उत्तराखंड में लोकसभा चुनाव की आचार संहिता और मानसून के कारण पूंजीगत मद में बजट खर्च की गति धीमी हो गई है। पहली छमाही में आवंटित बजट का केवल 3140 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में काफी कम है। अब सरकार पर वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का दबाव है।
देहरादून: लोकसभा चुनाव की लंबी आचार संहिता और वर्षाकाल ने प्रदेश सरकार के विकास कार्यों की गति और दूरस्थ क्षेत्रों में मूलभूत सुविधाओं के विस्तार के प्रयासों पर नकारात्मक प्रभाव डाला है। पूंजीगत मद में बजट का तेजी से उपयोग करने के लिए विभागों के प्रयास इस वर्ष सुस्त पड़ गए हैं।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में 15 अक्टूबर तक, यानी छह महीने से अधिक समय के बाद, केवल 3140 करोड़ रुपये की राशि ही खर्च की जा सकी है, जो गत वित्तीय वर्ष की तुलना में काफी कम है। पिछले वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसी अवधि में 4800 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। अब सरकार पर वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में 11 हजार करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने का दबाव है।
विकास योजनाओं और परिसंपत्तियों के निर्माण कार्यों के लिए वित्तीय वर्ष 2024-25 में पूंजीगत मद में 14,857 करोड़ रुपये का बजट प्रविधान किया गया है। इसमें से 4479 करोड़ रुपये की राशि विभागों को खर्च के लिए आवंटित की जा चुकी है। बजट खर्च के आंकड़ों के अनुसार, चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में आवंटित बजट में से मात्र 3150 करोड़ रुपये ही उपयोग में लाए जा सके हैं।
विकास कार्यों में सुस्ती
विभागों के अनुसार, अप्रैल से जून तक लागू लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण विकास कार्यों की गति धीमी रही। आचार संहिता हटने के बाद वर्षाकाल ने निर्माण कार्यों में रुकावट डाल दी। वित्तीय वर्ष 2023-24 में सरकार ने पहले छह महीनों में 4800 करोड़ रुपये खर्च करने का रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन इस वर्ष अपेक्षाकृत कम राशि खर्च हो पाई।
खर्च का ट्रेंड
हालांकि, प्रदेश सरकार के लिए एक सकारात्मक पहलू यह है कि चुनाव आचार संहिता और वर्षाकाल के बावजूद, इस वर्ष की पहली छमाही में पिछले वर्ष की तुलना में अधिक खर्च हुआ है। पिछले वर्षों में पहली छमाही में अधिकतम 2805 करोड़ रुपये का खर्च हुआ था। महालेखाकार के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2019-20 में 1695 करोड़, 2020-21 में 1082 करोड़, 2021-22 में 2805 करोड़, और 2022-23 में 2138 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे।
आवंटित बजट का शत-प्रतिशत खर्च नहीं हो पाया
ग्राम्य विकास विभाग को कुल 1632 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया है, जिसमें से 613 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, लेकिन विभाग केवल 565 करोड़ रुपये ही खर्च कर पाया है। विभाग को अब आवंटित बजट को पूरी तरह से खर्च करने की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।
सिंचाई विभाग के लिए 1380 करोड़ रुपये का बजट रखा गया है, जिसमें से 547 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं, जबकि खर्च केवल 484 करोड़ रुपये हुआ है। लोक निर्माण विभाग को 1440 करोड़ रुपये का बजट मिला है, जिसमें 815 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, लेकिन 15 अक्टूबर तक विभाग केवल 598 करोड़ रुपये ही खर्च कर सका है।
शहरी विकास, आवास और शिक्षा में खर्च में कमी
पूंजीगत बजट के उपयोग में शहरी विकास, आवास और विद्यालयी शिक्षा विभाग पीछे रह गए हैं। शहरी विकास के लिए 774 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया था, जिसमें से 201 करोड़ रुपये आवंटित हुए, लेकिन केवल 171 करोड़ रुपये ही खर्च किए जा सके।
आवास विभाग के लिए कुल 461 करोड़ रुपये का बजट है, जिसमें से 149 करोड़ रुपये आवंटित किए गए, जबकि खर्च केवल 128 करोड़ रुपये हुआ है। विद्यालयी शिक्षा के लिए 473 करोड़ रुपये का बजट प्रविधान किया गया है, जिसमें 123 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, और खर्च की गई राशि 109 करोड़ रुपये है।
वित्त अपर मुख्य सचिव आनंद बर्द्धन ने सभी विभागों को निर्देश दिए हैं कि वे वित्तीय वर्ष की दूसरी छमाही में बजट खर्च में तेजी लाएं।