JK Election 2024: जम्मू कश्मीर में NC को मिला बहुमत, नहीं चला BJP का अस्त्र-सस्त्र; जानें चुनाव परिणाम के कुछ फैक्टर

JK Election 2024: जम्मू कश्मीर में NC को मिला बहुमत, नहीं चला BJP का अस्त्र-सस्त्र; जानें चुनाव परिणाम के कुछ फैक्टर
Last Updated: 08 अक्टूबर 2024

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) ने स्पष्ट बढ़त हासिल की है, जबकि भाजपा दूसरे नंबर पर रही। कश्मीर घाटी में अलगाववादी दलों और उनके उम्मीदवारों को भारी हार का सामना करना पड़ा। इंजीनियर राशिद के नेतृत्व वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी और जमात--इस्लामी के उम्मीदवार चुनावों में कोई प्रभावशाली प्रदर्शन नहीं कर पाए।

श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजों में नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) और कांग्रेस गठबंधन को बहुमत मिलता दिख रहा है, जिनके पास 48 सीटों पर बढ़त है। भाजपा 29 सीटों पर आगे चल रही है, जबकि निर्दलीय और अन्य पार्टियां 11 सीटों पर बढ़त बनाए हुए हैं। जम्मू क्षेत्र में भाजपा का प्रदर्शन परंपरागत रूप से मजबूत रहा है, जहां उसे पहले की तरह इस बार भी अच्छी बढ़त मिलती दिख रही है। भाजपा ने 2007 और 2014 में सीटों की संख्या बढ़ने के बावजूद अपनी पकड़ बरकरार रखी थी। हालांकि, कश्मीर घाटी में भाजपा को पहले भी कोई खास फायदा नहीं हुआ था और इस बार भी स्थिति वैसी ही है, जहां एनसी और कांग्रेस का दबदबा हैं।

'अनुच्छेद 370' भाजपा की बड़ी उपलब्धि

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि भाजपा ने भले ही अनुच्छेद 370 को हटाकर राष्ट्रवाद के एजेंडे पर बड़ा कदम उठाया हो, लेकिन राज्य में उसका प्रभाव सीमित ही रहा है, खासकर कश्मीर घाटी में। अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा ने राज्य को राष्ट्रीय मुख्यधारा में लाने और विकास की दिशा में कदम बढ़ाने का प्रयास किया, लेकिन चुनावी राजनीति में इसका फायदा उसे नहीं मिल पाया हैं।

नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी) ने कश्मीर में अनुच्छेद 370 और अन्य भावनात्मक मुद्दों को भुनाया और इसका चुनावी लाभ उसे मिल रहा है। हालांकि, भाजपा ने जम्मू क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाए रखी है, जहां उसे अच्छी बढ़त मिली है। कश्मीर घाटी में चुनाव शांति से कराना और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करना भाजपा के लिए एक बड़ी उपलब्धि है, जो यह दर्शाता है कि राज्य में धीरे-धीरे स्थिरता रही हैं।

नहीं चला रशीद का जादू

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में इंजीनियर रशीद की अगुआई वाली अवामी इत्तेहाद पार्टी (एआईपी) और जमात--इस्लामी जैसी अलगाववादी ताकतों को करारी हार का सामना करना पड़ा है। लोकसभा चुनाव में इंजीनियर रशीद की जीत तात्कालिक परिस्थितियों और माहौल के कारण हुई थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में वे कोई बड़ा फैक्टर साबित नहीं हो सके।

एआईपी ने 44 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा था, जिनमें से प्रमुख हस्तियां, जैसे उनके भाई और प्रवक्ता फिरदौस बाबा, असफल रहीं। इन उम्मीदवारों की जमानत तक जब्त हो गई, जिससे यह साफ हो गया कि अलगाववादी राजनीति को जनता ने खारिज कर दिया है। सोपोर विधानसभा सीट पर अफजल गुरु के भाई एजाज अहमद गुरु को भी करारी हार का सामना करना पड़ा, जो दिखाता है कि कश्मीर में अब अलगाववादी एजेंडा राजनीति में प्रभावी नहीं रह गया हैं।

पीडीपी ने तोडा दम

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव में पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा। प्रतिबंधित जमात--इस्लामी समर्थक उम्मीदवारों के निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरने से पीडीपी को भारी नुकसान उठाना पड़ा। पार्टी केवल तीन सीटों पर ही जीत दर्ज कर पाई, जिनमें कुपवाड़ा से फायज, तरल से रफीक अहमद, और पुलवामा से वहीद-उर-रहमान शामिल हैं। पीडीपी की इस कमजोरी का सीधा फायदा नेशनल कॉन्फ्रेंस को हुआ, जिसने मजबूत स्थिति में रहते हुए चुनावी बढ़त हासिल की।

महबूबा मुफ्ती की बेटी इल्तिजा महबूबा मुफ्ती, जो बिजबेहरा से चुनाव लड़ रही थीं, ने अपनी हार स्वीकार की और कहा, "मैं लोगों के फैसले को स्वीकार करती हूं। बिजबेहरा में सभी से मुझे जो प्यार और स्नेह मिला है, वह हमेशा मेरे साथ रहेगा।" पीडीपी के कमजोर होने से क्षेत्रीय राजनीति में नेशनल कॉन्फ्रेंस को स्पष्ट बढ़त मिली, जिससे नई सरकार का गठन उनके नेतृत्व में संभव होता दिख रहा हैं।

 

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