PM Narendra Modi: NRC मुद्दों पर पीएम मोदी ने लिए अपने कदम पीछे, मामले में साधी चुप्पी, जानें क्या थी इसकी वजह

PM Narendra Modi: NRC मुद्दों पर पीएम मोदी ने लिए अपने कदम पीछे, मामले में साधी चुप्पी, जानें क्या थी इसकी वजह
Last Updated: 24 अगस्त 2024

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भारतीय राजनीति के एक ऐसे व्यक्तित्व हैं, जिनके बारे में लगातार चर्चाएं होती रहती हैं। जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब भी वे मीडिया की नजरों में रहे। लेकिन 11 वर्षों से प्रधानमंत्री बनने के बाद से तो उनकी चर्चा और भी अधिक बढ़ गई है। अक्सर उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे जिद्दी स्वभाव के व्यक्ति हैं और अपने निर्णयों पर अडिग रहते हैं।

New Delhi: हाल ही में उठाए गए कुछ फैसलों पर गौर करें तो स्थिति में एक बदलाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। अब उनकी सरकार को "यू-टर्न वाली सरकार" के रूप में भी जाना जा रहा है। लेटरल एंट्री, किसान के तीन कानूनों पर और एनआरसी NRC से जुड़े मुद्दों पर कदम पीछे खींच लिया है। इन सभी मामलों में खामोशी और चुप्पी को उनकी कमजोरी के रूप में देखा जा रहा है।

मोदी सरकार ने वापस लिए किसान कानून

हाल ही में कई लोग इस बात को उजागर कर रहे हैं कि बीजेपी 2024 के चुनाव में 240 सीटें पाई हैं। अब बीजेपी अकेले की बहुमत वाली सरकार नहीं है, बल्कि यह एनडीए की सरकार है। इसी कारण से मोदी के कुछ हालिया निर्णयों में बदलाव देखने को मिला है, लेकिन यह भी सत्य है कि पीएम मोदी अपने तीसरे कार्यकाल में 2019 में संख्या बल के मामले में सबसे मजबूत स्थिति में थे।

इसके बावजूद, उन्होंने उसी कार्यकाल में किसानों के लिए जो कानून बनाया था, उसे वापस ले लिया। जब मोदी सरकार को बहुमत होते हुए भी किसान कानून को वापस लेना पड़ा, तो यह स्पष्ट रूप से इस थ्योरी को गलत साबित करता है कि पीएम मोदी कम संख्या के कारण लेटरल एंट्री और अन्य मुद्दों पर यू-टर्न ले रहे हैं। इस प्रकार की बातें एक ही उदाहरण से ध्वस्त हो जाती हैं।

सरकार ने साधी चुप्पी

2019 में बहुमत के समय, मोदी ने किसान बिल को वापस ले लिया था। अब लेटरल एंट्री को भी रद्द कर दिया गया है। इसके साथ ही हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी में क्रीमीलेयर बनाने की व्याख्या पर सरकार ने पूरी तरह से चुप्पी साध रखी है। इन सभी घटनाओं का एक ही अर्थ निकलता है कि नरेंद्र मोदी की प्राथमिकता 'राष्ट्र पहले' है। देश के लोगों को यह याद रखना चाहिए कि जब स्वर्गीय विपिन रावत अपने संबोधनों में कहते थे कि, देश को ढाई मोर्चों पर लड़ाई लड़ने की आवश्यकता है, तो दो मोर्चे तो स्पष्ट थे, लेकिन जो आधा मोर्चा था, वह देश के अंदर मौजूद नकारात्मक तत्वों की ओर इशारा करता था। भारत में अशांति और गृह युद्ध जैसी स्थितियों को जन्म देने की कोशिश की जाती है, क्योंकि विपक्ष नकारात्मक गतिविधियों में लिप्त रहता है, जबकि नरेंद्र मोदी ऐसे किसी भी हालात को देश में नहीं देखना चाहते।

लोकतंत्र की वास्तविकता का स्पष्ट आभास

यदि हम भारत के आस-पास के देशों की स्थिति पर ध्यान दें, तो हमें उन देशों में लोकतंत्र की वास्तविकता का स्पष्ट आभास होता है। बांग्लादेश में जो सरकार जनता द्वारा चुनी गई थी, वह अब अस्तित्व में नहीं है। इसी तरह, श्रीलंका की स्थिति भी कुछ ऐसी ही है। अफगानिस्तान की स्थिति तो सभी को ज्ञात है। पाकिस्तान में तो कभी लोकतंत्र की स्थिति रही ही नहीं, और नेपाल में लोकतंत्र का स्वरूप हम सभी जानते हैं। इस तरह की स्थिति में, जब पूरी दुनिया मेंचाहे वह यूके हो, फ्रांस हो या ईरानहर जगह एक समान पैटर्न देखने को मिल रहा है।

सरकार में बदलाव

सबसे पहले, देश की आंतरिक परिस्थितियां खराब होती हैं, उसके बाद जनता सड़कों पर उतर आती है, और जनता के पीछे-पीछे सरकार में बदलाव जाता है। कुल मिलाकर, लोकतंत्र को या तो समाप्त कर दिया जाता है, या फिर किसी शक्तिशाली ताकत द्वारा इसे अपने अनुसार बदल दिया जाता है। लेकिन विश्व में इस प्रकार के माहौल के बीच, भारत में केवल लोकतंत्र जीवित है, बल्कि यह विकास की दर के मामले में तेजी से प्रगति कर रहा है।

जब विकास की दर 7.3 प्रतिशत हो, पूंजीगत व्यय 11.1 प्रतिशत तक बढ़ चुका हो, जीडीपी 3.4 प्रतिशत हो, और 2014 से 2023 के बीच एफडीआई 596 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँच चुका हो, जो 2005 से 2014 के बीच के एफडीआई का दोगुना है, तो ऐसी स्थिति में "नेशन फर्स्ट" और लोकतंत्र को बचाने की भावना को देखने की जरूरत है। इसे मजबूत करने और उसके मूल्यों का सम्मान करने के दृष्टिकोण से, भारत ने इस मामले में काफी अच्छा कार्य किया है।

मोदी ने की संविधान और आरक्षण की रक्षा

सरकार ने एससी समुदाय को विशेष स्थान देने में अग्रणी भूमिका निभाई है। इसके साथ ही, सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने क्रीमी लेयर के मामले में यह स्पष्ट किया है कि यह लागू किया जा सकता है, कि यह अनिवार्य रूप से लागू होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने जनता से संवाद स्थापित करने में सक्षम हैं। फिर भी, लोगों के बीच यह धारणा बन गई है कि मोदी की सरकार के आगमन से आरक्षण को खतरा हो सकता है। वास्तव में, विपक्ष ने यह प्रोपेगेंडा फैलाया है कि मोदी तानाशाह हैं, और अगर वे सत्ता में लौटते हैं, तो आरक्षण को समाप्त किया जाएगा, जबकि मोदी संविधान और आरक्षण की रक्षा करते हुए दिखाई दे रहे हैं।

दो बार के कार्यकाल वाले प्रधानमंत्री मोदी तीसरी बार सत्ता में आए हैं। विपक्ष की ओर से कमजोर समझे जाने वाले पीएम मोदी ने 15 अगस्त को 98 मिनट का भाषण दिया, जो अब तक का उनका सबसे लंबा भाषण है। इस मौके पर विपक्ष में भी बदलाव दिखाई दे रहा है। जो लोग मोदी के राजनीतिक व्यक्तित्व और उनके प्रभाव का आकलन कर रहे थे, उनके दृष्टिकोण में परिवर्तन नजर रहा है। आज वही विपक्ष, जो पहले कभी मोदी को तानाशाह की उपाधि दे चुके थे, अब उन्हें कमजोर बता रहे हैं।

नरेंद्र मोदी कर रहें कई चुनौतियों का सामना

सूत्रों के मुताबिक, नरेंद्र मोदी कई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं, और यह सभी लोग समझ रहे हैं। जब आम इंसान के जीवन में कई समस्याएं होती हैं, तो वह परेशान हो जाता है। ऐसे में जब एक 74 वर्षीय व्यक्ति देश के प्रधानमंत्री के रूप में अपनी सेवाएं दे रहा है, तो उसके सामने कितनी अधिक चुनौतियां होंगी। सोशल मीडिया को अक्सर जन मीडिया के रूप में भी पहचाना जाता है।

जब मोदी ने राज्य स्तर से राष्ट्रीय स्तर पर कदम रखा, तो वह सोशल मीडिया का सबसे प्रभावी उपयोग करने वाले सफल व्यक्तियों में से एक बने। सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी को सबसे अधिक समर्थन मिलता है। हालांकि, सोशल मीडिया पर विरोधी आवाजें पहले से मौजूद हैं और अब भी कहीं कहीं बनी हुई हैं। विरोधी शक्तियों को अब तानाशाह मोदी की छवि में नरम मोदी नजर रहे हैं।

कांग्रेस सरकार कर रही सोशल मीडिया का इस्तेमाल

मोदी के समर्थकों की बात करें तो इस समय कुछ ऐसी आवाजें भी सुनाई दे रही हैं। इसके पीछे नरेंद्र मोदी के कट्टर समर्थक हैं, जिनकी कुछ निजी अपेक्षाएं हैं। ये अपेक्षाएं ही उनके इस व्यवहार का कारण बन रही हैं। उन्हें लगता है कि मोदी "सबका साथ, सबका विकास" और "141 करोड़ भारतीय" की बातें क्यों करते हैं, जबकि वह हिंदुओं के प्रति सॉफ्ट क्यों हैं? हाल ही में बांग्लादेश में जो घटनाएं हुई हैं, उन पर वे क्यों तीखा रुख नहीं अपनाते ?

दुनिया भर में प्रताड़ित हो रहे हिंदुओं के लिए रेड कारपेट बिछाकर उनकी घर वापसी क्यों नहीं कराते ? ऐसी अपेक्षाएं उनके मन में हैं, और मोदी इस पर खुलकर बात नहीं कर रहे हैं, जिससे समर्थकों का गुस्सा बढ़ता जा रहा है। दूसरी ओर, कांग्रेस भी सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल कर रही है, लेकिन वह इसका उपयोग केवल देश के विरोधी ताकतों को मजबूत करने और विरोधी मुद्दों को उजागर करने के लिए कर रही है।

 

 

 

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