केंद्र सरकार सुप्रीम कोर्ट के उस हालिया फैसले पर पुनर्विचार की तैयारी में है, जिसमें राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने के लिए राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए समय सीमा तय की गई थी।
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा राज्यपाल और राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की समयसीमा निर्धारित करने वाले हालिया फैसले पर पुनर्विचार की योजना बनाई है। सरकार इस फैसले को चुनौती देने के लिए समीक्षा याचिका दायर करने की सोच रही है, खासकर उस हिस्से को लेकर जिसमें राज्यपाल द्वारा भेजे गए विधेयकों पर निर्णय नहीं लेने पर राज्य सरकारों को सीधे न्यायालय का रुख करने का अधिकार दिया गया है।
समीक्षा याचिका पर विचार
केंद्र सरकार के अधिकारी इस मामले में समीक्षा याचिका दायर करने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि, इस पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। अधिकारियों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कुछ ऐसे पहलू हैं, जो कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र को प्रभावित कर सकते हैं और इससे संविधानिक संरचना पर प्रभाव पड़ सकता है। समीक्षा याचिका दायर करने के बाद सुप्रीम कोर्ट से इस पर पुनर्विचार की उम्मीद जताई जा रही है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या था?
पिछले सप्ताह, सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश जारी करते हुए राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का निर्देश दिया था। इसके साथ ही, यदि राष्ट्रपति उस पर निर्णय नहीं लेते हैं, तो राज्य सरकार सीधे उच्च न्यायालय में अपील कर सकती है। इसके बाद, तमिलनाडु सरकार ने इस आदेश का पालन करते हुए 10 अधिनियमों को राजपत्र में अधिसूचित किया, जिन्हें राज्यपाल ने राष्ट्रपति के विचार के लिए रोका था।
केंद्र सरकार की चिंताएं
केंद्र सरकार का कहना है कि इस फैसले के अनुसार, यदि राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं और राष्ट्रपति उस पर निर्णय नहीं लेते, तो राज्य सरकारों को सीधे न्यायालय का रुख करने का अधिकार मिल जाएगा। सरकार को लगता है कि यह व्यवस्था संविधानिक दृष्टिकोण से सही नहीं है और इससे सरकारी प्रक्रियाओं में भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
क्या है आगामी प्रक्रिया?
केंद्र सरकार के अधिकारी इस मुद्दे पर गहन चर्चा कर रहे हैं और समीक्षा याचिका दायर करने के बारे में विचार कर रहे हैं। इसके तहत सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कुछ पहलुओं की फिर से समीक्षा करने की मांग कर सकती है। इस प्रक्रिया में सरकार के अधिकारियों को इस पर गहरी चिंतन-मनन की आवश्यकता महसूस हो रही है, ताकि न्यायिक प्रक्रिया को संविधान के अनुरूप बनाए रखा जा सके।