कौन है उमर अब्दुल्ला? जिन्हें केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर का बनाया पहला CM, अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के हाथों में है कमान

कौन है उमर अब्दुल्ला? जिन्हें केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर का बनाया पहला CM, अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी के हाथों में है कमान
Last Updated: 1 दिन पहले

उमर अब्दुल्ला आज केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर के पहले मुख्यमंत्री बने हैं। अनुच्छेद 370 को हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर में हुए पहले विधानसभा चुनावों में आईएनडीआईए को बहुमत प्राप्त हुआ। इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस ने सबसे अधिक 42 सीटें हासिल कीं। आजादी के बाद से अब्दुल्ला परिवार की तीसरी पीढ़ी ने राजनीतिक कमान संभाल ली है। अधिक जानकारी के लिए यहां पढ़ें..

Jammu-Kashmir: नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने बुधवार, 16 अक्टूबर को जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। इस तरह, उमर अब्दुल्ला केंद्र शासित प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री बन गए हैं। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 के हटने के बाद आयोजित विधानसभा चुनावों में आईएनडीआईए गठबंधन को बहुमत प्राप्त हुआ। इस चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस को सबसे अधिक 42 सीटें मिलीं, जबकि कांग्रेस को 6 और सीपीआई (एम) को एक सीट हासिल हुई। सरकार गठन के लिए 48 सीटों की आवश्यकता होती है, जिसमें पांच नामांकित विधायकों की सीटें भी शामिल हैं।

कौन हैं उमर अब्दुला?

उमर अब्दुल्ला एक प्रमुख भारतीय राजनीतिज्ञ हैं, जो जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेंस (NC) पार्टी के नेता हैं। वह कश्मीर के राजनीतिक रूप से प्रभावशाली अब्दुल्ला परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उमर अब्दुल्ला डॉ. फारूक अब्दुल्ला के बेटे और जम्मू-कश्मीर के लोकप्रिय नेता शेख अब्दुल्ला के पोते हैं।

उमर का जन्म 10 मार्च 1970 को इंग्लैंड में हुआ था। उन्होंने अपनी शुरुआती शिक्षा भारत में एक बोर्डिंग स्कूल से प्राप्त की और फिर दिल्ली विश्वविद्यालय के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स (SRCC) से स्नातक किया। इसके बाद उन्होंने लंदन से आगे की पढ़ाई पूरी की।

उमर अब्दुल्ला ने 1994 में पायल नाथ से शादी की, जो एक एयर होस्टेस थीं। उनके दो बेटे, जहीर अब्दुल्ला और जमीर अब्दुल्ला हैं। 2011 में उन्होंने तलाक के लिए अर्जी दी थी और सार्वजनिक रूप से स्वीकार किया था कि वे और पायल अलग हो रहे हैं, लेकिन तलाक की स्थिति की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।

उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर

उमर अब्दुल्ला का राजनीतिक करियर 1996 में शुरू हुआ, जब उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने उन्हें सही समय देखकर राजनीति में लाया। उस साल जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव हुए थे, जिसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) को प्रचंड बहुमत मिला। इस जीत के बाद फारूक अब्दुल्ला ने उमर को राजनीति में शामिल कर लिया।

उमर अब्दुल्ला ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने शुरुआत में राजनीति में आने के बारे में ज्यादा नहीं सोचा था, क्योंकि वे अपनी पढ़ाई और जीवन की अन्य गतिविधियों के कारण लंबे समय तक जम्मू-कश्मीर से बाहर थे। लेकिन 1996 में पार्टी की जीत ने उन्हें राजनीति में गंभीरता से कदम रखने के लिए प्रेरित किया।

उन्होंने यह भी साझा किया कि उनके दादा, शेख अब्दुल्ला, के साथ वे ईदगाह जरूर जाते थे, लेकिन कभी किसी राजनीतिक रैली में हिस्सा नहीं लिया था। बचपन के दिनों में उनके परिवार ने उनके सामने राजनीति की बातें नहीं की थीं, जिससे उमर की राजनीतिक पृष्ठभूमि थोड़ी अलग रही, और उन्होंने अपने निर्णय खुद से लिए।

भारत के सबसे युवा विदेश मंत्री बेन थे उमर अब्दुल्ला

उमर अब्दुल्ला ने 1998 के लोकसभा चुनाव में नेशनल कॉन्फ्रेंस से टिकट प्राप्त करके श्रीनगर से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद, वे केंद्र में मंत्री बने। 1999 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने महबूबा मुफ्ती को हराकर फिर से संसद में प्रवेश किया और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री के पद पर नियुक्त हुए।

साल 2001 में, उमर अब्दुल्ला ने भारत के सबसे युवा विदेश मंत्री बनने का गौरव प्राप्त किया। हालांकि, उनके कार्यकाल की अवधि लंबी नहीं रही, क्योंकि उन्होंने केवल 17 महीने बाद, दिसंबर 2002 में अपने पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उनके पिता फारूक अब्दुल्ला ने उन्हें पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया। उस समय हुए विधानसभा चुनाव में उमर ने गांदरबल सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।

उमर के राजनीति में कदम रखने के बारे में उनके पिता ने कहा था कि वह इस विचार के खिलाफ थे। उन्होंने उमर को सलाह दी थी कि राजनीति एक ऐसी नदी है जिसमें एक बार कूदने के बाद व्यक्ति केवल धारा के साथ बहता है या उससे लड़ता है। हालांकि, उमर ने अपने पिता की सलाह को नकारते हुए राजनीति में आने का निर्णय लिया। यह उनके आत्मविश्वास और राजनीतिक भविष्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।

उमर अब्दुल्ला का परिवार

अब्दुल्ला परिवार की जड़ें श्रीनगर के सौरा इलाके में स्थित हैं, जहां उनके पूर्वज सप्रू गोत्र के कश्मीरी ब्राह्मण थे। यह जानकारी खुद उमर अब्दुल्ला के दादा, शेख अब्दुल्ला, ने कई बार सार्वजनिक रूप से साझा की। उनकी आत्मकथा आतिशे चीनार में उन्होंने इस बात का उल्लेख किया है कि उनके पूर्वज हिंदू ब्राह्मण थे।

शेख अब्दुल्ला ने लिखा है कि साल 1766 में उनके परदादा बालमुकुंद कौल ने सूफी मीर अब्दुल रशीद बैहाकी से प्रभावित होकर इस्लाम धर्म अपनाया। इस परिवर्तन ने अब्दुल्ला परिवार के धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को एक नया मोड़ दिया, जिससे यह परिवार कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर सका।

पाकिस्तान के खिलाफ था शेख अब्दुल्ला

शेख अब्दुल्ला भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण नेता थे, जिन्होंने पाकिस्तान के गठन के खिलाफ अपनी स्पष्ट राय रखी। कश्मीरी पत्रकार बशारत पीर ने अपनी किताब कर्फ्यूड नाइट में उल्लेख किया है कि शेख अब्दुल्ला उस समय के कट्टर मुस्लिम नेताओं के निशाने पर गए थे, क्योंकि उन्होंने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करने का समर्थन किया।

- 1947 में, जब भारत का विभाजन हो रहा था, तब जम्मू-कश्मीर के राजा हरि सिंह और शेख अब्दुल्ला ने विलय पर निर्णय लेने के लिए दिल्ली से समय मांगा। शेख अब्दुल्ला ने जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय करने का समर्थन किया, लेकिन उन्होंने इस दौरान धर्मनिरपेक्ष भारत के भीतर राज्य के लिए विशेष दर्जा देने की मांग भी की।

- उनकी ये नीतियां उन्हें पंडित जवाहरलाल नेहरू का करीबी मित्र बनाती थीं, और उन्होंने जिन्ना की राजनीति का खुलकर विरोध किया। उनका मानना था कि कश्मीर पर पंजाबी मुसलमानों का प्रभुत्व नहीं होना चाहिए।

शेख अब्दुल्ला का प्रधानमंत्री पद से हटना

नेहरू ने शेख को कश्मीर का प्रधानमंत्री (जो उस समय का शीर्ष पद था) नियुक्त किया, और उनकी सलाह पर कई फैसले किए। लेकिन 31 जुलाई 1953 को नेहरू ने शेख को प्रधानमंत्री पद से हटाने का फैसला किया। यह निर्णय उनके भारत सरकार विरोधी नीतियों के कारण लिया गया। उनके हटाने के बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया, और वे 11 वर्षों तक जेल में रहे।

1964 में जब वह जेल से रिहा हुए, तो उन्होंने आज़ाद कश्मीर की मांग छोड़ दी और पुनः राजनीतिक सक्रियता में लौट आए। उनका यह सफर कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने भारतीय राजनीति के साथ-साथ कश्मीर के भविष्य को भी प्रभावित किया।

फारूक अब्दुल्ला यानि उमर के पिता की ताजपोशी

फारूक अब्दुल्ला की ताजपोशी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक घटना थी, जो केवल कश्मीर की राजनीति में, बल्कि भारतीय राजनीति में भी एक नया अध्याय शुरू करती है। शेख अब्दुल्ला के निधन के बाद, फारूक को राजनीतिक विरासत संभालने का मौका मिला, लेकिन यह रास्ता आसान नहीं था।

- फारूक अब्दुल्ला का जन्म कश्मीर के एक प्रमुख राजनीतिक परिवार में हुआ था। उन्होंने 1965 में जयपुर के एमएसएस मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की और बाद में लंदन चले गए। वहाँ उन्होंने ब्रिटिश नागरिकता प्राप्त की और एक ब्रिटिश महिला, मौली अब्दुल्ला, से शादी की।

- राजनीति में प्रवेश: 1975 में, फारूक कश्मीर लौट आए और 1980 के चुनाव में अपने पिता, शेख अब्दुल्ला के नेतृत्व में चुनावी राजनीति में कदम रखा। उन्होंने श्रीनगर से चुनाव जीतकर अपनी राजनीतिक यात्रा की शुरुआत की। शेख अब्दुल्ला ने 1981 में फारूक को पार्टी की कमान सौंपने के निर्णय को एक महत्त्वपूर्ण कदम माना।

- फारूक की ताजपोशी की रैली खासतौर पर यादगार थी। शेख अब्दुल्ला ने पार्टी नेताओं के साथ मिलकर एक भव्य रैली का आयोजन किया, जिसमें फूलों की वर्षा की गई। इस मौके पर उन्होंने फारूक को पार्टी का अध्यक्ष घोषित किया, और उनके शर्ट पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का बैज भी लगाया गया।

- राजनीतिक संघर्ष

शेख अब्दुल्ला का सितंबर 1982 में निधन हो गया, जिसके बाद फारूक और उनके बहनोई, गुलाम मोहम्मद शाह के बीच राजनीतिक संघर्ष शुरू हुआ। गुलाम मोहम्मद शाह ने फारूक की सरकार को बर्खास्त कर दिया और कांग्रेस एवं अन्य पार्टियों के समर्थन से खुद मुख्यमंत्री बन गए। यह संघर्ष कश्मीर की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने क्षेत्र की राजनीतिक स्थिति को प्रभावित किया।

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