लेटरल एंट्री के मुद्दे पर सरकार और विपक्ष के बीच तीखी बहस छिड़ गई है। कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने यह आरोप लगाया है कि सरकार इन फैसलों के माध्यम से आरक्षण को खत्म करने की कोशिश कर रही है। दूसरी ओर, भाजपा का दावा है कि लेटरल एंट्री का प्रस्ताव सबसे पहले कांग्रेस के शासन काल में प्रस्तुत किया गया था। इसके साथ ही केंद्रीय मंत्री ने उन व्यक्तियों के नाम भी बताए हैं, जिन्होंने यूपीए सरकार के दौरान लेटरल एंट्री का लाभ उठाया था।
New Delhi: लेटरल एंट्री के माध्यम से प्रशासनिक पदों पर विषय विशेषज्ञों की भर्ती को लेकर व्यापक चर्चा और बहस चल रही है। विपक्षी दलों के साथ-साथ NDA के कई सहयोगी दलों ने भी सरकार के इस निर्णय की आलोचना की है। कांग्रेस सांसद राहुल गांधी का कहना है कि सरकार का यह कदम आरक्षण के खिलाफ है। दूसरी ओर, भाजपा का दावा है कि यूपीए सरकार के दौरान ही लेटरल एंट्री का प्रस्ताव पेश किया गया था।
अश्विनी वैष्णव ने दिए आरोपों के जवाब
अश्विनी वैष्णव ने राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देते हुए कहा, "मनमोहन सिंह की 1976 में वित्त सचिव के रूप में नियुक्ति किस प्रक्रिया के अंतर्गत हुई थी ? उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उन्हें एक आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में सीधे वित्त सचिव बनाया था, जो बाद में वित्त मंत्री और फिर प्रधानमंत्री बने।"
कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने यह भी कहा कि मनमोहन सिंह के साथ-साथ मोंटेक सिंह अहलूवालिया को भी इसी प्रकार योजना आयोग का उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया।
कांग्रेस शासन में किन-किन को किया शामिल
अश्विनी वैष्णव ने आगे बताया कि कांग्रेस सरकार के दौरान सैम पित्रोदा, वी कृष्णमूर्ति, अर्थशास्त्री बिमल जालान, कौशिक विरमानी, और रघुराम राजन जैसे लोगों को सरकार में शामिल किया गया था। उन्होंने बताया कि 2009 से भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण का अध्यक्ष इन्फोसिस के सह-संस्थापक नंदन नीलेकणि को नियुक्त किया गया था।
प्रशासन में होगा सुधार
केंद्रीय मंत्री ने कहा, "एनडीए (NDA) सरकार ने लेटरल एंट्री को लागू करने के लिए एक स्पष्ट प्रक्रिया तैयार की है। यूपीएससी (UPSC) के माध्यम से पारदर्शी और निष्पक्ष तरीके से भर्तियां की जाएंगी। इस सुधार के जरिए प्रशासन में सुधार होगा।"