Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला, कहा- 'अब शारीरिक अक्षमता न्यायिक सेवा में रुकावट नहीं'

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सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को शारीरिक अक्षमता के आधार पर न्यायिक सेवाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता।

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि किसी भी व्यक्ति को शारीरिक अक्षमता के आधार पर न्यायिक सेवाओं में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता। शीर्ष अदालत ने मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा नियमों में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के प्रति भेदभावपूर्ण प्रावधानों को निरस्त कर दिया, जिससे दिव्यांग उम्मीदवारों को अब समान अवसर मिल सकेगा।

दृष्टिबाधित अभ्यर्थियों को मिलेगा न्यायिक सेवा में स्थान

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया कि शारीरिक अक्षमता न्यायिक कार्यक्षमता की बाधा नहीं है। अदालत ने कहा कि दिव्यांग उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा की परीक्षाओं में भाग लेने का समान अधिकार मिलना चाहिए और राज्य सरकारों को इसके लिए आवश्यक व्यवस्थाएं सुनिश्चित करनी चाहिए। मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा परीक्षा 2022 में दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए कोई आरक्षण उपलब्ध नहीं था, जिसे अदालत ने दिव्यांग अधिकार अधिनियम, 2016 का उल्लंघन करार दिया। 

अदालत ने इस मामले में सख्त रुख अपनाते हुए कहा कि न्यायिक सेवाओं में किसी भी प्रकार का अप्रत्यक्ष भेदभाव समाप्त किया जाना चाहिए ताकि वास्तविक समानता को बढ़ावा मिल सके।

न्यूनतम अंक और अनुभव की बाध्यता भी समाप्त

सुप्रीम कोर्ट ने न केवल दृष्टिबाधित उम्मीदवारों के लिए प्रतिबंध हटाया, बल्कि मध्य प्रदेश सेवा नियमों के उस प्रावधान को भी खारिज कर दिया जिसमें न्यूनतम 70% अंक पहले प्रयास में लाने या तीन साल की वकालत का अनुभव अनिवार्य किया गया था। अदालत ने कहा कि अब यह नियम केवल न्यूनतम शैक्षणिक योग्यता तक सीमित रहेगा, लेकिन इसे पहले प्रयास में ही प्राप्त करने की बाध्यता नहीं होगी।

यह मामला तब सामने आया जब एक दृष्टिबाधित उम्मीदवार की मां ने तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर अपने बेटे के साथ हुए भेदभाव की शिकायत की। सुप्रीम कोर्ट ने इस पत्र को अनुच्छेद 32 के तहत याचिका में बदलते हुए मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय, राज्य सरकार और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

अब दिव्यांग उम्मीदवारों को मिलेगा समान अवसर

सुनवाई के दौरान, अदालत ने यह भी पूछा कि दृष्टिबाधित न्यायाधीशों को क्या विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। इस पर कोर्ट सलाहकार और वरिष्ठ अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने बताया कि ऐसे न्यायाधीशों के लिए विशेष प्रशिक्षण और उनके सहकर्मियों के लिए जागरूकता कार्यक्रम जरूरी होंगे। एक विशेषज्ञ समिति ने निष्कर्ष निकाला कि दृष्टिबाधित और कम दृष्टि वाले उम्मीदवार न्यायिक कार्य करने में पूरी तरह सक्षम हैं।

इस फैसले के बाद, दिव्यांग उम्मीदवारों को न्यायिक सेवा में प्रवेश का समान अधिकार मिलेगा और न्यायिक प्रणाली अधिक समावेशी बनेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह संदेश दिया कि दिव्यांगता न्यायिक योग्यता को प्रभावित नहीं करती, बल्कि उचित संसाधनों और प्रशिक्षण से सभी को समान अवसर मिल सकता हैं।

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