झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रांची में आईएएस अधिकारी विनय चौबे के ठिकाने समेत कुल 17 स्थानों पर छापेमारी की है। इस कार्रवाई के तहत, ईडी ने मंगलवार सुबह झारखंड के वरिष्ठ आईएएस विनय चौबे, उत्पाद विभाग के संयुक्त सचिव गजेंद्र सिंह और अन्य संबंधित अधिकारियों के चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) के ठिकानों पर भी छापे मारे हैं।
रांची: झारखंड विधानसभा चुनाव से पहले प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रांची में शराब घोटाले से जुड़े मामले में ताबड़तोड़ छापेमारी की है। इस कार्रवाई के तहत ईडी ने आईएएस अधिकारी विनय चौबे के ठिकाने समेत कुल 15 स्थानों पर छापे मारे हैं। छापेमारी में वरिष्ठ आईएएस विनय चौबे के साथ-साथ उत्पाद विभाग के संयुक्त सचिव गजेंद्र सिंह और अन्य संबंधित अधिकारियों के चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) के ठिकानों पर भी जांच की गई है। यह छापेमारी संभावित भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितताओं की जांच के संदर्भ में की गई हैं।
इनके खिलाफ दर्ज है प्राथमिकी
छत्तीसगढ़ पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) ने शराब घोटाले के मामले में उत्पाद विभाग के तत्कालीन सचिव विनय कुमार चौबे और संयुक्त सचिव गजेंद्र सिंह के खिलाफ पहले ही FIR दर्ज की थी। यह प्राथमिकी रांची के विकास कुमार द्वारा दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि शराब घोटाले की पूरी साजिश रायपुर में रची गई थी और इसमें आबकारी नीति में फेरबदल कराया गया था।
रायपुर में दर्ज प्राथमिकी में कई अन्य अधिकारियों का भी उल्लेख किया गया है, जिनमें वाणिज्य एवं उद्योग विभाग के तत्कालीन संयुक्त सचिव अनिल टुटेजा, छत्तीसगढ़ राज्य मार्केटिंग कॉरपोरेशन लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक अरुणपति त्रिपाठी, रायपुर के बैरन बाजार निवासी अनवर ढेबर, भिलाई निवासी अरविंद सिंह और अन्य शामिल हैं।
इसके अलावा, मेसर्स सुमित फैसेलिटीज के संचालक, प्रिज्म होलोग्राफी और सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड नोएडा के विधु गुप्ता, झारखंड उत्पाद एवं मध्य निषेध विभाग के तत्कालीन सचिव विनय कुमार चौबे, झारखंड राज्य बेवरेजेस कॉरपोरेशन लिमिटेड के पूर्व प्रबंध निदेशक और अन्य अधिकारी भी इस मामले में शामिल हैं। ये सभी एजेंसियां शराब की सप्लाई और मैनपॉवर सप्लाई से जुड़ी हुई थीं।
दायर याचिका में लगाए गए गंभीर आरोप
रांची के अरगोड़ा निवासी विकास सिंह ने रायपुर के आर्थिक अपराध शाखा (EOW) में शिकायत दर्ज कराई थी, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि अनिल टुटेजा, अनवर ढेबर, अरुणपति त्रिपाठी और उनके सिंडिकेट ने मिलकर झारखंड की आबकारी नीति में धोखाधड़ी की। उनके अनुसार, इन लोगों ने झारखंड के अधिकारियों के सहयोग से साजिशपूर्वक वहां देसी और विदेशी शराब का ठेका अपने सिंडिकेट के लोगों को दिलवाया, जिससे झारखंड सरकार को करोड़ों की क्षति पहुंचाई गई।
विकास सिंह ने बताया कि इस सिंडिकेट ने झारखंड में बेहिसाब नकली होलोग्राम वाली देसी शराब की बिक्री की और विदेशी शराब की सप्लाई का काम कर करोड़ों रुपये का अवैध कमीशन प्राप्त किया। शिकायत में यह भी कहा गया है कि अनिल टुटेजा और उनके सिंडिकेट ने अवैध शराब के कारोबार के इरादे से जनवरी 2022 में अनवर ढेबर और अरुणपति त्रिपाठी के साथ मिलकर झारखंड के तत्कालीन आबकारी सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों से मिलीभगत की।
इन सभी ने मिलकर ठेकेदारी प्रथा के बजाय छत्तीसगढ़ राज्य विपणन निगम लिमिटेड के माध्यम से झारखंड में देसी-विदेशी शराब की बिक्री की योजना बनाई। इस संदर्भ में रायपुर में बैठक भी हुई, जिसके परिणामस्वरूप झारखंड में 31 मार्च 2022 को नई उत्पाद नीति लागू हुई। अरुणपति त्रिपाठी ने इसके लिए झारखंड सरकार से 1.25 करोड़ रुपये भी प्राप्त किए। नई उत्पादन नीति के तहत, लगभग दो वर्षों तक झारखंड में छत्तीसगढ़ की एजेंसियों ने कार्य किया, जिसमें नकली होलोग्राम और अवैध शराब की सप्लाई कर राज्य सरकार को करोड़ों के राजस्व की क्षति पहुंचाई गई।
क्या है नकली होलोग्राम?
झारखंड और छत्तीसगढ़ में शराब घोटाले को लेकर गंभीर आरोप सामने आए हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, आरोप है कि छत्तीसगढ़ में नकली होलोग्राम लगाकर पूरे राज्य में शराब की सप्लाई की गई थी, और उसी तर्ज पर झारखंड में भी नकली होलोग्राम के माध्यम से शराब की बिक्री की गई है। यह भी कहा गया है कि नकली होलोग्राम वाली शराब की बिक्री का कोई हिसाब नहीं रखा गया हैं।
इस मामले में प्रिज्म होलोग्राम एंड फिल्म सिक्योरिटी लिमिटेड को शराब की बोतलों पर होलोग्राम छापने का काम सौंपा गया था। इसके अलावा, मेसर्स सुमित फैसिलिटीज लिमिटेड को मैनपॉवर सप्लाई करने की जिम्मेदारी दी गई थी। इन तीनों कंपनियों पर छत्तीसगढ़ शराब घोटाले में आरोप लगाए गए हैं, और झारखंड में भी इनका कनेक्शन जुड़ा हैं।
झारखंड में इन कंपनियों पर कार्रवाई की गई है। मेसर्स प्रिज्म को होलोग्राम छापने से रोक दिया गया और उसे ब्लैकलिस्टेड कर दिया गया। वहीं, मेसर्स सुमित फैसिलिटीज की बैंक गारंटी को जब्त किया गया, क्योंकि वह राजस्व की पूरी राशि नहीं जमा कर पाई थी।