NSCN-IM: उग्रवादी संगठन NSCN-IM ने केंद्र सरकार को दी चेतावनी, कहा- "फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर बातचीत में तीसरे पक्ष को शामिल नहीं किया गया, तो..."

NSCN-IM: उग्रवादी संगठन NSCN-IM ने केंद्र सरकार को दी चेतावनी, कहा-
Last Updated: 09 नवंबर 2024

नागा उग्रवादी संगठन NSCN (IM) ने भारत सरकार को चेतावनी दी है कि अगर उन्हें अलग झंडा और संविधान नहीं दिया जाता, तो वे युद्धविराम समझौते को समाप्त कर देंगे। यह समझौता 27 सालों से भारत सरकार और NSCN (IM) के बीच लागू है। संगठन ने अपनी मांगों को लेकर बातचीत में तीसरे पक्ष की मध्यस्थता की भी अपील की हैं।

नई दिल्ली: नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-IM) ने केंद्र सरकार को एक गंभीर चेतावनी दी है। संगठन ने कहा कि अगर 2015 के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट पर बातचीत में तीसरे पक्ष को शामिल नहीं किया गया, तो वे 27 साल पुराने युद्धविराम समझौते को तोड़ देंगे। यह समझौता 1997 से लागू है और NSCN-IM का यह कदम पूर्वोत्तर भारत में सबसे लंबे समय से चल रहे उग्रवाद को समाप्त करने के प्रयासों पर असर डाल सकता हैं।

इस चेतावनी को NSCN-IM के महासचिव टी मुइवा ने दिया है, जिन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि उनकी मुख्य मांग नागा समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए एक अलग झंडा और संविधान की है। मुइवा ने कहा कि तीसरे पक्ष की मध्यस्थता से वार्ता में पारदर्शिता और निष्पक्षता आएगी, जो शांति की दिशा में एक सकारात्मक कदम होगा।

मुइवा ने धमकी देते हुए कहा कि...

नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN-IM) के महासचिव टी मुइवा ने 7 और 8 अक्टूबर को दिल्ली में हुई बातचीत के बाद एक बयान जारी किया। इसमें मुइवा ने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में हुए ऐतिहासिक फ्रेमवर्क एग्रीमेंट का उल्लंघन कर रही है। उन्होंने कहा कि इस समझौते में नागा समुदाय के अधिकारों को सम्मान देने की बात थी, लेकिन केंद्र सरकार इसके कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों का सम्मान करने से इंकार कर रही हैं।

मुइवा ने चेतावनी दी कि अगर भारत सरकार इस समझौते के तहत किए गए वादों को पूरा नहीं करती है, तो यह शांति प्रक्रिया को बाधित करेगा। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि NSCN-IM शांति प्रक्रिया को शांतिपूर्ण तरीके से जारी रखने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन अगर सरकार अपनी जिम्मेदारियों से पीछे हटती है, तो इसका असर वार्ता पर पड़ेगा और शांति समझौते को लेकर विश्वासघात होगा। मुइवा ने कहा कि वे इस समझौते की शर्तों को सम्मानजनक तरीके से लागू करने की उम्मीद रखते हैं, और अगर ऐसा नहीं होता, तो वे किसी भी अन्य विकल्प पर विचार करने के लिए मजबूर हो सकते हैं।

गौरतलब है कि 2015 में हुए फ्रेमवर्क एग्रीमेंट को दोनों पक्षों ने एक ऐतिहासिक कदम माना था, लेकिन उसके बाद से इस समझौते के कुछ महत्वपूर्ण पहलुओं पर खींचतान बनी हुई है। मुइवा, जो 2016 में इसाक चिशी स्वू की मौत के बाद NSCN (IM) के प्रमुख थे, इस मामले में लगातार केंद्र सरकार से अपनी मांगों को लेकर दबाव बना रहे हैं।

नागा संगठन अलग झंडा और संविधान की कर रहा मांग

टी मुइवा ने स्पष्ट रूप से कहा कि अगर भारत सरकार 2015 के फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में विश्वासघात को लेकर तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करती है, तो NSCN-IM सशस्त्र प्रतिरोध की ओर लौटने पर विचार करेगा। उनका कहना था कि यदि सरकार इस राजनीतिक समझौते पर कोई ठोस कदम नहीं उठाती, तो संगठन अपने इतिहास और संप्रभुता की रक्षा के लिए अपनी रणनीति में बदलाव करेगा और भारत के खिलाफ संघर्ष फिर से शुरू कर सकता हैं।

यह बयान NSCN-IM की लंबे समय से चली आ रही मांगों से संबंधित है, जिसमें वे नागालैंड के लिए अलग झंडा और संविधान की मांग कर रहे हैं। 1997 में शुरू हुआ युद्धविराम समझौता अब तक शांति प्रक्रिया का हिस्सा बना हुआ है, लेकिन अब तक इन प्रमुख मुद्दों पर कोई ठोस समाधान नहीं निकल सका है। मुइवा का यह बयान इस बात का संकेत है कि अगर इन मुद्दों पर समाधान नहीं निकलता, तो संगठन अपने उग्रवादी गतिविधियों को फिर से शुरू कर सकता हैं।

मुइवा ने अपनी चेतावनी में स्पष्ट किया कि यदि केंद्र सरकार नागालिम की संप्रभुता, जिसमें नागा जनजातियों का राष्ट्रीय ध्वज और संविधान शामिल है, का सम्मान नहीं करती, तो यह क्षेत्र फिर से हिंसा की चपेट में आ सकता है। उनका कहना है कि यदि यह विवाद सुलझाया नहीं जाता, तो इसके लिए भारत सरकार जिम्मेदार होगी, क्योंकि NSCN-IM का मानना है कि उनकी मांगें और अधिकार फ्रेमवर्क एग्रीमेंट में पहले ही तय किए गए थे।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि केंद्र सरकार इस मुद्दे को दशकों बाद समाप्त करना चाहती है, तो उसे नागालिम की संप्रभुता को स्वीकार करना होगा, जो कि केवल अपने अलग झंडे और संविधान के माध्यम से संभव है। मुइवा का यह बयान इस बात का संकेत है कि NSCN-IM अपने ऐतिहासिक अधिकारों के लिए संघर्ष को और तेज कर सकता है, अगर केंद्र सरकार उनके मांगों को नजरअंदाज करती हैं।

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