चार वर्षों में 50 प्रतिशत से अधिक की कमी आई है। 2022 की तुलना में 2023 में पंजाब में पराली जलाने की घटनाओं में 27 प्रतिशत और हरियाणा में 37 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है।

वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि

सीएक्यूएम के अनुसार, वर्ष 2022 की तुलना में पंजाब के तीन और हरियाणा के पांच जिलों में वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाएं बढ़ी हैं। इनमें पंजाब के अमृतसर, सास नगर और पठानकोट जिले शामिल हैं, जबकि हरियाणा के रोहतक, भिवानी, फरीदाबाद, झज्जर और पलवल जिलों का नाम भी इस सूची में है। इन आठ जिलों में पराली जलाने की घटनाओं की रोकथाम इस बार एक बड़ी चुनौती हो सकती है। सीएक्यूएम के सूत्रों के मुताबिक, इन आठ जिलों में इस बार विशेष निगरानी रखी जा रही है। यहां पर लोगों को जागरूक करने, पराली प्रबंधन के वैकल्पिक तरीकों के बारे में जानकारी देने के साथ-साथ ठोस कदम उठाने की तैयारी भी की जा रही है।

15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच जलती है सबसे अधिक पराली

पंजाब और हरियाणा के खेतों में धान की कटाई के बाद कृषि अवशेषों को जलाना शुरू कर दिया जाता है, लेकिन 15 सितंबर के बाद यह प्रक्रिया तेजी पकड़ लेती है। वास्तव में, 15 अक्टूबर से 25 नवंबर के बीच पराली जलाने की घटनाएं अपने चरम पर होती हैं।

इस समय के दौरान दीपावली का पर्व भी मनाया जाता है और हवा की गति अत्यंत कम होती है। इस दौरान पराली और दीपावली का धुआं मिलकर प्रदूषण के स्तर को अत्यधिक बढ़ा देते हैं, जिससे स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

पराली जलाने के आंकड़े

वर्ष 2020 में पराली जलाने की घटनाओं की संख्या 87,632 थी। इसके बाद, वर्ष 2021 में यह घटकर 78,550 हो गई। वर्ष 2022 में और कमी आई और आंकड़ा 53,792 पर पहुँच गया। अंततः, वर्ष 2023 में पराली जलाने की घटनाएँ 39,186 रही। इन आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि समय के साथ पराली जलाने की घटनाओं में लगातार कमी आई है।

Leave a comment